राज्यपाल यादव के वकील आदर्श मुनि त्रिवेदी एवं राजेंद्र पटेरिया ने बताया कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अजय मानिकराव खानविलकर एवं न्यायाधीश रोहित आर्य की युगलपीठ ने आज अपने एक अंतरिम आदेश में राज्यपाल के खिलाफ एसटीएफ द्वारा दर्ज एफआईआर पर रोक लगा दी है। उन्होंने बताया कि अदालत ने कहा है कि यह रोक तब तक प्रभावी रहेगी, जब तक अंतिम फैसला नहीं सुना दिया जाता। उच्च न्यायालय ने सभी संबंधित पक्षों को सुनने के बाद राज्यपाल की दलील पर गत 13 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। राज्यपाल यादव ने अपनी दलील में मांग की थी कि चूंकि वह एक संवैधानिक पद पर हैं, इसलिए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती।
राज्यपाल यादव के वकील राम जेठमलानी, त्रिवेदी एवं पटेरिया ने मामले की सुनवाई के दौरान अदालत के सामने तर्क दिया था कि राज्यपाल के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना संविधान के अनुच्छेद 361 (2) और (3) के विपरीत है, क्योंकि यह अनुच्छेद पद पर रहते हुए राष्ट्रपति और राज्यपालों को ऐसी कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान करता है।
इसके विपरीत एसटीएफ ने अदालत में कहा था कि उसे राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का अधिकार है, क्योंकि ऐसा कर उसने उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई शुरू नहीं की है। दंडात्मक कार्रवाई किसी भी प्रकरण में अदालत में आरोप पत्रा दाखिल होने के बाद शुरू हुई मानी जाती हैं जबकि राज्यपाल के वकीलों का तर्क था कि एफआईआर दर्ज होने के साथ ही दंडात्मक कार्रवाई शुरू हो जाती है। गौरतलब है कि व्यापमं घोटाले की जांच कर रही एसटीएफ ने राज्यपाल यादव के खिलाफ इसी साल 24 फरवरी को भादंवि की धारा 420 सहित अन्य धाराओं के तहत प्रकरण कायम किया था। व्यापमं द्वारा संचालित वन रक्षक भर्ती परीक्षा में हुई गड़़बड़़ी में राज्यपाल पर सहभागी होने का आरोप है। उन्होने कथित तौर पर पांच प्रतिभागियों के नाम की सिफारिश की थी, जिन्होंने वन रक्षक भर्ती परीक्षा में फर्जी तरीके से सफलता हासिल कर ली थी।