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भारतीयों को मिले न मिले, विदेशियों को चिकित्सा देने की चिंता

ये कोई छुपी हुई बात नहीं है कि भारत में डॉक्टरों और नर्सों की भयानक कमी है। वर्ष 2015 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक देश के चिकित्सा क्षेत्र को तत्काल करीब 20 लाख डॉक्टरों और 40 लाख नर्सों की जरूरत है। यही नहीं देश के प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में से 8 फीसदी में कोई डॉक्टर या मेडिकल स्टाफ तक नहीं है।
भारतीयों को मिले न मिले, विदेशियों को चिकित्सा देने की चिंता

इसके बावजूद सरकार भारत को विदेशी मरीजों के ‌इलाज का केंद्र बनाना चाहती है। यानी आप पैसे खर्च सकते हैं तो दुनिया के किसी भी देश आकर भारत में इलाज करा सकते हैं। इसके लिए भारत सरकार ने बाकायता एक मेडिकल एंड वेलनेस टूरिज्म प्रमोशन बोर्ड ग‌ठित कर दिया है जिसका काम यही है कि विदेश से इलाज के लिए भारत आने के इच्छुक लोगों की सभी समस्याओं का समाधान करना। भले ही सरकार को अपने देशवासियों की चिंता न हो मगर विदेशी मरीजों और देशी पांच सितारा अस्पतालों की चिंता जरूर है।

दरअसल भारत में जैसे-जैसे पांच सितारा अस्पताल और उन अस्पतालों में विश्वस्तरीय सुविधाएं मुहैया हुईं, वैसे-वैसे दुनिया के उन देशों से मरीज यहां उमड़ने लगे जहां बेहतर डॉक्टर या चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं या अगर हैं भी तो बेइंतहा महंगी हैं। इन मरीजों को और बड़ी संख्या में आकर्षित करने के लिए भारत सरकार ने इस बोर्ड का गठन किया है और खुद भी पेशे से चिकित्सक और नोएडा में अपना पांच सितारा अस्पताल चलाने वाले केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा इस बोर्ड के अध्यक्ष हैं। इस बोर्ड की पहली बैठक हाल ही में हुई और इसमें यह तय किया कि चिकित्सा पर्यटन क्षेत्र की हर बाधा को प्रभावी जवाबदेह और समयबद्ध तरीके से दूर किया जाएगा। इसके लिए इस बोर्ड में भारत सरकार के अलग-अलग विभागों के प्रतिनिधि, मेडिकल क्षेत्र के प्रतिनिधि  और योग तथा अन्य हिस्सेदारों को शामिल किया गया है। देश में सरकारें भले ही बदलती रहें मगर नीतियां नहीं बदलती हैं और यह एक बार फिर साबित हो रहा है कि देश के सार्वजनिक स्वास्‍थ्य सेवा की बजाय सरकार का पूरा ध्यान कॉरपोरेट अस्पतालों को बढ़ावा देने पर है।

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