प्रो. शास्त्री ने उद्घाटन संबोधन में कहा, उक्ति विशेष, यानी कहने का ढंग ही काव्य कहलाता है और वह हर भाषा में संभव है। शब्द नाम की ज्योति अगर प्रकाशित न हो तो तीनों लोकों में अंधकार व्याप्त हो जाएगा। संस्कृत आचार्यों द्वारा साहित्य के बारे में कही गई परिभाषाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्यकार काव्य रचना करते हुए अपने लिए एक अलग संसार की रचना करता है। वह साहित्यिक रचना से अजर-अमर हो जाता है। साहित्य अकादेमी के साथ 1967 से अपने संबंधों को याद करते हुए शास्त्री ने कहा कि इसी के जरिए मुझे ज्यादातर लेखकों से परिचित होने का मौका मिला है। उन्होंने साहित्यकारों की इस संस्था की प्रगति पर खुशी जाहिर की। अकादेमी के अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने अकादेमी की वर्ष 2016 की उपलब्धियां गिनाते हुए अकादेमी परिवार को बधाई दी।
सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने बताया कि अकादेमी ने पिछले वर्ष 580 कार्यक्रम किए 482 पुस्तकें प्रकाशित कीं। इतना ही नहीं अकादेमी ने देशभर के 178 पुस्तक मेलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। साहित्यकारों पर बनी चार नई फ़िल्मों के साथ उनकी संख्या 127 हो गई है।
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष्य में मातृभाषा संरक्षण पर कल शुरू दो द्विवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आज भी जारी रही। कल पहली बार दिल्ली में हुए भाषा सम्मान अर्पण समारोह में चार भाषा विद्वानों -- हरिहर वैष्णव (हल्बी), निर्मल मिंज (कुरुख), लोजङ जमस्पल एवं थुप्सटन पालदन (लद्दाखी) -- को सम्मानित किया गया। शाम को कच्छी संगीत की रोचक एवं रोमांचक प्रस्तुति ने दर्शन का मनोरंजन किया।