बाराबंकी की एक विशेष अदालत ने 18 साल पुराने दलित उत्पीड़न, हिंसा और हत्या के मामले में सोमवार को 12 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। अदालत ने सभी दोषियों पर ₹1.18 लाख का अर्थदंड भी लगाया है। वहीं, वादी पक्ष के पांच लोगों को भी तीन-तीन साल कैद और ₹10,000 जुर्माने की सजा दी गई है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कानून की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू के साथ 1996 में दुष्कर्म और हत्या करने जुर्म में उम्रकैद की सजा काट रहे संतोष कुमार सिंह की समयपूर्व रिहाई संबंधी याचिका खारिज करने के सजा समीक्षा बोर्ड के फैसले को मंगलवार को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति संजीव नरुला ने कहा कि सिंह में सुधार की गुंजाइश है। उन्होंने मामला फिर से सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) के पास भेजते हुए उसे दोषी की समयपूर्व रिहाई की याचिका पर नए सिरे से विचार करने को कहा।
न्यायमूर्ति नरुला ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘मैंने उसमें सुधार की गुंजाइश देखी है। एसआरबी के फैसले को रद्द किया जाता है और मैंने मामले को नए सिरे से विचार करने के लिए एसआरबी को वापस भेज दिया है।’’
अदालत ने कैदियों की याचिकाओं पर विचार करते समय एसआरबी द्वारा पालन किए जाने वाले कुछ दिशानिर्देश भी दिए हैं।
उसने कहा कि एसआरबी को दोषियों की दलीलों पर विचार करते समय उनका मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन करना चाहिए, जो इस मामले में नहीं किया गया। मामले में विस्तृत फैसले की प्रतीक्षा है।
सिंह ने 2023 में अपनी याचिका में एसआरबी की 21 अक्टूबर, 2021 को हुई बैठक में उसकी समयपूर्व रिहाई को खारिज करने की सिफारिश को रद्द करने की मांग की है।
सिंह की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर ने कहा कि दोषी को हत्या के अपराध में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है और वह पहले ही 25 वर्ष की सजा काट चुका है।
उन्होंने यह भी कहा कि दोषी का आचरण संतोषजनक रहा है, जिससे पता चलता है कि उसमें सुधार आया है और अपराध करने की उसकी सारी संभावनाएं समाप्त हो गई हैं।
वकील ने कहा कि वह समाज का एक उपयोगी सदस्य होगा और पिछले कई वर्षों से वह खुली जेल में भी रहा है।
अदालत को पहले बताया गया था कि 18 सितंबर, 2024 को एसआरबी की एक और बैठक हुई थी और उसमें समयपूर्व रिहाई की उसकी याचिका को फिर से खारिज कर दिया गया था।
मट्टू (25) से जनवरी 1996 में दुष्कर्म किया गया था और उसकी हत्या कर दी गयी थी। दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून के छात्र सिंह को तीन दिसंबर 1999 में निचली अदालत ने इस मामले में बरी कर दिया था लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने 27 अक्टूबर 2006 को फैसला पलटते हुए उसे दुष्कर्म तथा हत्या का दोषी ठहराया था और उसे मौत की सजा सुनायी थी।
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी के बेटे सिंह ने अपनी दोषसिद्धि और मौत की सजा को चुनौती दी थी।
उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर 2010 में सिंह की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था लेकिन मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था।