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बच्चों में मोटापे से और बिगड़ती है सेहत

मोटापे का बच्चों की सेहत के साथ ही साथ उनके मनोविज्ञान पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। डॉक्टरों का कहना है कि बचपन का बुढ़ापा एक ऐसी स्थिति हैं जिसमें बच्चों का वजन उनकी उम्र और कद की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ जाता है। भारत में हर साल बच्चों में मोटापे के 10 मिलियन मामले दर्ज होते हैं। इस स्थिति को पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन इलाज काफी हद तक मदद कर सकता है।
बच्चों में मोटापे से और बिगड़ती है सेहत

विशेषज्ञों के मुताबिक शरीर में फैट का सीधे तौर पर लगाने के तरीके कठिन हैं; मोटापे की जांच प्रायः बीएमआई पर आधारित होती हैं। बच्चों और किशोरों के लिए, ज्यादा वजन और मोटापे को बाॅडी मास इंडेक्स (बीएमआई) उम्र और लिंग विशेष नोमोग्राम का प्रयोग करके पारिभाषित किया जाता है। उम्र-लिंग-विषेष 95वां प्रतिशत बराबर या उससे ज्यादा बीएमआई वाले बच्चों को मोटा कहा जाता है। बच्चों में मोटापे और सेहत पर इसके प्रतिकूल प्रभावों के बढ़ते प्रचार के कारण इसे एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दे के रूप में मान्यता दी जा रही है। बच्चों में अक्सर ही मोटे के स्थान पर ज्यादा वजन शब्द का प्रयोग किया जाता है क्योंकि यह उनके और उनकी मनोवैज्ञानिक स्थिरता के लिए कम निंदित लगता है।

बचपन का मोटापा, जिसे बच्चों का मोटापा भी कहा जाता है, आमतौर पर खुद ही पहचाना जाता है, क्योंकि इसमें बच्चों का वजन असामान्य रूप से बढ़ता है। इस स्थिति को चिकित्सकीय तौर पर पता लगाने के लिए प्रायः लैब परीक्षण और इमेजिंग की जरूरत होती है। बचपन का मोटापा आगे बढ़कर डायबिटीज, उच्च रक्त चाप और उच्च कोलेस्ट्राॅल का कारण बन सकता है। 70 प्रतिशत मोटे युवाओं में कार्डियोवेस्कुलर बीमारी का कम से कम एक जोखिम भरा कारक होता है। मोटे बच्चों और किशोरों में हड्डियों और जोड़ों की समस्याओं, स्लीप एप्निया तथा निंदित महसूस करने और आत्म-सम्मान की कमी जैसी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का जोखिम ज्यादा होता है। फोर्टिस हाॅस्पिटल के बैरिएटिक व मेटाबाॅलिक सर्जरी के निदेशक, डाॅ. अतुल एन.सी. पीटर्स कहते हैं, ‘‘जब बच्चों की बात आती है, तो ज्यादातर माता-पिता उन्हें छोटे और गोलमोल रूप में देखना पसंद करते हैं। अभिभावकों के हिसाब से, गोलमोल बच्चे क्यूट होते हैं। लेकिन क्यूट, गलफुल्ला बच्चा होना अलग बात है और ‘‘मोटा बच्चा’’ होना दूसरी बात है, इनके बीच के अंतर को समझने की जरूरत अभिभावकों को है। मोटापे के अपने प्रतिकूल प्रभाव हैं, बच्चे के स्वास्थ्य पर भी और उसके मनोविज्ञान पर भी।’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘बच्चों में मोटापे के कारण स्वास्थ्य पर काफी दीर्घकालिक प्रभाव पड़ते हैं। बच्चे ओर किशोर जो अपने बचपन में मोटे रहे हैं, उनके वयस्क होने पर भी मोटे ही रहने की ज्यादा संभावना होती है। इसकी वजह से वयस्क अवस्था में कई बड़ी स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं जैसे कि हृदय रोग, टाइप 2 डायबिटीज, स्ट्रोक, विभिन्न प्रकार के कैंसर और आॅस्टियोआथ्र्राइटिस। और चूंकि हमारे देश में यह सबसे तेजी से बढ़ रही समस्याओं में से एक है, इसलिए इससे पहले कि ये बच्चों को नुकसान पहुंचाए हमें इसकी रोकथाम करनी चाहिए।’’ गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)  ने भी बच्चों में मोटापे की बढ़ती स्थिति पर चिंता जताई है। 

 

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