स्वास्थ्य संबंधी खतरों से जूझ रहे भारत की एक और खतरनाक तस्वीर उजागर हुई है। भारत में आधे से अधिक एंटीबायोटिक दवाएं बगैर मंजूरी के ही बिक रही है। भारत में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अनियमित रुप से एंटीबायोटिक्स का उत्पादन और ब्रिकी कर रही है।
द टाइम्स ऑफ इंडिया ने मेरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के हवाले से बताया है कि भारत, ब्रिटेन या अमेरिका के बाजारों में लाखों एंटीबायोटिक गोलियां बिना नियमन के बेची जा रही हैं।
यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक, 2007 और 2012 के बीच 118 एफडीसी एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री भारत में हुई। इनमें से 64 फीसदी को केंद्रीय ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) ने मंजूरी नहीं दी थी। लेकिन स्वीकृति नहीं मिलने के बाद भी ये भारत अवैध तरीके से बेची जा रही हैं। यूएस या यूके में केवल 4 प्रतिशत एफडीसी (एक गोली में दो या दो से ज्यादा दवाओं से बना फार्म्युलेशन) को मंजूरी दी गई है।
रिपोर्ट की मानें तो, भारत पहले से ही वैश्विक तौर पर एंटीबायोटिक खपत और एंटीबायोटिक प्रतिरोध में सबसे आगे रहा है। भारत में एफडीसी एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री लगभग 3,300 ब्रांड नाम के तहत की जा रही है। जिन्हें लगभग 500 दवा निर्माताओं द्वारा बनाया जा रहा है। इनमें से 12 बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं। 188 एफडीसी को 148 ब्रांड नाम के अंतर्गत 45 प्रतिशत दवाईयां एबॉट, एस्ट्रा जेनेका, बैक्सटर, बायर, एली लिली, ग्लेक्सोस्मिथ-क्लाइन, मर्क / एमएसडी, नोवार्टिस, फाइजर, सोनोफी-एवेंटिस और वाईथ जैसी कंपनियां तैयार कर रही हैं।