रामगोपाल बूरी
दरअसल, सरकार की मंशा है कि चार पदों के बजाए केवल छात्रसंघ अध्यक्ष के पद के लिए ही मतदान करवाया जाए। राजस्थान के उच्च शिक्षा विभाग ने इस मंशा को लागू करने की तैयारी शुरू कर दी है। संभावना है कि इस निर्णय को इसी साल अगस्त में होने वाले छात्रसंघ चुनावों में धरातल पर उतार दिया जाएगा।
राज्य सरकार ने इसके लिए एक कमेटी का गठन किया है, जो एक माह के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी। इस उच्च स्तरीय कमेटी में राज्य के 7 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को शामिल किया गया है। इस खास किस्म की समिति का अध्यक्ष बनाया गया है उदयपुर स्थित मोहनलाल सुखाड़िया विवि के कुलपति प्रो. जेपी शर्मा को। कमेटी में उनके साथ ही जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, अजमेर, कोटा और शेखावाटी विश्वविद्यालय के कुलपति भी सदस्य हैं। चार दिन पहले गठित कमेटी को अपनी अनुषंशा एक माह के भीतर सौंपने के निर्दश दिए हैं। जिसके आधार पर सरकार को छात्रसंघ चुनाव के लिए अहम निर्णय लेना है।
एबीवीपी की विचारधारा का रहेगा अहम रोल
हालांकि, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने सरकार के इस निर्णय के 'हां में हां' नहीं मिलाई है। लेकिन माना जा रहा है कि एबीवीपी की विचारधारा को ही लागू करने के लिए सरकार यह कदम उठाने जा रही है। एबीवीपी की ओर से 4 से 9 जुलाई तक प्रदेशभर में 'संवाद कार्यक्रम' के नाम से सर्वे करवाया जाना प्रस्तावित है। पहले चरण में संगठन 10 जिलों में छात्रों के बीच इसके लिए 'हां' या 'ना' का सर्वे करवाएगा। इसके बाद सरकार को अलग से अपनी गुप्त रिपोर्ट सौंपी जाएगी। माना जा रहा है कि राजस्थान विवि में लगातार तीन बार छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव हारने के बाद अंदरखाने एबीवीपी ने यह गली निकाली है। जिसका फैसला सरकार के द्वारा इस तरह से लागू करवाया जाएगा, ताकि किसी तरह का विवाद नहीं हो।
विवादों से बचने की रणनीति
राजस्थान के सभी विश्वविद्यालयों में अगस्त में छात्रसंघ चुनाव प्रस्तावित हैं। दरअसल, साल 2006 से 2010 तक छात्रसंघ चुनाव बैन कर दिए गए थे। इसके बाद कोर्ट की निगरानी में लिंगदोह कमेटी की 16 सिफारिशों के आधार पर हर साल चुनाव होते आए हैं। लिंगदोह कमेटी की सिफारिशों में कठोर नियम होने के कारण छात्रनेता खुले तौर पर पैसे खर्च नहीं कर पाते हैं। वे पहले की तरह शहरभर में हंगामा, पोस्टर, बैनर और प्रदर्शन कर अपने पक्ष में माहौल बनाने से वंचित हो जाते हैं। इधर, सरकार का मानना है कि अलग—अलग संगठनों के प्रतिनिधि जब छात्रसंघ में चुनकर पहुंचते हैं तो विवाद हो जाता है। कभी एबीवीपी और एनएसयूआई या एसएफआई के छात्रनेता एक साथ बैठना पसंद नहीं करते। जिसके चलते छात्रसंघ के सालभर चलने वाले कार्यक्रमों में भी व्यवधान उत्पन्न होता है। कार्यालयों के उद्घाटन में विवि परिसर राजनीतिक पार्टियों के अखाड़ों में तब्दील हो जाते हैं। इससे छात्रों की पढ़ाई बाधित होती है। कई बार देखा गया है कि छात्रसंघ अध्यक्ष अपने कार्यालय का उद्घाटन करवा लेते हैं, लेकिन पार्टी विवादों के चलते उसी विवि या कॉलेज में उपाध्यक्ष, महासचिव या सचिव के आॅफिस का पूरे साल इनोग्रेशन नहीं हो पाता है।
