डा. धर्मवीर को चाहने वाले लोगों ने उनके आलोचक, चिंतक, सरोकारी, दार्शनिक आदि रूपों की बार बार याद किया है। आमतौर पर कहा गया कि एक ईमानदार किंतु विवादास्पद दलित चिंतक का इस तरह जाना अपने समाज की बड़ी क्षति है। इससे पूर्व लेखक, समीक्षक, पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने अपने फेसबुक वाल पर लिखा, वे हमारे समाज के ऐसे जागरूक सदस्य थे जिनके बारे में मुक्तबोध की पंक्तियों को पलट कर कहा जा सकता है कि दिया बहुत ज्यादा लिया बहुत कम। ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरुद्ध इतनी विद्वता और शोधपरक दृष्टि से विमर्श चलाने की अद्भुत सामर्थ्य थी धर्मवीर में। हिंदी की आत्मा अद्भुत किताब है जिसे हिंदी समाज के हर हितचिंतक को ध्यान से देखना चाहिए और उससे प्रेरणा लेकर हिंदी की सेवा और भाषा निर्माण करना चाहिए। कबीर और प्रेमचंद पर उन्होंने बड़े बड़े आलोचकों को ललकारा और उसके चलते उन्हें हाशिए पर ठेल दिया गया। कई मशहूर लोगों ने उनकी आलोचना का जवाब दिया पर बिना नाम लिए। इस बात से वे बहुत दुखी थे और इसे हिंदी समाज की बेईमानी मानते थे। लेकिन निजी जीवन की एक पीड़ा ने उनके चिंतन में भारी लोचा पैदा किया और उनके कई आलोचक उन्हें उसी चश्मे से देखने लगे। हकीकत में धर्मवीर बेहद मानवीय और करुणा से भरे व्यक्ति थे जो समतावादी समाज की तलाश में भटकते हुए दुनिया से चले गए। मैं उनके प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं।
आश्विन ने कहा साथियो हिंदी के प्रखर आलोचक और समाज, संस्कृति, दर्शन के महत्वपूर्ण विद्वान डॉक्टर धर्मवीर का निधन 9 मार्च 2017 को हो गया. वे लंबे समय से आँतों के केंसर से पीड़ित थे.