“हमारा ईश्वर निराकार है”, उसने दीपक जलाते हुए कहा। “वह जंगल हैं, आसमान है, पहाड़ हैं। किसी भी असुर के घर में आपको ईश्वर की तस्वीर नहीं मिलेगी। हम सरना धर्म में यकीन रखते हैं।हम हिंदू नहीं हैं।“
बाहर बड़े स्पीकर में रीमिक्स भोजपुरी गीत बज रहे थे। आदमी और औरत नृत्य कर रहे थे। झारखंड नेतरहाट के इस दूरस्थ गांव सकुआपानी में जहां कोई मोबाइल सिग्नल नहीं है, वहां विश्वकर्मा पूजा के रीति रिवाज पहुंच चुके हैं। सुषमा असुर, जो कि एक कवि है, बताती हैं
“मेरा जन्म असुर समुदाय में हुआ, एक जनजाति जो महिषासुर से जुड़ी हुई है। हम रामायण के विषय में नहीं जानते। हम आदिवासी हैं। हमारे ईश्वर निराकार हैं। हम प्रकृति और पूर्वजों को मानते हैं। बहुत पहले, हम दशहरे के दिन घर से नहीं निकलते थे। आज हमारे लोग त्यौहार देखने निकलते हैं। समय बदल गया है। हम अपना विश्वास, अपनी संस्कृति बचाने का प्रयास कर रहे हैं। हमने अपने पूर्वजों से कहानियां सुनी थीं। उनके अनुसार महिषासुर एक साहसी योद्धा और महान शासक था।हम राम की असुरों पर विजय की गाथा नहीं जानते हैं। हम जानते हैं कि हम आपकी तरह इंसान हैं। हम दुनिया के सबसे पुराने खनिज विशेषज्ञ हैं। दुनिया का लोहा हमारे पास है और हम लुप्त हो रहे हैं।“
महिषासुर को दुर्गा ने मारा क्योंकि उसे यह वरदान था कि कोई पुरुष उसका वध नहीं कर सकता। नौ दिन के युद्ध के बाद, देवी ने उसका संहार किया। पौराणिक कथाओं में यही वर्णन है। मगर यहां का असुर समुदाय, दुर्गा पूजा के दसवें दिन अश्विन मास की पूर्णिमा को एकत्रित होकर महिषासुर की मृत्यु का विलाप करता है। फागुन मास में असुर पूजा का आई। भी किया जाता है। होली के मौके पर मार्च महीने में रावण की मृत्यु k शोक मनाया जाता है। वह हमारे पूर्वज थे, एक राजा जो असुर थे।
साल 2016 में सुषमा लोगों को अपनी और अपने समुदाय की कहानी सुनाने के उद्देश्य से, अपने समुदाय के 10 लोगों के साथ कलकत्ता गईं। उसी वर्ष केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में जेएनयू विवाद के बाद महिषासुर शहादत दिवस मनाए जाने की बात कही थी। असुर एक छोटा सा समुदाय है, जो मुख्य रूप से झारखंड के गुमला, लोहरडागा, पलामू और लाथेहर में रहता है। केवल 2000 लोग ही असुरी भाषा बोलते हैं। साल 2011 की जनगणना में असुर समुदाय की जनसंख्या 23000 है।
(सुषमा असुर, झारखंड से असुर समुदाय की कवयित्री ने जैसा चिंकी सिन्हा को बताया।)