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झारखंड: आदिवासी वोटों पर निशाना

  भाजपा ने संगठन के पदों में फेरबदल करके दूसरी पार्टियों के नेताओं पर भरोसा किया ताकि जनजातीय वोटों...
झारखंड: आदिवासी वोटों पर निशाना

 

भाजपा ने संगठन के पदों में फेरबदल करके दूसरी पार्टियों के नेताओं पर भरोसा किया ताकि जनजातीय वोटों में सेंध लगाई जा सके

 

झारखंड में अगले साल लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आदिवासी वोटों को लुभाने की सियासत तेज हो गई है। विपक्षी भाजपा ने संगठनात्‍मक फेरबदल के बाद आदिवासियों से जुड़े आयोजनों का सिलसिला तेज कर दिया है। बिरसा मुंडा के जन्‍मदिन और झारखंड के स्‍थापना दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद उनके गांव खूंटी जिले के उलिहातु पहुंच रहे हैं। प्रधानमंत्री उलिहातु से ही विकसित भारत संकल्‍प यात्रा की  शुरुआत करेंगे। गौरतलब है कि दो साल पहले भाजपा जनजाति मोर्चा की रांची में हुई राष्‍ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पारित प्रस्‍ताव के बाद केंद्रीय कैबिनेट ने बिरसा जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में पूरे देश में मनाने का फैसला किया था। पिछले साल बिरसा जयंती पर राष्‍ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बिरसा के गांव गई थीं। भाजपा निचले स्‍तर पर जनजातीय चेहरों को भी पार्टी से जोड़ने की तैयारी में लगी है। यह देखकर सत्तारूढ़ झामुमो ने भी कसरत तेज कर दी है। बिरसा जयंती के मौके पर मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ‘आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार’ योजना के नए चरण की शुरुआत करेंगे। हेमंत सरकार आदिवासियों के समेकित विकास के लिए ‘ट्राइबल डेवलपमेंट एटलस’ को भी आकार देने जा रही है। जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग सरना धर्म कोड, स्‍थानीय नीति और ओबीसी आरक्षण का कार्ड केंद्र पर हमले का हथियार बना हुआ है। घर-घर जाकर झारखंड आंदोलनकारियों की पहचान की नई कवायद भी शुरू की गई है।

आदिसवासियों को लुभाने की कवायदः बाबूलाल मरांडी

आदिसवासियों को लुभाने की कवायदः बाबूलाल मरांडी

प्रदेश में भाजपा का चेहरा तेजी से बदल रहा है। प्रदेश अध्‍यक्ष, विधायक दल का नेता, विधानसभा में पार्टी के सचेतक के पद पर नए चेहरों को बैठाने के बाद चार दशक से झारखंड की राजनीति में सक्रिय पूर्व मुख्‍यमंत्री तथा भाजपा के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष रघुवर दास को ओडिशा का राज्‍यपाल बनाकर राज्‍य में गुटबंदी पर लगाम लगाने की कोशिश की गई है। रघुवर दास को राज्‍यपाल बनाने से भाजपा में मुख्‍यमंत्री पद की दौड़ से एक सशक्‍त दावेदार बाहर हो गया और दास को अदालत और निगरानी मामलों से राहत भी मिल गई। पार्टी ने चंदनक्‍यारी से विधायक अमर बाउरी को भाजपा विधायक दल का नेता बनाया। इससे पिछले चार साल से झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की खाली कुर्सी भर गई।

दरअसल बाबूलाल मरांडी को भाजपा ने विधायक दल का नेता बनाया था मगर उनकी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा के भाजपा में विलय और उनकी विधायकी का मामला विधानसभा अध्‍यक्ष के न्‍यायाधिकरण में फंसा रहा। दरअसल, लक्ष्‍मण गिलुआ को प्रदेश अध्‍यक्ष और दिनेश उरांव के विधानसभा अध्‍यक्ष और द्रौपदी मुर्मू के राज्‍यपाल बनाने के बावजूद 2019 के चुनाव में जनजाति के लिए आरक्षित 28 सीटों में भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिल पाई थी। संसदीय चुनाव में भी संथाल आदिवासी बहुल राजमहल और चईबासा सीट पर भाजपा को हार मिली। खूंटी से खुद अर्जुन मुंडा मुश्किल से निकले थे। ऐसे में भाजपा को 26 प्रतिशत आदिवासी वोटों को देखते हुए किसी सर्वमान्‍य आदिवासी नेता की दरकार थी। अर्जुन मुंडा की पकड़ संथाली आदिवासियों के बजाय मुंडाओं के बीच ज्‍यादा है। बाबूलाल मरांडी की पूरे आदिवासी समाज में कमोबेश स्‍वीकार्यता है।

ओबीसी रघुवर दास को किनारे करना भी आसान नहीं था। रघुवर दास छत्तीसगढ़ से आते हैं। जानकार मानते हैं कि इसी वजह से उन्‍हें ओडिशा का राज्‍यपाल बनाया गया। इससे सरयू राय की घर वापसी का रास्‍ता भी आसान हो जाएगा। रघुवर सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सरयू राय मतभेद के कारण रघुवर दास के खिलाफ ही जमशेदपुर से चुनाव लड़े और जीते।

ओडिशा के राज्यपाल बनाए गए रघुवर दास

ओडिशा के राज्यपाल बनाए गए रघुवर दास

प्रदेश में विधायक दल नेता के लिए तेजतर्रार नेता की तलाश थी। पार्टी नेताओं का मानना है कि बाउरी जुझारू और जमीनी नेता हैं। सदन में भी लगातार सरकार पर आक्रामक रहे हैं। बाउरी रघुवर दास सरकार में राजस्‍व एवं भूमि सुधार मंत्री थे। बाउरी के बहाने पार्टी को अनुसूचित जाति को साधने का भी अवसर मिल जाएगा। बाउरी भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्‍यक्ष थे। पिछले विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लोगों ने भाजपा को पसंद किया। प्रदेश में अनुसूचित जाति के लिए नौ सीटें सुरक्षित हैं जिनमें छह सीटों यानी चंदनक्‍यारी, कांके, देवघर, जमुआ, छतरपुर और सिमरिया पर भाजपा का कब्‍जा है। वहीं लातेहार और जुगसलाई पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और चतरा पर राजद का।

विधायक दल नेता की दौड़ में रहे मांडू विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को विधानसभा में विधायक दल का सचेतक बनाया गया। ये कुड़मी समाज से आते हैं और झारखंड में हाल के वर्षों में कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने की मांग को लेकर कई दौर में आंदोलन चला है। बड़ी आबादी और मजबूत हैसियत का यह समाज अभी ओबीसी के 14 प्रतिशत के कोटे में है। अनारक्षित आठ सीटों पर कुड़मी बिरादरी के आठ विधायक हैं। छोटानागपुर के दो दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में इनकी अच्‍छी हैसियत है। आदिवासियों के लिए आरक्षित कुछ सीटों पर तो इनकी आबादी आदिवासियों से अधिक है। जयप्रकाश भाई पटेल के पिता पूर्व मंत्री टेकलाल महतो की कुड़मी समाज में मजबूत पकड़ थी। वैसे भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू के सुप्रीमो प्रदेश में कुड़मी-महतो के मजबूत नेता माने जाते हैं।

इसे संयोग ही कहेंगे कि भाजपा के प्रमुख पदों पर अन्‍य दलों से आए हुए नेता ही विराजमान हैं। खुद प्रदेश अध्‍यक्ष बाबूलाल मरांडी भले ही भाजपा से प्रदेश के पहले मुख्‍यमंत्री थे मगर 14 साल के वनवास के बाद करीब साढ़े तीन साल पहले झारखंड विकास मोर्चा से भाजपा में शामिल हुए। नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी झारखंड विकास मोर्चा से ही 2014 में जीते थे मगर फरवरी 2015 में भाजपा में आ गए थे। विधानसभा में पार्टी के सचेतक जयप्रकाश भाई पटेल झामुमो से विधायक थे। 2019 में विधानसभा चुनाव के समय भाजपा शामिल हो मांडू सीट से चुनाव लड़े थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव विनोद पांडेय ने चुटकी ली कि भाजपा आयातित नेताओं के सहारे ही सत्ता हासिल करने का सपना देख रही है। प्रमुख पदों पर बाहर से आए नेता काबिज हो गए हैं। इससे भाजपा के पुराने नेताओं में नाराजगी है।

भाजपा के लिए सियासी संतुलन साधना अभी भी इतना आसान नहीं है। अभी तो फिलहाल प्रदेश अध्‍यक्ष बाबूलाल मरांडी, विधायक दल के नेता अमर कुमार बाउरी, सदन में पार्टी के मुख्‍य सचेतक विरंची नारायण, सचेतक जयप्रकाश भाई पटेल सभी उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल से आते हैं। जेवीएम से आए लोगों और भाजपा के अपने सिपाहियों का भी पार्टी का खयाल रखना होगा और आदिवासी वोट तो जीत की कसौटी पर रहेगा ही।

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