अध्यक्षीय भाषण में मैनेजर पांडे ने कहा, आपहुदरी एक दिलचस्प और दिलकश आत्मकथा है। यह एक स्त्री की आत्मकथा है। इसमें समय का इतिहास दर्ज है। इसमें विभाजन के समय दंगे दर्ज हैं, इसमें बिहार राजनेताओं के चेहरे की असलियत दर्ज है। इसमें संवादधर्मिता और नाटकीयता दोनों है। यह आत्मकथा इसलिए भी विशिष्ट है कि रमणिका जी ने जैसा जीवन जिया महसूस किया है, वैसा ही लिखा।
मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए लीलाधर मंडलोई ने कहा, एक पाठक के तौर पर मैं इस आत्मकथा को एक स्त्री की मुक्ति या आजादी के तौर पर नहीं देखता। यह स्त्री वैचारिकी भी नहीं है। आत्मकथा में अद्भूत अपूर्व स्मृतियां हैं। इस आत्मकथा के माध्यम से एक जिद्दी लड़की का निर्माण होता है। रमणिका गुप्ता ने इस आत्मकथा के माध्यम से अपने साहस की कथा कही है। आपहुदरी आत्मकथा के रूप में एक नया मोड़ भी है।
कार्यक्रम का विषय प्रवर्तन करते हुए अर्चना वर्मा ने कहा रमना आपबीती के इस बयान में ऐसा है क्या जो मुझ स्तब्ध कर रहा है- नैतिक निर्णयों को इसका ठेंगा, इसका तथाकथित पारिवारिक पवित्रता के ढकोसलों का उद्दघाटन, इसकी बेबाकबयानी, इसकी निस्संकोच निडरता, सच बोलने का इसका आग्रह और साहस या अपने बचाव-पक्ष के प्रति इसकी लापरवाही।
विशिष्ट वक्ता थे पत्रकार अनिल चमड़िया। उन्होंने भी किताब पर प्रकाश डाला और कहा, रमणिका गुप्ता की कहानी नहीं बल्कि रोज-ब-रोज कई-कई रमणिकाओं की दास्तान है।
गीताश्री ने अपने ढंग से बात रखते हुए इसे साहसिक आत्मकथा कहा, जहां कोई पहरेदारी नहीं है। उन्होंने विशेष रूप से इसे उल्लेखित किया कि रमणिका गुप्ता ने जैसा जीवन जिया वैसा यहां लिख दिया। कहीं कोई पाखंड नहीं।
अजय नावरिया ने भारतीय परिवारों की संरचनाओं को आत्मकथा से जोड़ते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, प्रशिक्षण केंद्र स्त्रियों के जीवन को तहस-नहस कर देते हैं। इन प्रशिक्षण केंद्रों के नियम और अनुशासन से जो स्त्रियां बगावत कर देती हैं वे आपहुदरी घोषित कर दी जाती हैं।
कार्यक्रम का संचालन विवेक मिश्र ने किया। स्वागत भाषण सामयिक प्रकाशन के महेश भारद्वाज ने दिया जबकि धन्यवाद ज्ञापन अखिल भारतीय साहित्यिक मंच की समन्वयक सिसिल खाका ने किया।