कक्षा प्रतिनिधि का फॉर्मूला लागू किया जाने की संभावना
एबीवीपी के ही पदाधिकारी सरकार के इस फैसले को लेकर एकमत नहीं हैं। संगठन के प्रदेश मंत्री संजय क्षोत्रिय के अनुसार वे सर्वे के बाद कोई बात करने की स्थिति में होंगे। लिंगदोह कमेटी की शिफारिशों में छात्रसंघ पदाधिकारी चुनने के दो वैकल्पिक सुझाव दिए गए थे। जिसमें से एक कक्षा प्रतिनिधि के चुनाव के माध्यम से छात्रसंघ चुनाव करवाया जाना बताया था। चर्चा है कि सरकार यही फॉर्मूला लागू करने जा रही है। विवि के शिक्षकों के साथ ही छात्रनेताओं का मानना है कि सरकार छात्रसंघ चुनाव के माध्यम से राज्य के करीब 10 लाख वोटर्स पर नजर गढ़ाए हुए है।
यह है कक्षा प्रतिनिधि का फॉर्मूला
किसी भी विवि में सैकड़ों की संख्या में यूजी, पीजी और डिप्लोमा कक्षाएं होती हैं। जयपुर स्थित राजस्थान विवि जैसे बड़े संस्थानों में करीब 500 के कक्षाएं लगती हैं। प्रतिनिधि फॉर्मूले के तहत सभी कक्षाओं में पहले कक्षा के प्रतिनिधि का चुनाव होगा। उसका चुनाव कक्षा के छात्र—छात्राएं करेंगे। इसके बाद जो छात्र प्रतिनिधि चुना जाएगा, वह छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव के लिए मतदान करेगा।
दूसरा फॉर्मूला यह हो सकता है
इसके अलावा जैसे की प्रचारित किया जा रहा है कि केवल छात्रसंघ अध्यक्ष का ही चुनाव होगा। इसमें अध्यक्ष पद के लिए मतदान होगा। जो अध्यक्ष चुना जाएगा, वह उसी की च्वाइस के अनुसार उपाध्यक्ष, महासचिव और संयुक्त सचिव का चुनाव कर लेगा।
कहीं यह आशंका सही तो नहीं!
इधर, सरकार के इस निर्णय की एनएसयूआई और एसएफआई ने घोर अलोकतांत्रिक करार दिया है। एनएसयूआई का कहना है कि यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में एबीवीपी अध्यक्ष पद का चुनाव हारने के कारण यह निर्णय लेने पर सरकार को विवश कर रही है। उनका यह भी कहना है कि प्रदेश की छात्र राजनीति में दो या तीन समुदायों का अहम रोल होता है, जो अधिकांश एनएसयूआई के साथ रहते हैं। इसके चलते एबीवीपी अध्यक्ष का चुनाव हार जाती है। एनएसयूआई की ओर से राजस्थान विवि के पूर्व अध्यक्ष अनिल चौपड़ा के अनुसार चूंकि कक्षाओं में जातीय प्रभुत्व कम हो जाता है, जिसके चलते एबीवीपी छात्र प्रतिनिधि के जरिए चुनाव जीतना चाहती है। उनके मुताबिक जातियों को लड़ाने में असफल हो रही सरकार अब यह फॉर्मूला लागू कर कैसे भी जीत हासिल करना चाहती है।
10 लाख विद्यार्थी, 1200 कॉलेज और 14 विश्वविद्यालयों पर नजर
बता दें कि राजस्थान में लगभग 10 लाख छात्र अध्यनरत हैं। प्रदेश में कुल 200 सरकारी कॉलेज हैं। इसके अलावा 1000 से ज्यादा प्राइवेट कॉलेज हैं। पूरे राज्य की बात करें तो 26 विवि हैं। इनमें से 14 यूनिवर्सिटीज में छात्रसंघ चुनाव होते हैं। इस तरह से सरकार सीधे तौर पर 10 लाख स्टूडेंट्स तक अपनी पहुंच बनाना चाहती है।