इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में गोवध संरक्षण कानून का निर्दोष लोगों के खिलाफ दुरुपयोग हो रहा है। जब कभी कोई मांस बरामद होता है तो उसे फारेंसिक लैब में जांच कराए बिना गोमांस करार दे दिया जाता है और निर्दोष व्यक्ति को उस अपराध के लिए जेल भेज दिया जाता है, जो शायद उसने किया ही नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में छुट्टा जानवरों की देखभाल की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि प्रदेश में गोवध अधिनियम को उसकी सही भावना के साथ लागू करने की आवश्यकता है।
गोवध कानून के तहत जेल में बंद रामू उर्फ रहीमुद्दीन के जमानत प्रार्थनापत्र पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि जब कभी कोई गोवंश बरामद किया जाता है तो कोई रिकवरी मेमो तैयार नहीं किया जाता है और किसी को नहीं पता होता है कि बरामदगी के बाद उसे कहां ले जाया जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि गो संरक्षण गृह और गोशाला बूढ़े और दूध न देने वाले पशुओं को नहीं लेते हैं। इनके मालिक भी इनको खिला पाने में सक्षम नहीं है। वह पुलिस और स्थानीय लोगों द्वारा पकड़े जाने के डर से इनको किसी दूसरे राज्य में ले नहीं जा सकते हैं। लिहाजा दूध न देने वाले जानवरों को खुला घूमने के लिए छोड़ दिया जाता है और वे किसानों की फसल बर्बाद कर रहे हैं। ऐसे छुट्टा जानवर चाहे सड़क पर हों या खेत में, समाज को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं। इनको गो संरक्षण गृह या अपने मालिकों के घर रखे जाने के लिए कोई रास्ता निकालने की आवश्यकता है।
जमानत प्रार्थनापत्र पर याची के वकील का कहना था कि याची के खिलाफ प्राथमिकी में कोई विशेष आरोप नहीं है। न ही वह घटनास्थल से पकड़ा गया है। पुलिस ने बरामद मांस की वास्तविकता जानने का कोई प्रयास नहीं किया कि वह गोमांस है अथवा किसी अन्य जानवर का।
कोर्ट ने कहा कि ज्यादातर मामलों में जब मांस पकड़ा जाता है तो उसे गोमांस बता दिया जाता है और बरामद मांस को फारेंसिक लैब नहीं भेजा जाता है। आरोपी को उस अपराध में जेल जाना होता है जिसमें सात साल तक की सजा है और विचारण प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है। कोर्ट ने याची की जमानत मंजूर करते हुए उसे निर्धारित प्रक्रिया पूरी कर रिहा करने का आदेश दिया है।