दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार जस्टिस रविंद्र सिंह को लोकायुक्त नियुक्त करना चाहती है। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस रविंद्र सिंह के नाम पर आपत्ति जताते हुए राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अवगत करा दिया था। लेकिन अखिलेश सरकार ने कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कराकर फाइल पुनः राज्यपाल के पास भेजी लेकिन उसे लौटा दिया गया। दरअसल राज्य सरकार ने कैबिनेट से प्रस्ताव पारित कराकर लोकपाल की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को ही समाप्त कर दिया था।
गौरतलब है कि राज्यपाल राम नाईक और उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार के बीच विवाद कोई नया नहीं है। इससे पहले भी राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराहट की खबरें आती रही हैं। विवाद उस समय और गहरा गया जब विधान परिषद में सरकार की ओर से नौ ऐसे नाम भेजे गए जिसको लेकर राज्यपाल ने आपत्ति उठा दी। उसके बाद से लगातार टकराव बढ़ा हुआ है। विधान परिषद की खाली सीटों को भरने के लिए राज्यपाल और सरकार के बीच आज भी रस्साकसी जारी है।
राजभवन के सूत्रों के मुताबिक जब तक सरकार विधान परिषद के लिए उपयुक्त उम्मीदवाराें की सूची नहीं भेजती तब तक मंजूरी मिलना असंभव है। वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने राज्यपाल को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव का कहना है कि राज्यपाल अपने पद की गरिमा के भूल भाजपा के कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं। उन्होने तो यहां तक कह दिया भाजपा को चाहिए कि आगामी विधानसभा चुनाव में राज्यपाल को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री घोषित कर चुनाव लड़े।