छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव करीब आते ही अफसरों पर भी सियासी रंग चढ़ने लगा है। कुछ पुलिस अधिकारी नौकरी छोड़कर कांग्रेस-भाजपा का दामन थामकर चुनावी दंगल में उतरने की कवायद शुरू कर दी है। कुछ रिटायर्ड आईएएस अधिकारी भी लाइन में है, लेकिन रायपुर के कलेक्टर ओपी चौधरी के भाजपा से चुनाव लड़ने की खबर से राजनीति गरमा गई है। बताया जा रहा है कि 2005 बैच के इस आईएएस अफसर ने नौकरी छोड़ भाजपा का दामन थामने का फैसला किया है, यदि सब कुछ ठीक रहा तो ओपी चौधरी रायगढ़ जिले की खरसिया सीट से भाजपा के उम्मीदवार हो सकते हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा में प्रवेश के लिए उनकी दो बार पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात हो चुकी है। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री रमन सिंह की गुड बुक में बतौर आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी का नाम अव्वल रहा है। इसके दो कारण बताए जाते हैं, पहला यह कि वे छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं और उन्होंने छत्तीसगढ़ में ही कार्य करने की इच्छा जाहिर कर अपना मूल कैडर इस प्रदेश को चुना. दूसरा यह कि दंतेवाड़ा में कलेक्टर रहते हुए उन्होंने नक्सल प्रभावित इलाके को एजुकेशन हब में तब्दील किया, जिसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नें वर्ष 2011-12 में उन्हें प्रधानमंत्री एक्सीलेंस अवॉर्ड से सम्मानित किया। दंतेवाड़ा के बाद जनसंपर्क संचालक और रायपुर में कलेक्टर रहते हुए उन्होंने सरकारी योजनाओं को लागू करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. जिसके चलते कलेक्टर ओपी चौधरी से मुख्यमंत्री रमन सिंह काफी प्रभावित रहे।
रायगढ़ की खरसिया सीट पर बीजेपी ने कभी भी जीत नहीं दर्ज की। कभी अटल लहर तो कभी मोदी लहर के बावजूद पिछले विधानसभा चुनावों में इस सीट पर भाजपा को मुंह की खानी पड़ी थी। संयुक्त मध्यप्रदेश के दौरान से खरसिया विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। खरसिया, कांग्रेस के दिवंगत नेता नंद कुमार पटेल की यह परंपरागत सीट रही। पिछले विधान सभा चुनाव के पहले 25 मई 2012 को बस्तर की झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में नंद कुमार पटेल की मौत हो गई थी। उनकी मौत के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे उमेश पटेल ने इस सीट से जीत दर्ज की। खरसिया विधानसभा सीट कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे अर्जुन सिंह और दिलीप सिंह जूदेव के कारण चर्चा में आया 1988 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते अर्जुन सिंह यहां से चुनाव लड़े और उन्हें दिलीप सिंह जूदेव ने चुनौती दी।
खरसिया विधानसभा, अघरिया समुदाय बहुल्य सीट है, जिसके बाद वैश्य समुदाय के सर्वाधिक वोटर हैं। ओपी चौधरी भी अघरिया समुदाय से आते हैं। बता दें कि ओपी चौधरी इस इलाके से पहले युवा हैं जिन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में बाजी मारी। इस लिहाज से ओपी चौधरी का नाम गांव-गांव में मशहूर है। कलेक्टर बनने के बाद तो उनकी ख्याति ऐसी फैली कि इलाके के कई नौजावन उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। अपने गृह नगर में ओपी चौधरी ने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कई शिविर भी लगाए। इन शिविरों में बड़ी तादाद में युवा छात्र छात्राओं ने सिविल सेवा की कोचिंग ली। जिससे उनका झुकाव ओपी चौधरी की ओर बढ़ा।
फिलहाल ओपी चौधरी आईएएस से इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। लेकिन चुनाव लड़ने से पहले भाजपा में प्रवेश को लेकर वो अपना कार्ड नहीं खोल रहे हैं। इस बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने नौकरी से इस्तीफे और राजनीतिक दल में शामिल होने के सवाल को ही टाल दिया। उनकी बातों से साफ झलक रहा था कि जब तक भाजपा हाईकमान से उन्हें टिकट का वादा नहीं मिल जाता, तब तक वो अपनी राजनीतिक इच्छा शक्ति सार्वजनिक नहीं करेंगे। फिलहाल अटकलें लगाई जा रही हैं कि विधान सभा चुनाव में वो खरसिया विधानसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार होंगे।