सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल में अनुच्छेद 355 लागू करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार द्वारा संवैधानिक सीमाओं के उल्लंघन के आरोपों पर गहरी चिंता व्यक्त की। यह याचिका हाल ही में वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में मुर्शिदाबाद में भड़की हिंसा के संदर्भ में दायर की गई थी। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी उस समय आई जब वक्फ अधिनियम पर की गई टिप्पणियों को लेकर भाजपा सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट की तीखी आलोचना की।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मासिह की पीठ ने केंद्र को अनुच्छेद 355 के तहत निर्देश देने की मांग पर कहा, "हमें पहले से ही संसद और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्रों में हस्तक्षेप करने का आरोप झेलना पड़ता है।"
यह प्रतिक्रिया उस समय सामने आई जब अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट से पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने को लेकर दायर नई याचिका को सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। जैन ने बताया कि उन्होंने 2021 में चुनाव बाद की हिंसा को लेकर पहले ही एक जनहित याचिका दाखिल की थी और अब उसी में एक अंतरिम आवेदन भी दाखिल किया गया है। जिसमें हाल ही की घटनाओं को उजागर किया गया है।
जैन ने कहा, "कल की सूची में आइटम नंबर 42 पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने से संबंधित है। यह याचिका मैंने दायर की है। इस याचिका में मैंने पश्चिम बंगाल में हुई कुछ और हिंसक घटनाओं को अदालत के सामने लाने के लिए एक अंतरिम आवेदन (IA) दाखिल किया है। जिसमें कोर्ट से कुछ निर्देश देने और एक पक्षकार बनाने की गुज़ारिश की गई है।”
अनुच्छेद 355 का हवाला देते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्र को राज्य की स्थिति का आकलन करने के लिए एक रिपोर्ट मंगवानी चाहिए। उन्होंने कहा, "जब यह मामला अदालत में सामने आएगा, तो मैं स्पष्ट करूंगा कि हिंसा कैसे हुई।”