सेंटर में यास्मीन अकेली मुस्लिम है तो यास्मीन के मोहल्ले में शालिनी अकेली हिंदू -
मिर्जापुर में महिलाओं को होम डेकोर की चीजों की ट्रेनिंग देकर रोजगार देने वाली रंगसूत्रा में काम करने वाली लगभग 500 महिलाओं में यास्मीन फातिमा एकमात्र मुस्लिम महिला है। लेकिन रंगसूत्रा सेंटर में ही काम करने वाली शालिनी कुशवाहा इमामबाड़ा के पास यास्मीन की पड़ोसन है और वहां तमाम घर मुसलमानों के हैं। सिर्फ दो घर हिंदुओं के हैं। यानी रंगसूत्रा सेंटर में यास्मीन अकेली मुस्लिम महिला है तो यास्मीन के मोहल्ले में शालिनी और उसकी एक रिश्तेदार, मात्र दो हिंदू परिवार हैं। शालिनी के पति की आटा चक्की है। वह बतातीं है कि उन्हें तो इस संवाददाता से बात के दौरान दिमाग में आया कि यह मुसलमान हैं और वे हिंदू लेकिन न तो सेंटर में और न ही उनके मोहल्ले में अभी तक किसी के दिलो-दिमाग में यह बात आई है। तीस वर्षीय शालिनी बताती हैं कि लगभग 50-55 मुस्लिम घरों के आसपास अकेला उनका हिंदुओं का घर है। तमाम लोग उनकी दुकान से आटा ले जाते हैं। वह अपनी सास के साथ मुसलमान घरों के शादी-ब्याह तमाम कार्यक्रमों में जाती हैं। सुख-दुख में हिंदु-मुसलमान दोनों एक-दूसरे के साथ साथ खड़े होते हैं।
‘जब शशि सर ने मेरी बोतल से पानी पिया तो मैं रो दी थी’
यास्मीन के पति कालीन बुनने का काम करते हैं। उसके तीन बेटे और एक बेटी है। वह बताती है कि हमारे बच्चे एक साथ खेलते हैं। यास्मीन तीन साल से रंगसूत्रा के सेंटर में काम कर रही हैं। वह बताती है, ‘जब मैं नई-नई यहां आई तो शशि सर को प्यास लगी थी, उन्होंने मुझसे पानी मांगा तो मैंने कहा कि सर बोतल में तो मेरे घर का पानी है,आप पी लेंगे क्या? इस पर शशि सर ने डांटते हुए बोला कि अरे तो क्या हुआ...शशि सर ने मेरी बोतल से पानी पिया, उस दिन मैंने अपनी अम्मी को फोन करके रोते हुए बताया कि शशि सर ने ब्राह्म्ण होते हुए भी मेरी बोतल से पानी पिया।‘ यास्मीन बताती है, लंच टाइम में हम एक साथ खाना खाते हैं। एक-दूसरे के खाने पर टूट पड़ते हैं। मुझे हमेशा दीवाली और होली का इंतजार रहता है, क्योंकि दीवाली की मिठाई और होली की गुझियां मुझे और मेरे घर में सभी को बहुत पसंद है। इसी तरह सेंटर में काम करने वाली शालिनी, सरोज, अंजू, रेनू आदि ईद की सेंवइयों का इंतजार करती हैं। शालिनी बताती है कि ईद के रोज यास्मीन डिब्बे भर कर सेंवई लाती हैं।
रोजगार बांधे रखता है
दादरी वाले मसले से ये महिलाएं खूब वाकिफ हैं। यहां तक कि मिर्जापुर में भी इस प्रकार की अफवाहों के बाजार गरम हैं। लेकिन यास्मीन का कहना है ‘मैं जानती हूं कि कुछ खराब लोग हमारी तरफ भी हैं और इनकी तरफ भी हैं लेकिन घर का चूल्हा और रोजगार कहीं न कहीं हमें बांधे रखते हैं। हम एक साथ घर आते-जाते हैं, खाते हैं, तीज-त्योहार एक साथ मनाते हैं। महीने में मिलने वाले रुपयों से हमारा घर और अच्छे से चलता है। शायद जो लोग एक दूसरे को जानना ही नहीं चाहते वे ही गलतफहमियों का शिकार होते हैं। हमारे तो कभी दिमाग में भी नहीं आता कि शालिनी हिंदू है और वह भी हमें बहुत प्यार करती है।‘