सवाल उठते हैं:
क्या देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के बारे में फैसला लेते वक्त कोई पारदर्शी तरीका नहीं अपनाया जाना चाहिए?
क्या उपकृत करने वाली पुरस्कारों की राजनीति लोकतंत्र के लिए खतरनाक नहीं है?
अपने करीबियों को पुरस्कारों की रेवड़ी बांटना कहां तक ठीक है?
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