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कौन होगा माकपा का अगला महासचिव

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) माकपा की विशाखापत्तनम में चल रही राष्ट्रीय कांग्रेस में अगला महासचिव कौन होगा, ये सबसे बड़ा सवाल है। सम्मेलन में शिरकत करने वाले प्रतिनिधियों से लेकर देश भर में वामपंथ पर नजर रखने वाले लोगों के लिए यह गहरी दिलचस्पी का विषय है कि क्या सीताराम येचुरी माकपा के नए महासचिव बनेंगे।
कौन होगा माकपा का अगला महासचिव

भारतीय जनता पार्टी की केंद्र में सरकार तथा बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति से निपटने के लिए माकपा अपना राजनीतिक एजेंडा क्या तय करेगी, इस पर माकपा का राष्ट्रीय नेतृत्व सघन बहस से गुजर रहा है। माना जा रहा है कि पार्टी की राजनीतिक लाइन में भी कई परिवर्तन होंगे। नए राजनीतिक परिदृश्य में माकपा को अपने दोस्तों-सहयोगियों और समर्थक दलों में इजाफा करना है। पार्टी महासचिव प्रकाश कारात ने जिस तरह से तीखी आत्म आलोचना से शुरुआत की और साफ शब्दों में कहा कि पार्टी को सोचना चाहिए की आखिर हम लोगों को यह समझाने में क्यों विफल रहे कि हम अलग राजनीति करते है। हम क्यों लोगों को अफनी राजनीति की खासियत से अवगत नहीं करा पाए। प्रकाश कारात ने जिस अंदाज में यह कहा कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में लोगों का विश्वास जीत पाई। हम इस दिशा में विफल रहे। उन्होंने कहा कि 1991 के बाद वैश्वीकरण की उदारवादी नीतियों को देश में लागू किया गया, उस समय पार्टी की राजनीतिक रणनीति इससे मुकाबला करने में सक्षम नहीं थी। पार्टी न तो लोगों को आकर्षित कर पाई और न ही नए इलाकों में बढ़ पाई। पार्टी अपनी स्वतंत्र पहचान को नहीं बचा पाई। पार्टी की रणनीति पश्चिम बंगाल में वाम सरकार की खामियों को उजागर करने में विफल रही। पश्चिम बंगाल में औद्योगिकरण और भूमि अधिग्रहण की वाम सरकार की नीति ने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया। लेकिन राजनीतिक रणनीति के मसौदे में इसका बहुत कम जिक्र है। अंत में प्रकाश ने आप से सीखने की सीख भी दी। प्रकाश कारात ने इस तरह से आत्म आलोचना और राजनीतिक रणनीति पर सवाल उठाकर साफ कर दिया कि इस कांग्रेस में कड़ी कड़े फैसले पार्टी ले सकती है। हालांकि कई दिग्गज कामरेडों का यह भी कहना है कि ये सारे काम प्रकाश कारात को महासचिव के पद पर रहते हुए करने चाहिए थे, जो उन्होंने किए नहीं। अब जब वह इस कुर्सी को छोड़ रहे हैं, तो ये सारी बातें कहने का अर्थ क्या है। उधर प्रकाश कारात के बाद महासचिव बनने की दौड़ में सीताराम येचूरी का नाम सबसे आगे चल रहा है, लेकिन एस रामाचंद्रन पिल्लेई की पीछे नहीं हैं। सीताराम येचूरी को पश्चिम बंगाल के कामरेड़ों का सहयोग प्राप्त है तो कामरेड पिल्लेई केरल का। केरल के पार्टी प्रमुख पिननाराई विजयन ने अपना पूरा जोर पिल्लै पर लगा रखा है। केरल में ही अभी माकपा के पास जमीन बची हुई है और उसका दावा है कि अगले चुनावों में उसकी वापसी हो सकती हैं। वहीं सीताराम येचूरी का नाम चलाने वालों का कहना है कि वही सबसे लोकप्रिय नेता हैं और वाम के परंपरागत आधार के बाहर भी उनकी अपील है। वह अभी 62 साल के हैं और युवाओं में भी लोकप्रिय है। राज्यसभा में सांसद के रूप में उन्होंने एक अलग छवि भी बनाई है। हालांकि कामरेड पिल्लेई के पक्ष में तर्क यह दिया जा रहा है कि वह संगठन के आदमी है। संगठन को विकसित करने में उन्हें महारथ हासिल है। वह पार्टी को जिस रणनीतिक बदलाव से गुजरना है, उससे निकाल सकते हैं। अब देखना होगा कि पार्टी में इन दोनों में से किस पर दांव लगता है, या रेस में कोई तीसरा घोड़ा भी है, जो बाजी मार ले जाए।

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