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इन्टरव्यू - धीरेन्द्र कुमार गौतम : "कामयाबी के लिए काम ही करना पड़ेगा"

सिनेमा बहुत तेज़ी के साथ महानगरों से छोटे शहरों की तरह शिफ्ट कर चुका है। अब छोटे शहर की कहानियों को बड़ा...
इन्टरव्यू - धीरेन्द्र कुमार गौतम :

सिनेमा बहुत तेज़ी के साथ महानगरों से छोटे शहरों की तरह शिफ्ट कर चुका है। अब छोटे शहर की कहानियों को बड़ा स्पेस मिल रहा है। इसका एक फ़ायदा तो यह हुआ है कि छोटे शहरों की कहानियां यानी असल भारत की कहानियां सिनेमाई परदे पर कही जाने लगी हैं, वहीँ दूसरी तरफ़ छोटे शहर की प्रतिभा को एक मौक़ा मिला है, बड़े मंच पर अपना हुनर को दिखाने का। एक ऐसे ही अभिनेता हैं धीरेन्द्र कुमार गौतम, जिन्होंने अपने हुनर से सभी को प्रभावित किया है। धीरेन्द्र ने आयुष्मान खुराना अभिनीत फिल्म "बाला" में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब धीरेन्द्र सोनी लिव एप की वेब सीरीज "गर्मी" में नजर आ रहे हैं। निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की वेब सीरीज "गर्मी" छात्र राजनीति पर आधारित है और इसमें धीरेंद्र ने महत्वपूर्ण किरदार निभाया है। धीरेन्द्र से उनके अभिनय सफर के विषय में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की। 

 

साक्षात्कार से मुख्य अंश: 

 

 

 

 

 

 

गर्मी के विषय में कुछ बताइए? किस तरह का क़िरदार है आपका ? 

 

 

 “गरमी” इलाहाबाद युनिवर्सिटी की असल राजनीतिक कहानी है,जिसे निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने अपने अन्दाज़ में प्रस्तुत किया है। चूंकि तिग्मांशु धूलिया ख़ुद इलाहाबाद से जुड़े हुए हैं इसलिए इस आने वाली “गरमी” की तेज़ गरमाहट को बख़ूबी महसूस कर पायेंगे दर्शक। मैंने इस सीरीज़ के मुख्य किरदार “अरविंद” के दोस्त अजय का किरदार निभाया है। मैं बहुत ख़ुश-क़िस्मत हूँ कि मुझे निर्देशक तिग्मांशु धूलिया के साथ काम करने का मौक़ा मिला है। वो अच्छे इंसान होने के साथ-साथ ख़ुद में एक इंस्टिट्यूशन भी हैं। इस शो के दौरान बहुत कुछ सीखने और समझने को मिला है मुझे। मैं इस अनुभव के लिए ईश्वर का आभार व्यक्त करता हूं। 

 

 

 

बचपन कैसा रहा, बचपन की क्या यादें हैं ?

 

बचपन की ख़ूबसूरत यादें हैं।बचपन में एक ही प्यार था और वह था कंचे खेलना। इस बात से पिताजी को सख्त ऐतराज़ था।उनकी नज़र में आवारा लड़के कंचे खेला करते थे। शुरुआत से ही मेरे भीतर कला के प्रति लगाव था। स्कूल में निबंध प्रतियोगिता होती तो मैं हमेशा भाग लेता और अव्वल आता।तब कुछ सुनियोजित नहीं था कि आगे चलकर कोई लेखक या एक्टर बनेंगे।बस जिस काम में मज़ा आता था, अच्छा लगता था सो करते जाते थे।

 

 

सिनेमा, थिएटर का चस्का कब और किस तरह से लगा ?

 

ग्यारहवीं क्लास तक जीवन में पढ़ाई, लिखाई के साथ गायन, डांसिंग, लेखन चल रहा था।जब मैं बारहवीं क्लास में था, तब मुझे पता लगा कि मेरे भीतर एक हुनर है जिसे “ बीट बॉक्सिंग ” कहते हैं। तब मैं बीट बॉक्सिंग की स्टेज परफॉरमेंस देने लगा था।मगर इन सबको करते हुए, मुझे कुछ कमी महसूस हो रही थी।मैं खुद को पूरी तरह से ज़ाहिर नहीं कर पा रहा था।उस वक़्त एक दोस्त था जो थिएटर करता था, उसने रंगमंच के बारे में बताया और इस तरह मेरा नाटकों की दुनिया में आना हुआ। एक बड़ी ख़ूबसूरत बात जो रंगमंच के प्रति मेरे भीतर आकर्षण पैदा करती थी, वह यह कि इसमें सिंगिंग, डांसिंग, राइटिंग, एक्टिंग आदि गुणों का इस्तेमाल एक माध्यम से हो रहा था। मुझे लगा यह वह चीज़ है, जिसके ज़रिए मैं खुद को खुलकर बढ़िया से ज़ाहिर कर सकूंगा। 

 

 

अभिनय और थिएटर के इस सफर में परिवार की तरफ से किस तरह की प्रतिक्रिया मिली ?

