12 जून 2025 की दोपहर भारतीय विमानन इतिहास की एक और काली तारीख बन गई। एयर इंडिया की फ्लाइट AI‑171, जो अहमदाबाद से लंदन गेटविक के लिए रवाना हुई थी, टेकऑफ़ के कुछ मिनट बाद ही दुर्घटनाग्रस्त हो गई। दोपहर 1:38 बजे जैसे ही बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान ने सरदार वल्लभभाई पटेल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरी, पायलट ने ‘मायडे’ कॉल दी और कुछ ही सेकंडों में संपर्क टूट गया। विमान, जो सामान्य ट्रैक पर उड़ान भर रहा था, अचानक तेज़ी से नीचे आया और मेघाणी नगर क्षेत्र के डॉक्टर हॉस्टल की इमारत से जा टकराया। भयंकर धमाके और आग की लपटों ने पूरे इलाके को हिला दिया। आसमान में धुएँ के बादल छा गए और स्थानीय लोग डर के मारे घरों से बाहर निकल आए। विमान हादसे की खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया। यह सिर्फ एक तकनीकी विफलता नहीं थी, बल्कि सैकड़ों जिंदगियों के खत्म होने की त्रासदी थी। मीडिया चैनलों ने पल-पल की जानकारी देना शुरू किया और देखते ही देखते यह खबर वैश्विक सुर्खियाँ बन गई। हादसे की भयावहता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि क्रैश साइट पर सेना, एनडीआरएफ, और स्थानीय प्रशासन को एक साथ तैनात करना पड़ा। इस त्रासदी ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया कि आधुनिक तकनीक और एयरलाइन सुरक्षा के तमाम दावों के बावजूद, क्या हम वास्तव में सुरक्षित हैं?
हादसे का सबसे करुण पक्ष वह आँकड़ा था, जिसने हर भारतीय को भीतर तक तोड़ दिया। इस विमान में कुल 242 लोग सवार थे - जिनमें 230 यात्री (217 वयस्क, 11 बच्चे और 2 शिशु) और 12 क्रू सदस्य शामिल थे। रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से कोई भी जीवित नहीं बचा, सिवाय एक व्यक्ति के जिसे सीट 11A से चमत्कारिक रूप से बचाया गया। मृतकों में 169 भारतीय नागरिक थे, जबकि बाकी में 53 ब्रिटिश, 7 पुर्तगाली और 1 कनाडाई नागरिक शामिल थे। जहाँ यह हादसा हुआ, वहाँ B.J. मेडिकल कॉलेज का डॉक्टर हॉस्टल स्थित है। जिस इमारत से विमान टकराया, वहाँ उस समय दर्जनों छात्र दोपहर का भोजन कर रहे थे। कम से कम 5 छात्रों की मौके पर ही मौत हो गई और कई घायल अवस्था में अस्पताल ले जाए गए। इन छात्रों की आयु 22 से 28 वर्ष के बीच थी - वे अपने जीवन की शुरुआत में थे, अपने सपनों के बिल्कुल करीब। पीड़ित परिवारों के लिए यह सिर्फ एक भौतिक नुकसान नहीं था, बल्कि जीवन का वह हिस्सा छिन गया था जिसमें सपने, उम्मीदें, और भावनाएँ बसती हैं। इस हादसे ने उन छात्रों के माता-पिता, दोस्तों और साथियों को ऐसा खालीपन दिया है जिसे भरना शायद नामुमकिन है। यह त्रासदी केवल एक विमान हादसा नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी की आकांक्षाओं पर लगा ग्रहण बन गई।
जब कोई विमान इस प्रकार दुर्घटनाग्रस्त होता है, तो हर किसी का ध्यान सबसे पहले तकनीकी कारणों की ओर जाता है। अहमदाबाद हादसे में भी यही हुआ। मौसम संबंधी डेटा के अनुसार उस समय आसमान साफ था, और दृश्यता सामान्य से बेहतर थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि दुर्घटना का मुख्य कारण तकनीकी या यांत्रिक त्रुटि हो सकता है। जिस विमान से यह हादसा हुआ वह VT‑ANB रजिस्ट्रेशन वाला बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर था, जिसे 2013 में निर्मित किया गया था और जनवरी 2014 से एयर इंडिया के बेड़े में था। विशेष बात यह है कि यह दुनिया का पहला ड्रीमलाइनर विमान है जो इस प्रकार के क्रैश का शिकार हुआ। टेकऑफ़ के कुछ ही सेकंड के भीतर पायलट ने “मायडे” कॉल दी, जो यह दर्शाता है कि उन्हें किसी बड़ी तकनीकी खराबी का आभास हो गया था। एयर ट्रैफिक कंट्रोल से प्राप्त रडार ट्रैकिंग बताती है कि विमान ने अचानक ऊँचाई खोई और तेज़ी से नीचे गिरा। यह या तो इंजन फेल्योर, या फिर कंट्रोल सिस्टम में गंभीर गड़बड़ी का संकेत देता है। अब DGCA, एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो, बोइंग और GE Aerospace के विशेषज्ञ मिलकर इस त्रासदी के कारणों की जाँच कर रहे हैं। ब्लैक बॉक्स और फ्लाइट वॉयस रिकॉर्डर को खोजकर उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करना अब अनिवार्य हो गया है।
