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जेलेंस्की की जिद और पुतिन की सनक में बर्बाद होता यूक्रेन

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध अब तीसरे हफ्ते में प्रवेश कर चुका है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पूरी...
जेलेंस्की की जिद और पुतिन की सनक में बर्बाद होता यूक्रेन

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध अब तीसरे हफ्ते में प्रवेश कर चुका है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पूरी दुनिया को लगा था कि 24 से 48 घंटे में इस युद्ध का परिणाम निकल आएगा लेकिन उसके ठीक उलट अब ये लड़ाई लंबी खिंच रही है। तो आखिर इस युद्ध के लंबे खिंचने के परिणाम क्या होंगे। जाहिर है कि रूस एक शक्तिशाली देश है और उसके सामने यूक्रेन की फौज की कोई बिसात नहीं इसलिए युद्ध के मैदान में देर सबेर यूक्रेन को हार स्वीकार करनी ही पड़ेगी। लेकिन वाकई में इस युद्ध में कौन जीतेगा? सच तो ये है कि पुतिन सैद्धांतिक तरीके से ये युद्ध हार चुके हैं और अब जेलेंस्की की हार नहीं मानने की जिद और पुतिन की साम्राज्यवादी नीतियों के विस्तार की सनक की भेंट यूक्रेन चढ़ रहा है। यूक्रेन में चारों तरफ तबाही है, कई शहरों में सड़कों पर पड़ी लाशों को उठाने वाला कोई नहीं। शहर-गांव हर जगह लोग दहशत में हैं, युक्रेन के सभी सीमावर्ती इलाकों में भीषण बमबारी हुई है और लगातार हो रही है। इन शहरों की मौजूदा तस्वीरों को देखकर रोंगटे खड़े हो रहे हैं लेकिन न तो यूक्रेन अपनी जिद से पीछे हट रहा है और न ही रूस अपनी सनक से बाज आ रहा है। नतीजा ये हो रहा है कि युद्ध में कोई जीते, कोई हारे लेकिन यूक्रेन की मासूम जनता तो निश्चित तौर पर बहुत कुछ हार रही है।

दो दिन पहले एक बार ऐसा लगा कि शायद जेलेंस्की युद्ध को खत्म करना चाहते हैं जब उन्होंने संकेत दिए कि वो नेटो देशों में शामिल होने का अपना विचार त्याग सकते हैं और साथ ही लुहांस्क और डोनेस्क पर बात भी कर सकते हैं। दूसरी तरफ से रूस से भी बयान जारी किया गया कि पुतिन का इरादा यूक्रेन पर कब्जा करने या वहां की सरकार बदलने की नहीं है। ऐसे में लगा कि शायद अब युद्ध अपने अंतिम चरण में है, भले ही इतिहास के पन्नों में जेलेंस्की युद्ध के फैसले से यूक्रेन को नुकसान पहुंचाने के लिए जिम्मेदार माने जाएंगे लेकिन वो फिलहाल युद्ध खत्म करना चाहते हैँ। लेकिन उस बात को भी अब तीन दिन हो गए हैँ। ना तो यूक्रेन पर रूस के हमले रुक रहे हैं और न हीं यूरोपीय संघ और नेटो देशों की रूस पर प्रतिबंधों की रफ्तार। ये तय है कि रूस पर लगाए जाने वाले प्रतिबंधों की मार से रूस की आर्थिक स्थिति गड़बड़ा जाएगी, इस बार पहले की तरह रूस उन सारे प्रतिबंधों से तुरंत नहीं उबर पाएगा लेकिन ये इस बात पर भी निर्भर करेगा कि ब्रिटेन या यूरोपीय संघ के द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की मियाद कितनी रहती है। पिछले दो हफ्तों में ये तो साफ दिख रहा है कि ब्रिटेन या दूसरे नेटो देश रूस से सीधे युद्ध के मूड में बिल्कुल नही हैं लेकिन ये भी साफ दिख रहा है कि अमेरिका-ब्रिटेन और यूरोपीय संघ रूस पर तरह तरह की पाबंदियों की फेहरिस्त बढ़ाते जा रहे हैँ। अगर ये युद्ध अब अगले कुछ दिनो में किसी परिणाम की तरफ नहीं गया तो इसके परिणाम आने वाले दिनों में लंबे समय तक भयावह रहने के अंदेशे दूसरे यूरोपीय देश जताने लगे हैँ। एक तरफ जहां इन आर्थिक प्रतिबंधों से रूस में संकट गहराता जा रहा है वहीं यूरोपीय देशों में भी महंगाई बढ़ रही है और उसके और बढ़ने के ही आसार हैं। लेकिन चिंता यहीं खत्म नहीं हो रही है, एक तरफ जहां जेलेंस्की ने पहले ब्रिटिश संसद को संबोधित करते हुए कहा कि रुस एक आतंकवादी देश है और बाद में एक वीडियो संदेश में भी कहा को वे रुस को एक आतंकवादी देश घोषित कर रहे हैं और दूसरे यूरोपीय देशों से भी ऐसा करने की गुहार लगा रहे हैं।

