मध्य प्रदेश के छोटे-छोटे गांवों में भी स्वच्छ भारत का असर दिखने लगा है। हर घर शौचालय का आलम यह है कि सिवनी मालवा क्षेत्र के गांव- भेला, ग्वाड़ी, आयपा, पथाड़ा जैसी जगहों पर भी घर से बाहर शौचालय बने दिखने लगे हैं। सरकार इसके लिए वित्तीय सहायता दे रही है। लेकिन कई लोगों के लिए यह नियम मुसीबत का सबब बन गया है।
इसे पढ़ कर भले ही चेहरे पर मुस्कराहट आ जाए लेकिन यह सच है कि गांव के बुजुर्ग छोटी सी बंद जगह में ‘फारिग’ होने में असहज महसूस कर रहे हैं। गांव-गांव में लड़कियों और लड़कों की टीम बनाई गई है, जो सुबह चार बजे से ही गोया (एक गांव को दूसरे गांव या मुख्य सड़क से जोड़ने वाला शॉर्ट कट जिसे आमतौर पर शौच जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है) के चक्कर काटने लगते हैं। जो भी गोया, खेत की मेड़ या तालाब के किनारे फारिग होने की मंशा से दिखाई देता है उसे पहले समझाइश दी जाती है और दूसरी बार 251 रुपये का जुर्माना वसूल लिया जाता है।
ग्राम सामरधा में दो बार जुर्माना देकर छूटे मांगीलाल पटेल पहले तो यह किस्सा सुनाते हुए हंसे फिर कहा, ‘क्या करूं पुरानी आदत है छूटती ही नहीं। नहर के किनारे ही ‘ठीक’ से हो पाती है!’ मांगीलाल की तरह हर गांव में दो-चार लोग ऐसे हैं जिन्हें उस ‘बंद कमरे’ में शौच जाने का मन ही नहीं करता।
इन लोगों के विपरीत गांव की बहू-बेटियों का कहना है कि उन्हें बहुत आराम है। रुक्मणि का कहना है, ‘पहले कभी दिन में जाना पड़ जाता था तो पूरे गांव को पता चल जाता था। लेकिन अब इस परेशानी का हल मिल गया है।’ गांव बाबरी की सरपंच सीता यदुवंशी ने अपने गांव में हर घर शौचालय मुहिम के लिए बहुत काम किया है। अभी भी उनके गांव में कुछ घर बचे हुए हैं, पर उनका लक्ष्य अगले छह महीने में सभी घरों में शौचालय और गांव को ‘खुले में शौच मुक्त गांव’ बनाना है। हरदा जिले का करताना गांव इस श्रेणी में शामिल हो गया है।