उत्तर प्रदेश के अमरोहा में बेमेल इश्क से परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में फांसी की सजायाफ्ता शबनम की दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा खारिज कर देने से बावनखेड़ी का मनहूस फार्म हाउस फिर एक बार चर्चाओं में है जहां परिवार के मुखिया समेत एक लाईन में सात लोगों के नरसंहार की याद दिलाती सात कब्रें बनी हुई हैं।
अप्रैल, 2008 में प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने ही सात परिजनों की कुल्हाड़ी से काटकर हत्या मामले में फांसी की तारीख मुकर्रर नहीं की गई है। शबनम को फांसी होती है तो यह आजाद भारत का पहला मामला होगा।
इस फैसले के बाद से शबनम के परिवार में एकमात्र जिंदा बचे चाचा सत्तार सैफी और चाची फातिमा सहित पूरे देश को झकझोरने वाले हत्याकांड की यादें एकबार फिर ताजा हो गई। मनहूस अहाते में फिर से आवाजाही शुरू हो गई जहां एक साथ सात लोगों की कब्रें बनी हुई हैं।
बताया जा रहा है कि आजाद भारत के इतिहास में यह पहली बार ऐसा होने जो रहा है, जब किसी महिला कैदी को फांसी पर लटकाया जायेगा।मथुरा जेल में स्थित उत्तर प्रदेश के इकलौते महिला फांसी घर में शबनम को मौत की सजा दी जाएगी। शबनम पिछले कुछ समय से फिलहाल रामपुर की जेल में बंद है, जबकि सलीम आगरा जेल में कैद है।
मथुरा जेल में 150 साल पहले एक महिला फांसी घर बनाया गया था, लेकिन आजादी के बाद से अभी तक वहां किसी महिला को फांसी नहीं दी गई है। फांसी देने की तारीख अभी तय नहीं है। अगर अंतिम समय में कोई अडचन नहीं आई तो डेथ वारंट जारी होते ही शबनम को फांसी दे दी जाएगी हालांकि सलीम को फांसी कहां पर दी जाएगी यह अभी तय नहीं है।
अमरोहा के हसनपुर कस्बे से सटे छोटे से गांव बावनखेड़ी में साल 2008 की 14-15 अप्रैल की दरमियानी रात का मंजर कोई नहीं भूला है। बेसिक शिक्षा विभाग में कार्यरत शिक्षामित्र शबनम ने रात को अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर अपने पिता मास्टर शौकत, मां हाशमी, भाई अनीस और राशिद, भाभी अंजुम और फुफेरी बहन राबिया का कुल्हाड़ी से वार कर कत्ल कर दिया था। मासूम भतीजे अर्श का गला घोंट दिया था।
घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती और पुलिस महानिरीक्षक गुरुबचन सिंह ने मौके पर पहुंच कर घटना से आहत जनमानस को हत्याकांड के शीघ्र खुलासे का आश्वासन दिया था।
शबनम-सलीम के केस में करीब 100 तारीखों तक जिरह चली। इसमें 27 महीने लगे। जिसके बाद,15 जुलाई 2010 को, जिला न्यायाधीश एसएए हुसैनी ने फैसला सुनाया कि शबनम और सलीम को मृत्यु तक फांसी दी जानी चाहिए।इस मामले में जिरह के लिए करीब 100 तारीखें पड़ी। फैसले के दिन,न्यायाधीश ने 29 गवाहों के बयानों को सुना और 14 जुलाई, 2010 को शबनम और सलीम दोनों को दोषी ठहराया। अगले दिन,15 जुलाई, 2010 को,जिला न्यायाधीश एसएए हुसैनी ने दोनों को केवल 29 सेकंड में मौत की सजा सुना दी। इस मामले में 29 लोगों से 649 प्रश्न पूछे गए और निर्णय 160 पृष्ठों में लिखा गया था।