केरल साहित्य उत्सव की तरह जयपुर में भी साहित्य महोत्सव में सीएए और एनआरसी की गूंज सुनाई पड़ रही है। फिल्म अभिनेत्री नंदिता दास, जनता दल यूनाइडेट के नेता पवन के वर्मा और कांग्रेस की मार्गरेट अल्वा ने इस बारे में अपनी आवाज बुलंद की है। साहित्योत्सव में राजनीति से इतर अभिनेत्री से लेखिका बनीं लीजा रे ने कैंसर से जंग जीतने पर बात की। लीजा कैंसर सर्वाइवर हैं।
जयपुर में भी शाहीन बाग की चर्चा
अभिनेत्री नंदिता दास ने कहा सीएए और एनआरसी को जोड़ना खतरनाक है। इनका विरोध करते हुए दास ने कहा कि यह देश तोड़ने वाला कानून है। देश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि लोगों को धर्म के नाम पर बांटा जा रहा है। दास ने दिल्ली के शाहीन बाग का भी जिक्र किया।
सांस्कृतिक लचीलापन जरूरी
पवन वर्मा ने कहा कि कोई ताकत हमारे पूर्वजों के संविधान की स्वतंत्रता को छीन नहीं सकती। वर्मा ‘सांस्कृतिक लचीलेपन’ विषय पर एक सेशन में बोल रहे थे। लेखक और राजनयिक से राजनेता बने वर्मा ने कहा कि भारत का संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है जो रचनात्मकता की नींव है। वर्मा ने कहा कि जो लोग स्वतंत्रता को खारिज करते हैं, वे रचनात्मकता को खारिज करते हैं।
मार्गरेट अल्वा ने दी शाह को चुनौती
इससे पहले कांग्रेस की वरिष्ठ नेता मार्गरेट अल्वा ने भी एनआरसी, सीएए मुद्दे पर जयपुर लिट्रेचर फेस्टिवल में अपनी बात रखी। अल्वा ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम “सभी भारतीयों को दी गई संवैधानिक गारंटी और अधिकारों” की उपेक्षा करता है और न्यायिक प्रणाली जिसे संविधान का रक्षक और व्याख्याता माना जाता है, “उसने हमें विफल कर दिया है।”
उन्होंने सख्त लहजे में कहा, “मैं किसी को भी किसी भी प्रकार के कागज नहीं दिखाऊंगी। सत्तर सालों से मैं भारत की नागरिक हूं। आप होते कौन हैं मेरी पहचान पूछने वाले। आपको मेरी पहचान चाहिए तो यरवदा और ऑर्थर रोड़ जेल के रेकॉर्ड चेक कीजिए। वहां आपको स्वतंत्रता सेनानियों की सूची में मेरे पूर्वजों के नाम मिलेंगे। मुझे नहीं लगता कि शाह साहब ऐसा कोई दावा कर सकते हैं।”
अभिनेत्री से लेखिका बनीं लीजा रे
राजनीति से इतर इस समारोह में सुपरमॉडल-अभिनेत्री लीजा रे ने भी शिरकत की। उन्होंने कैंसर के खिलाफ लंबी जंग लड़ी है। लीजा का कहना है कि वो किताबें ही थीं जिन्होंने उनके ‘अंधियारे दिनों’ में साथ दिया। अपनी पुस्तक ‘क्लोज टू द बोन’ के बारे में बात करते हुए लीजा ने कहा कि वह इसे संस्मरण के रूप में नहीं बल्कि ‘आत्मा के साथ यात्रा वृत्तांत’ का रूप कहना पसंद करती हैं। इस किताब में कैंसर के साथ उनकी लड़ाई के बारे में उन्होंने बात की है। कैंसर से लड़ाई के बारे में लीजा कहती हैं, “इस बीमारी ने उन्हें सफलता के मायने समझाए।”