लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल के साथ उनका यह गठबंधन जमीन पर भी वोटों का कितना ध्रुवीकरण कर पाएगा, इस बारे में तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित उनकी पूरी टीम खामोश है लेकिन इस बार उनके लिए करो या मरो की स्थिति है। ज्यादा से ज्यादा दलों को साथ लेकर चलने की तैयारी में हैं नीतीश कुमार। यही वजह है कि लालू यादव से हाथ मिलाने से पहले वह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने पहुंच जाते हैं। दिल मिलें और गठबंधन पक्का हो, लिहाजा लालू को जन्मदिन पर बधाई देने जाते हैं। साथ ही, उन्होंने तय किया है कि प्रचार में कोई कसर नहीं छोडऩी है। इस बार भारतीय जनता पार्टी के आक्रामक प्रचार को टक्कर देने के लिए आधुनिक शब्दावली के साथ बिहार के विकास को एजेंडा बनाने की तैयारी है। शायद यही वजह है कि पहले प्रवासी बिहारियों के साथ-साथ नौजवानों को बिहार के सक्वमान के साथ जोडऩे और इसके लिए इस गठबंधन को वोट देने की बात हो रही है। तमाम अहम सवालों पर आउटलुक की ब्यूरो प्रमुख भाषा सिंह से उनकी संक्षिप्त बातचीत के अंश:
इस बार चुनाव में मुद्दे क्यों रहेंगे?
हमारा मुख्य मुद्दा है बिहार को उसका खोया हुआ गौरव, उसका सम्मान वापस दिलाना। हमने सुशासन के जरिये यह करके दिखाया है कि कानून का शासन लागू किया जा सकता है। विकास की गाड़ी पटरी पर आ गई है। अपने यहां के नौजवान को बिहार की इस आभा यात्रा का हिस्सा बनना है। बिहारवासियों के दिल में विकास की जो ललक पैदा हुई है, उसे क्षेत्रीय स्तर पर ही पूरा किया जाना चाहिए। विकास का बिहार मॉडल, जिस पर हर बिहारी गर्व करे।
यह कैसे भाजपा के एजेंडे से अलग होगा?
हम सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं। सभी जाति, समुदाय, धर्म, सब यहां हैं। अलगाव और वैमनस्य की कोई जगह नहीं है। हम बांटने में विश्वास नहीं रखते। बिहार से हमेशा अमन की राह निकली है और इस बार भी निकलेगी, हमारा पक्का विश्वास है।
सरकार की क्या उपलब्धियां हैं, जिन पर आपको जनता वोट देगी?
हमारे विकास मॉडल को नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन तक ने सराहा है। शिक्षा क्षेत्र में हमने जो काम किया, वह लोगों के सामने है। खासतौर से लड़कियों का ड्रॉप आउट कम हुआ। बिहार में साइकिल लिए लड़कियां स्कूल जाती दिखाई देती हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभावी ढंग से काम कर रहे हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार हुआ है। कानून व्यवस्था की स्थिति सबके सामने है। स्पेशल कोर्ट बनाए गए जिससे 55 हजार लोगों को सजा सुनाई गई। सिटीजन चार्टर लागू किया गया। लोगों तक जानकारी पहुंचाने की कोशिश की गई। मनरेगा की सफलता इतनी रही कि बिहार से बाहर जाने वाले मजदूर वापस आ गए। खुद पंजाब के मुख्यमंत्री ने इस बात की गवाही दी। बिहार में मजदूरों की वापसी के साथ खेती में सुधार आया है। प्रवासी बिहारी भी राज्य को गर्व से देख रहा है। अब बिहार की छवि बीमारू, बेचारगी वाली नहीं रही। यह उगता बिहार है, जिसे अपने पर गर्व है। इस अंतर को बिहार की जनता भी महसूस कर रही है।
अगर आपकी जीत होती है तो क्या राष्ट्रीय स्तर पर एक विकल्प के तौर पर देखे जाएंगे?
अभी बिहार का चुनाव लड़ रहे हैं। और कुछ नहीं।
क्या लोकसभा चुनावों की तरह इस बार भी बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू चलेगा?
चुनाव बिहार की धरती पर बिहार की सरकार के लिए हो रहा है। लोकसभा चुनावों के समय भी जो सर्वे आए थे, वह बता रहे थे कि करीब 68 फीसदी लोग विधानसभा में हमारी सरकार ही चाहते हैं।
आपका यह गठबंधन जमीन पर कितना सफल होगा। भाजपा का कहना है कि यह बेकार और अवसरवादी गठजोड़ है?
हम साथ हैं और साथ ही चुनाव में जा रहे हैं। इससे अधिक कुछ नहीं।