अमिताव घोष को इससे पहले दो बार उत्कृष्ट साहित्य के लिए दिए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय मैन बुकर पुरस्कार के लिए अंतिम चयनित लेखकों में शुमार किया जा चुका है।
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक घोष ने कहा कि यह उनके लिए एक लंबा सफर रहा है। सी ऑफ पपीज़ के लेखक घोष ने कहा कि 30 साल पहले जब हम लेखक बनना चाहते थे तो इसकी हंसी उड़ाई जाती थी। कारण कि हम जैसे लोग लेखक नहीं बनना चाहते थे। हम नौकरशाह या बैंक प्रबंधक बनना चाहते थे। लेकिन बाद के बरसों में चीजें बदल गईं। इस बीच, अरविंद अडिगा का सेलेक्शन डेको फिक्शन श्रेणी में सम्मानित किया गया जबकि सिद्धार्थ मुखर्जी के दजीन को गैर फिक्शन श्रेणी में पुरस्कार मिला।
कहते हैं, प्रतियोगी परीक्षाएं देकर नौकरशाह बनने की इच्छा और तदनुसार पढ़ाई करने वाले जमाने में अमिताव घोष कब बड़े लेखकों को पढ़ते-पढ़ते खुद लेखक बन गए, इस पर उन्हें भी आश्चर्य होता है। लेकिन शायद उन्हीं में से किसी या कुछ से प्रेरणा मिली और वे लिखने लगे। जो भी हो अब तो वे अंग्रेजी साहित्य के जाने-माने लेखक हैं और सी ऑफ पोपीज़ कोर्ट डॉन्सर, लाइफ सर्कल ऑफरीज़न्स, कूली, डिवाइन लाइफ जैसी मशहूर किताबों के लिए जाने जाते हैं।