इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बच्चे के साथ 'ओरल सेक्स' के एक मामले की सुनवाई करते हुए इस अपराध को 'गंभीर यौन हमला' नहीं माना है। कोर्ट ने इस प्रकार के अपराध को पोक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत दंडनीय करार दिया है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कृत्य एग्रेटेड पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट या गंभीर यौन हमला नहीं है। लिहाजा ऐसे मामले में पोक्सो एक्ट की धारा 6 और 10 के तहत सजा नहीं सुनाई जा सकती।
पूरा मामला
2016 में झांसी जिले में एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायतकर्ता के 10 वर्षीय बेटे के साथ 20 रुपये के बदले 'ओरल सेक्स' करने का आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। लड़के को घटना के बारे में किसी को बताने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी गई थी।
घटना के चार दिन बाद दर्ज प्राथमिकी के आधार पर, भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (प्रकृति के आदेश के खिलाफ शारीरिक संभोग) और 506 (आपराधिक धमकी) और पोक्सो अधिनियम की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
दोषी ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अधिनियम, झांसी द्वारा सजायी गयी 10 साल की सजा के खिलाफ अपील की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आंशिक रूप से अपील की अनुमति दी और दोषी को 10 साल के बजाय सात साल जेल की सजा सुनाई।
न्यायमूर्ति अनिल कुमार ओझा ने देखा कि पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता द्वारा किया गया अपराध न तो पोक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के अंतर्गत आता है और न ही पोक्सो अधिनियम की धारा 9(एम) के अंतर्गत आता है क्योंकि वर्तमान मामले में 'पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' है।