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सफाई करने वाला पत्रकार

मध्य प्रदेश के बाबरी गांव में जन्में बीके हिंदुस्तानी पिता जी की नौकरी की वजह से भिलाई के छत्तीसगढ़ में रहे। वहीं पढ़ाई की और उसे ही अपना कर्मक्षेत्र बनाया। लेकिन जब अपने जन्म स्थान लौटे तो कुछ अलग करने के जज्बे के साथ।
सफाई करने वाला पत्रकार

लंबे इकहरे बीके हिंदुस्तानी शुरू से ही जुझारू रहे हैं। छत्तीसगढ़ से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद कई जगह उन्होंने अपनी सेवाएं दीं। उन्हें हमेशा कुछ अलग करने का जुनून रहता है सो सन 1978 में वह साइकल पर निकल पड़े। उनके हौसले के पैडल से जज्बे के पहिए घूमे और 1 साल 13 दिन में वह भिलाई से कन्याकुमारी की दूरी नाप आए। हिंदुस्तानी याद करते हुए कहते हैं, ‘यह धर्मयुग का युग था। मुझे सराहना भी मिली और हमेशा कुछ नया करने का सबक भी।’

जब वह अपने गांव बाबरी पहुंचे तो उन्होंने देखा कि सफाई के प्रति लोगों में चेतना नहीं है। घर तो सभी लोग साफ करते हैं, लेकिन सार्वजनिक जगह को साफ करने में रुचि नहीं दिखाते। उन्होंने चंदे के पैसे से झाड़ू खरीदी और पिछले 21 साल से वह बाबरी गांव के स्कूल और बस स्टैंड को साफ कर रहे हैं।

 

सुबह 6 बजे वह अपने घर से निकलते हैं और 10 बजे तक स्कूल और बस स्टैंड के आसपास की जगह जगमग साफ कर देते हैं। पिछले 21 सालों से चले आ रहे इस नियम को खत्म कर वह अपनी चार गियर की साइकल पर निकलते हैं और दैनिक अखबार के लिए खबरें जुटाने के लिए निकल पड़ते हैं। लोग उन्हें पागल कहते हैं, दीवाना कहते हैं, पर वह हैं कि अपनी धुन में लगे ही रहते हैं। 

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