वहीं रूसी सैनिकों ने बर्बरता की हद पार करते हुए मारियुपोल में आम लोगों पर हमला किया और अस्पतालों को निशाना बनाया। हद तो तब हो गई जब शहर के एक अस्पताल के प्रसूति वार्ड पर बमबारी हुई। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतरेस ने इसकी घोर निंदा की और कहा कि "मारियुपोल के अस्पताल में हुआ आज का हमला भयावह है. नागरिकों को उस युद्ध की सबसे भारी कीमत चुकानी पड़ रही है, जिससे उनका कोई लेना-देना नहीं है. ये हिंसा बंद होनी चाहिए. तुरंत खून-खराबा बंद करिए।" लेकिन क्या इसका पुतिन पर कोई असर होता दिख रहा है। तो जवाब साफ है बिल्कुल नहीं।

बीच बीच में मध्यस्थ देशों जैसे भारत, इजरायल और टर्की से बातचीत के बाद कुछ आम लोगों के शहर से निकलने के लिए सीजफायर जरूर होता है लेकिन कब फिर से युद्ध के सायरन बजने शुरु हो जाएं और बमबारी शुरु हो जाए इसका ठिकाना नहीं रहता।अमेरिकी कंपनी मैक्सर टेक्नोलॉजीज ने गुरुवार को कुछ तस्वीरें जारी कीं उससे साफ हो रहा है कि कीव को घेरने के लिए रूसी सेनाएँ फिर से संगठित होती दिख रही हैं। मैक्सर ने कहा कि इसकी तस्वीरों से पता चलता है कि बख्तरबंद गाड़ियों का काफिला जो पहले बिखर सा गया था वो फिर से एक साथ दिखने लगा है।

 

एक तरफ ब्रिटेन अपने नागरिकों से सीधे युद्ध में शरीक न होने की अपील कर रहा है वहीं पुतिन ने मिडिल ईस्ट के उन लड़ाकों को रूस की तरफ से युद्ध में आने का न्यौता दिया है जिन्होंने ISIS के खिलाफ सीरिया में लड़ाई लड़ी थी। ये युद्ध के और लंबे समय तक चलने के संकेत के तौर पर भी देखा जा सकता है साथ ही यूक्रेन पर रूस के दबाव के तौर पर भी। अभी तक यूक्रेन से 22 लाख से ज्यादा लोगों के देश छोड़ने की आशंका जताई जा रही है। इधर ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने ब्रिटिश जनता से कहा है यूक्रेन के शरणार्थियों को वो अपने घरों में पनाह दे सकते हैं। निश्चित तौर पर सरकार उनके लिए कुछ आर्थिक पैकेजों की घोषणा करेगी। साथ ही ब्रिटेन ने रूस के उन धनाढ्यों की संपत्तियों को जब्त करना शुरु किया है जिनकी नजदीकी पुतिन से है। रूस ने भी वहां से अपना कारोबार छोड़ कर फिलहाल के लिए निकल गए विदेशी कंपनियों को राष्ट्रीय संपत्ति बनाने की घोषणा कर दी है और उसके लिए जरूरी कानूनी कार्रवाई करना भी शुरु कर दिया है। यानी जैसे जैसे यूरोपीय संघ और नेटो देश पाबंदियां लगाते हैं पुतिन हर संभव जवाबी कार्रवाई करते हैं। मौजूदा हालात में निश्चित तौर पर इस युद्ध के दौरान आम लोगों पर की जा रही बर्बरता एक युद्ध अपराध की श्रेणी में ही आता है लेकिन क्या यूक्रेन इसे साबित कर पाएगा और क्या अंतराष्ट्रीय अदालत में पुतिन पर युद्ध अपराधी के तौर पर मुकदमा चलाया जा सकेगा ? ऐसे में यूरोपीय संघ और नेटो देश यूक्रेन की क्या मदद कर पाएंगे ऐसे कई सवाल खड़े हो रहे हैं लेकिन चिंता यहीं खत्म नहीं हो रही है चिंता इस युद्ध के यूक्रेन से आगे निकलने की भी है। इस युद्द की मौजूदा स्थिति से यूरोपीय संघ में शामिल और भविष्य में शामिल होने वाले बाल्कन देशों की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। उनका मानना है कि पुतिन यूक्रेन तक नहीं रुकने वाले हैं। कोसोवो के प्रधान मंत्री, अल्बिन कुर्ती ने चेतावनी दी है कि "पुतिन युद्ध के और नए मैदान चाहते हैं क्यूंकि उनकी नजर में यही रूसी संघ के हित में है कि वहीं कोसोवो के राष्ट्रपति,वोजोसा उस्मानी ने कहना है कि "रूस, पश्चिमी बाल्कन को अस्थिर करके, पूरे यूरोप को अस्थिर करने की कोशिश करेगा" साथ ही उस्मानी ने मॉस्को पर आरोप लगाया कि वो लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डालने के लिए सर्बिया का उपयोग कर रहा है। कुर्ती ने कहा: "मुझे डर है कि यूक्रेन में युद्ध जितना लंबा चलेगा, पश्चिमी बाल्कन में फैलने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। दरअसल पुतिन अभी भी कोसोवो में नेटो के हस्तक्षेप को सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटना में से एक मानते हैं। साथ ही वो चाहते हैं कि कोसोवो राज्य विफल हो जाए ताकि ये दिखाया जा सके कि इराक और अफगानिस्तान की तरह ही नेटो की सफलता यहां भी अस्थायी थी।नेटो का विरोध अपनी जगह है लेकिन पुतिन को युद्ध अब भी रोकना चाहिए, क्यूंकि यूक्रेन अगर बर्बाद हुआ तो रूस भी बहुत महफूज रह सकेगा इसकी संभावना कम ही दिखती है।

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