 

परिवार को रंगमंच आदि की कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए घर वालों की यह प्रतिक्रिया रहनी लाज़िमी थी कि ये नाटक वाटक में ज़िन्दगी बर्बाद कर के क्या हासिल होगा। वह कहते कि कोई नौकरी देखो और कमाने का जुगाड़ ढूंढो।वरना उम्र निकल रही है, कल को सब कुछ हाथ से निकल जाएगा और पैदल हो जाओगे। मगर जब आपको मालूम हो चला हो कि आप किस मकसद से दुनिया में आए हैं, क्या आपको ख़ुशी देता है, फिर कुछ और सुनाई नही देता।मैंने भी ज़्यादा इधर उधर की बातों पर ध्यान न देते हुए मेहनत की और मेहनत जिस दिन रंग लाई, उस दिन मैं सिनेमा घरों की स्क्रीन पर नज़र आ रहा था।मौक़ा था फ़िल्म “ बाला ” की स्क्रीनिंग का। आयुष्मान खुराना के साथ जब स्क्रीन शेयर की, घर वालों की सब शिकायतें दूर हो गईं। आज सारा परिवार मेरी तरक्की से खुश है। 

 

 

 

फिल्म इंडस्ट्री की स्पर्धा में खो जाने की असुरक्षा नहीं सताती आपको ?

 

कभी-कभी ऐसे विचार आते हैं लेकिन फिर लोगों का प्यार और अपने किए गये पुराने प्रयासों को देखकर यही लगता है कि यदि सही दिशा में मेहनत करता रहूंगा तो ज़रूर एक दिन अच्छे मुक़ाम को हासिल कर लूँगा। मुझे ऐसा लगता है कि अगर आप अपने आप को और अपने काम को समय के साथ अच्छी तरह निखारते रहते हैं तो फिर किसी भी तरह की स्पर्धा में खो जाने का डर आपको नहीं सताता। आप में इतना आत्मबल पैदा हो जाता है कि आप हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार होते हैं ।

 

 

 

इंडस्ट्री में अभिनेता बहुत जल्दी टाइप कास्ट हो जाते हैं और उन्हें एक तरह की ही भूमिका मिलती रहती है। इससे निपटने की क्या तरकीब है आपके पास?

 

अभी मैं करियर के जिस पड़ाव पर हूं, उस समय मुझे जो रोल ऑफर होते हैं,उन्हें मैं बस पूरी ईमानदारी और समझदारी के साथ निभाता हूं । ये बात सच है कि अगर आपका कोई भी काम सबको पसंद आता है तो आपको वैसे ही रोल ज़्यादा ऑफर होने लगते हैं। सबको लगता है कि आप एक खास किरदार निभाने के लिए परिपक्व हैं। लेकिन इसकी लगाम पूरी तरह से कलाकार के हाथों में होती है। उसके पास हमेशा अपना हुनर दिखाने का अवसर होता है। यदि वह अपनी विविधता दिखा देता है तो उसे जरुर अलग अलग तरह के किरदार मिलते हैं। मेरा मानना है कि कलाकार को ज्यादा टेंशन नहीं लेनी चाहिए। अपनी तैयारी पूरी होनी चाहिए और सही मौका मिलने पर अपना संपूर्ण देना आना चाहिए। 

 

 

 

फिल्म जगत को लेकर आपके अभी तक के क्या अनुभव रहे हैं? 

 

 

यह फ़िल्म इंडस्ट्री है। नाम में ही इंडस्ट्री जुड़ा है। यानी कारोबार है यह, एक बिज़नेस। यहां हर आदमी पर पैसा लगता है। आप कितने ही बड़े हुनर बाज़ क्यूं न हों, अगर आप पैसे कमाकर नहीं दे सकते तो आपकी यहां वैल्यू ज़ीरो है। जिसकी प्रॉफिट दे सकने की कुव्वत होगी, जो ख़ालिस प्रोफ़ेशनल होकर काम कर सकेगा, वह खूब काम पाएगा, नाम, पैसा कमाएगा। आपको खुद को एक प्रोडक्ट की तरह लेकर चलना है और मेंटेन रखना है। यानी बात कला, क्राफ़्ट, हुनर से बहुत आगे की है।

 

जो फिल्मी दुनिया में काम करना चाहते हैं, उन्हें क्या कहना चाहेंगे ?

 

मैं सिर्फ़ एक बात कहना चाहूँगा। काम कीजिए। ख़ुद की स्किल्स पर काम कीजिए। देखिए, जांचिए, परखिए कि आपके भीतर कौन सा गुण है।फिर उस गुण को निखारने हेतु नियमित रूप से काम कीजिए। अगर आप काम करते हैं और आपके काम में शिद्दत है तो फिर आपको बेवजह घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है।लोग, ज़माना, दुनिया एक दिन आपके काम को देखेगी, उसकी क़ीमत पहचानेगी और आपको सर आँखों पर बैठाएगी।मगर यह सब तब होगा जब आप काम करेंगे। आज इतने सरे माध्यम हैं। आप अगर अच्छा काम करते हैं तो उसे दुनिया तक पहुँचने से कोई नहीं रोक सकता।ज़रूरत है सिर्फ़ समर्पण और इच्छा शक्ति की। 

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