उन्होंने ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली को लेकर महात्मा गांधी के रुख को उद्धृत करते हुए कहा, उपनिवेशवाद भारतीय ज्ञान के वृक्ष को उखाड़ रहा है और हम मौजूदा समय में इससे जूझ रहे हैं। पूंजीवादी उपभोक्तावाद का लोक-संस्कृति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह लोगों को परंपराओं से दूर ले जाता है।
उन्होंने साहित्य अकादमी के साहित्योत्सव में आज ‘लोकसाहित्य : कथन एवं पुनर्कथन’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बोलते हुए किस्सागोई की भारतीय मौखिक परंपरा के महत्व पर जोर दिया।
तिवारी ने कहा, भारतीय समाज मौखिक परंपरा का पालन करता है। हमारे पास आज जो भी प्राचीन पौराणिक कथाएं हैं वे लंबे समय से चली आ रही मौखिक परंपरा से आती हैं।
जहां तिवारी ने लोक-संस्कृति की समृद्ध परंपरा की बात की, वहीं अकादेमी के उपाध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने इस बात पर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया कि आज के शोधकर्ता किस तरह लोकसंस्कृतियों पर संकट पैदा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, इस सदी में लोक परंपराएं संकट का सामना कर रही हैं जो हमारी निरंतरता पर खतरा पैदा कर रही हैं। यह संकट औद्योगीकरण के कारण या जनसंचार के विकास के कारण नहीं है। लोक परंपराएं इन सभी बदलावों से निपट सकती हैं। संकट एक दूसरे रूप में है जो कि शोधकर्ता की आत्मचेतना से संबंधित है।