हादसे के तुरंत बाद जैसे ही दृश्य सामने आया, पूरा प्रशासनिक तंत्र सक्रिय हो गया। सबसे पहले CISF और एयरपोर्ट सुरक्षा दल घटनास्थल पर पहुँचे। फायर ब्रिगेड की टीमों ने जलते विमान और हॉस्टल के मलबे के बीच से घायलों और शवों को निकालना शुरू किया। NDRF को विशेष रूप से राहत कार्य के लिए बुलाया गया। डॉक्टर हॉस्टल से जुड़ा अस्पताल आपातकालीन स्थिति में बदल गया, जहाँ घायलों का इलाज शुरू हुआ। सरकार की ओर से राहत घोषणाएँ तुरंत की गईं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे पर गहरा शोक जताया, वहीं ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने भी अपनी संवेदनाएँ प्रकट कीं। एयर इंडिया और टाटा ग्रुप ने प्रत्येक मृतक के परिवार को ₹1 करोड़ मुआवज़ा देने की घोषणा की, साथ ही पीड़ित परिवारों की संपूर्ण चिकित्सा देखभाल का वादा भी किया। अहमदाबाद एयरपोर्ट के संचालक अडानी समूह ने राहत कार्य में विशेष भूमिका निभाई। UK Foreign Office ने हेल्पलाइन जारी की, जिससे विदेशी नागरिकों के परिजन संपर्क कर सके। वहीं गुजरात सरकार ने 3 दिन का राजकीय शोक घोषित किया। इस समन्वित बचाव कार्य ने यह दिखाया कि आपदा की घड़ी में तंत्र सक्रिय हो सकता है - बशर्ते इच्छाशक्ति और संवेदनशीलता दोनों साथ हों।
जैसे ही हादसे की खबर सामने आई, मीडिया चैनलों पर लाइव कवरेज शुरू हो गया। सोशल मीडिया पर #AhmedabadCrash ट्रेंड करने लगा। हादसे की तस्वीरें -जिसमें जलता हुआ टेल सेक्शन, हॉस्टल की टूटी छत, और भागते हुए लोग दिख रहे थे - तेज़ी से वायरल हुईं। भारतीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने भी इस हादसे को प्रमुखता से कवर किया। बॉलीवुड से भी संवेदना संदेश सामने आए। विक्की कौशल, जान्हवी कपूर, और आर. माधवन जैसे कलाकारों ने सोशल मीडिया पर अपने पोस्ट में इस दुर्घटना पर शोक जताया। इन संदेशों ने देशवासियों को यह अहसास दिलाया कि यह सिर्फ अहमदाबाद की घटना नहीं थी, यह एक राष्ट्रीय त्रासदी है। हालांकि, कुछ जगहों पर मीडिया की संवेदनहीनता भी सामने आई -जैसे शवों की स्पष्ट तस्वीरें दिखाना या पीड़ित परिवारों से बेहूदा सवाल पूछना। साथ ही, कुछ यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया अकाउंट्स ने अफवाहें फैलाईं कि विमान को हाईजैक किया गया था या यह आतंकी हमला था - जो बाद में झूठ साबित हुआ। इस प्रकार, हमें यह स्वीकार करना होगा कि जहाँ मीडिया सूचना का सशक्त माध्यम है, वहीं उसे जिम्मेदारी से व्यवहार करने की ज़रूरत है।
इस हादसे ने एक बार फिर विमानन सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे पहली ज़रूरत है - DGCA को पूर्ण स्वायत्तता देने की, ताकि वह राजनीतिक या कॉर्पोरेट दबाव से मुक्त होकर सुरक्षा मानकों की निगरानी कर सके। एयरलाइन कंपनियों को हर तीन महीने में अपनी तकनीकी जाँच की रिपोर्ट सार्वजनिक करनी चाहिए। पुराने विमानों को चरणबद्ध रूप से हटाना और पायलटों की ट्रेनिंग को नियमित करना भी अनिवार्य हो गया है। सिमुलेटर आधारित प्रशिक्षण, आपातकालीन परिस्थिति में निर्णय लेने की क्षमता और उड़ान के दौरान मानसिक स्वास्थ्य की निगरानी जैसी व्यवस्थाएँ हर एयरलाइन में होनी चाहिए। ब्लैक बॉक्स और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर की जानकारी जनता से नहीं छुपाई जानी चाहिए। अमेरिका और यूरोप में इनकी जांच की समयसीमा तय होती है, भारत में भी इसे लागू किया जाना चाहिए। यात्रियों को फ्लाइट इंश्योरेंस और सुरक्षा मानकों की पूरी जानकारी देने के लिए एयरपोर्ट पर जागरूकता केन्द्र खोले जाने चाहिए। यह हादसा सिर्फ एक त्रासदी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। हम चाहें तो इसे बदलाव की शुरुआत बना सकते हैं - जिससे भविष्य में कोई और AI‑171 अपने गंतव्य तक पहुँचने से पहले राख न बन जाए।