सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज ज्ञान सुधा मिश्रा ने समाज में साहित्य के प्रति घटते अनुराग पर गहरी चिंता व्यक्त की है और कहा है कि आज की पीढ़ी किताबें कम पढ़ती हैं बल्कि टीवी सीरियल अधिक देखा करती है जिसके कारण उनके भीतर वो संस्कार नहीं आता जो साहित्य हमें देता है।ज्ञान सुधा मिश्रा ने कल शाम हिंदी नवजागरण के अग्रदूत शिवपूजन सहाय की साठवीं पुण्यतिथि के मौके पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए यह चिंता जाहिर की।स्त्री दर्पण और रजा फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस समारोह में हिंदी के वरिष्ठ कवि एवम पत्रकार विमल कुमार द्वारा संपादित पुस्तक "साहित्यकारों की पत्नियां" और युवा कथाकार पत्रकार शिल्पी झा के कहांनी संग्रह " सुख के बीज" तथा स्त्री लेखा पत्रिका के मृदुला गर्ग अंक का लोकार्पण किया गया।
झारखंड हाई कोर्ट की पहली चीफ जस्टिस रह चुकी सुश्री मिश्रा ने कहा कि हम लोग अपने जमाने मे लेखकों का ऑटोग्राफ लेते थे ।जब मैं सोलह 17 साल की थी तो मेरे घर में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर आए तो मैं उन्हें देखकर रोमांचित हो गयी और उनका ऑटोग्राफ लेने के लिए दौड़ पड़ी।दिनकर जी ने मेरे प्रोत्साहन के लिए चार पँक्ति की एक कविता तत्काल रचकर भेंट की।
पटना हाइकोर्ट की दूसरी महिला जज श्रीमती मिश्र ने कहा कि मेरे पिता भी साहित्य अनुरागी थे और मेरे घर में दिनकर जनार्दन प्रसाद झा द्विज फणीश्वर नाथ रेणु जैसे लेखकों की बैठकी लगती थी और मैंने वहीं से अपने भीतर साहित्य के प्रति अनुराग विकसित किया । जब मैं थोड़ी और बड़ी हुई तो यशपाल अज्ञेय और धर्मवीर भारती को पढ़ा। भारती के गुनाहों का देवता उपन्यास पढ़कर तो मैं कई बार रोई ।उस समय कम उम्र की भावुकता थी। बाद में परिपक्वता आयी।
उन्होंने कहा कि एक समय हिंदी में साप्ताहिक हिंदुस्तान , धर्मयुग नवनीत और कादम्बिनी जैसी पत्रिकाएं निकलती थी।उन पत्रिकाओं ने लोगों के भीतर साहित्यिक संस्कार पैदा करने में बड़ी भूमिका निभाई लेकिन आज ऐसी पत्रिकाएं नहीं है। इसका नतीजा यह भी है कि आज लोगों में साहित्य के प्रति अनुराग कम होता गया है और नई पीढ़ी अधिकतर टीवी सीरियल देखती है।
उन्होंने कहा कि साहित्यकारों की पत्नियों ने बड़ा त्याग और संघर्ष किया लेकिन जब स्त्रियाँ काम काजी हो गईं तो उनका संघर्ष बड़ा हो गया क्योंकि उन्हें घर और नौकरी दोनों की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी।समारोह के मुख्य वक्ता एवं अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध विद्वान हरीश त्रिवेदी ने हिंदी उर्दू और अंग्रेजी के लेखकों की पत्नियों के बारे में अनेक रोचक प्रसंग सुनाए ।उन्होंने कहा कि अंग्रेजी की कई लेखिकाएं अपने पतियों से अधिक मशहूर हुईं जैसे वर्जिनिया वुल्फ तो कई लेखिकाओं ने शादी ही नहीं किया जैसे जेन ऑस्टिन ,एमिली ब्रांट सिस्टर्स और जॉर्ज इलियट ने।
प्रेमचंद की जीवनी "कलम के सिपाही" का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले श्री त्रिवेदी ने इलाहाबाद में प्रेमचन्द परिवार से अपने निकट संबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि शिवरानी देवी बड़ी दबंग महिला थी और उनके व्यक्तित्व का प्रभाव प्रेमचंद पर भी पड़ा था और विवाह के बाद शिवरानी देवी के कारण धीरे-धीरे प्रेमचंद भी सहृदय और मुलायम व्यक्ति बन गए थे ।उन्होंने अपने भाषण में शेक्सपीयर और तुलसीदास की पत्नी का जिक्र किया और कई रोचक बातें बताई।
श्री शुक्ल ने कहा कि हम लोग न तो साहित्यकारों , कलाकारों और न ही चित्रकारों की पत्नियों के बारे में जानते हैं।हमें सहसा उनका ध्यान नहीं जाता जबकि उनका बड़ा योगदान होता है।पत्नियों के बिना हमारा व्यक्तित्व अधूरा है।बंगाल में तो टैगोर की पत्नी के बारे में सब जानते हैं लेकिन हिंदी पट्टी में अपने लेखकों की पत्नियों के बारे में लोग नहीं जानते हैं।कवयित्री सविता सिंह ने स्त्री दर्पण प्लेटफॉर्म के बारे में बताया और कहा कि इस डिजिटल प्लेटफार्म ने साहित्यकारों की पत्नियां जैसी लोकप्रिय शृंखला चलाई।मैंने भी दो काविता श्रृंखला चलाई जिनमें से एक की किताब पुस्तक मेले में आनेवाली है।
समारोह में शिवपूजन जी के नाती राकेश रंजन ने अपने नाना पर संस्मरण सुनाए । उन्होंने कहा कि उनके नाना जी दूसरों के लिए जीनेवाले लेखक थे और उनका व्यक्तित्व उनके कृतित्व से भी बड़ा था।शास्त्रीय गायिका मीनाक्षी प्रसाद ने शिवपूजन सहाय की पत्नी बच्चन देवी के बारे में लोगों को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बच्चन देवी की स्मृति में पटना में होने वाली गोष्ठियों में देश के सभी बड़े लेखक भाग लेते रहे हैं।
समारोह में विनोद भारद्वाज रेखा अवस्थी ओम प्रकाश मिश्र सुधांशु रंजान सुरेश नौटियाल , कुसुम पालीवाल श्याम सुशील मनोज मोहन वाजदा खान मीना झा सविता पाठक बलकीर्ति समेत कई लेखक पत्रकार मौज़ूद थे।समारोह का संचालन युवा कथाकार पत्रकार शिल्पी झा ने किया जोटाइम्स ऑफ इंडिया की बेनेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं।