नए तेवर में कांग्रेस को जमीन पर सक्रिय करने का जिम्मा कुछ नेताओं पर हैं, उनमें से एक हैं जयराम रमेश। हालांकि कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग बहुत पुरानी है और यदा-कदा जोर मारती रहती है। लेकिन इस बार जैसे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को छुट्टी पर भेजा गया और ठीक उसी समय भू-अधिग्रहण के खिलाफ कांग्रेस जंतर-मंतर पर उतरी, उससे लगता है कि पार्टी में बड़े रद्दो-बदल की तैयारी है। कांग्रेस में सांगठनिक चुनाव सितंबर में होने है लेकिन उसकी तैयारी पहले से दिखाई दे रही है। संसद के भीतर लंबे समय बाद कांग्रेस सांसद सक्रिय नजर आ रहे है। एक तरफ राहुल गांधी भूमि अधिग्रहण के खिलाफ मोर्चा खोलते हैं, वहीं पूर्व मंत्री और गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले जयराम रमेश के इस मुद्दे पर पगड़ी पहनाई गई। पार्टी में रद्दोबदल के सवाल पर एक सिरे से चुप्पी है लेकिन इनकार नहीं करता कोई। इस बाबत आउटलुक के द्ब्रयूरो प्रमुख भाषा सिंह के कुछ सवालों का जवाब दिया, पेश हैं अंश:
भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कांग्रेस ने आंदोलन की राह पकड़ी। ञ्चया यह बड़े परिवर्तन की निशानी है?
यह अधिग्रहण एक काला अधिग्रहण है। हम संसद से लेकर सडक़ तक इसका विरोध करेंगे।
कांग्रेस की छवि के साथ संसद और सडक़ पर विरोध जैसे शद्ब्रद थोड़े अटपटे लगते हैं?
हम भीतर से जानते हैं कि यह किस कदर किसान विरोधी है। जब हम यूपीए में कानून बना रहे थे तब भी बहुत दबाव थे। सारे यही तर्क थ। हमने बेहतरीन रास्ता निकाला था।
कांग्रेस को आंदोलन और सांगठनिक सुदृढीकरण में ले जाने की राह तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की है?
सही है। जमीन के सवाल पर कांग्रेस को सक्रिय करने का काम वह लंबे समय से कर रहे हैं।
क्या ये पार्टी के भीतर बड़े परिवर्तनों की सुगबुगाहट है?
पार्टी मजबूत हो, ये किसकी चाह नहीं होगी। हम सब इसी दिशा में काम कर रहे हैं। मौजूदा सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने में हम सब लगे हुए है। पार्टी को नए सिरे से सजाने-संवारने का काम चल रहा है। बड़ा असंतोष देश भर में पनप रहा है और हमें इसके साथ चलना है। लगातार सच के पक्ष में खड़ा होना ही हमारा काम है। हम रैलियां कर रहे हैं, धरने दे रहे हैं क्योंकि हममें लडऩे का माद्दा है।