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सभी युद्धों को मिलाकर जितने मरे उससे अधिक मधुमेह से मर गए

हिंदुस्तान को पूरी दुनिया में मधुमेह या डायबिटीज राजधानी कहते हैं और इसे कलंक का यह तमगा यूं ही नहीं मिल गया है। हकीकत यह है कि दुनिया भर में करीब 34 करोड़ लोग मधुमेह से ग्रस्त हैं। इसमें भी 20 फीसदी यानी करीब 7 करोड़ मरीज अकेले भारत में हैं। यह आंकड़ा देश की कुल जनसंक्चया का करीब 3 फीसदी है। मधुमेह को बाकी बीमारियों की गंगोत्री कह सकते हैं। इससे पीड़ित होने के बाद अन्य गंभीर बीमारियों की चपेट में में आना महज वक्त की बात होती है।
सभी युद्धों को मिलाकर जितने मरे उससे अधिक मधुमेह से मर गए

देश में डायबिटीज केयर के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे फोर्टिस-सी डॉक अस्पताल के प्रमुख डॉ. अनूप मिश्रा कहते हैं कि मधुमेह को जड़ से नहीं मिटा सकते, इसे बस नियंत्रित कर सकते हैं। मधुमेह के लक्षणों में अध्यधिक भूख-प्यास लगना, थकान और कमजोरी, वजन कम होना, बार-बार व अधिक मात्रा में पेशाब, बार-बार फोड़े फुंसियां होना और जख्मों का आसानी से न भरना, हाथ-पैरों का सुन्न होना या उनमें झनझनाहट होना, लकवा हो जाना या दिल का दौरा पडऩा, महिलाओं में अधिक वजन के बच्चे को जन्म देना शामिल है। इनमें एक या एक से अधिक लक्षण होने पर मधुमेह की जांच जरूर करवा लेनी चाहिए।

दिल्ली के ही पुष्पावती सिंघानिया अस्पताल के जीवनशैली संबंधी रोगों के विशेषज्ञ डॉ. अनिल चतुर्वेदी कहते हैं कि यह बीमारी कितनी घातक है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया में अब तक हुए युद्धों में कुल मिलाकर जितने लोग मारे गए हैं उससे ज्यादा लोग पिछले एक दशक में सिर्फ मधुमेह से मारे गए हैं। डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार मधुमेह हृदय व मस्तिष्क के रक्त प्रवाह में बाधा, आंखों से रक्तस्राव, अंधापन तथा गुरदे में दोष पैदा करता है। यह रोग तंत्रिका (नर्व्स) संस्थान में विकास कर उन्हें निर्जीव कर देता है। मधुमेह के रोगी की धमनियां सख्त होने लगती हैं, रक्त प्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है, नर्व्स की संवेदना कम हो जाती है, त्वचा में स्पर्श की अनुभूति समाप्त हो जाती है, घाव धीरे-धीरे भरते हैं और किसी भी प्रकार के संक्रमण के फैलने की संभावना प्रबल हो जाती है। अगर मधुमेह के साथ उच्च रक्तचाप भी हो तो उनमें हृदय रोग के कारण मृत्यु की आशंका तीन गुणा बढ़ जाती है।

डॉ. मिश्रा के अनुसार पूरी दुनिया में मधुमेह के रोगियों की इतनी तेजी से बढ़ती संख्या के लिए आधुनिक जीवनशैली तथा खान-पान को जिम्मेदार माना जा रहा है। कई मामलों में यह आनुवंशिक भी होता है। बेहद तनाव भरे माहौल में देर-देर रात तक काम करना, सुबह देर तक सोना, उठते ही फिर दफ्तर की तैयारी, व्यायाम के लिए समय नहीं निकालना, खाने का सही ध्यान नहीं रखना, किसी भी समय कुछ भी खा लेना, खाने में वसा की मात्रा का ज्यादा होना, इसके कारण वजन का बढऩा, ये सभी मिलकर मधुमेह को न्योता देते हैं।

डॉ. चतुर्वेदी कहते हैं कि जिस प्रकार इंजन को चलाने के लिए ईंधन की जरूरत होती है उसी तरह शरीर को चलाने के लिए हमें ऊर्जा की जरूरत होती है और शरीर को यह ईंधन ग्लूकोज से मिलता है। शरीर को यह ग्लूकोज भोजन में मौजूद कार्बोहाइड्रेड से प्राप्त होता है। भोजन के कुछ देर बाद पाचन क्रिया के जरिये कार्बोहाइड्रेड ग्लूकोज में बदल जाता है। यह ग्लूकोज आंतों के माध्यम से रक्त संचार प्रणाली में पहुंचता है और जैसे ही खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती है वैसे ही पैंक्रियाज ग्रंथी की वीटा कोशिकाओं में सूक्ष्म मात्रा में इंसुलिन निकलना शुरू हो जाता है। यह खून में मौजूद ग्लूकोज को शरीर की कोशिकाओं में पहुंचाता है। इसके बाद जैसे ही खून में ग्लूकोज की मात्रा कम होती है, पैंक्रियाज की दूसरी कोशिकाओं, जिन्हें एल्फा सैल्स कहते हैं, से एक हारमोन ग्लूकागोन निकलता है जो जिगर में मौजूद स्टार्च, ग्लाइकोजेन को फिर से ग्लूकोज में बदल देता है जिसके कारण खून में ग्लूकोज की मात्रा फिर से सामान्य हो जाती है। यानी शरीर में ग्लूकोज की मात्रा इंसुलिन द्वारा नियंत्रित होती है। जिन लोगों में इंसुलिन की मात्रा कम या बिलकुल नहीं होती उनके शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढऩे लगती है। यह बढ़ा हुआ ग्लूकोज गुरदे के रास्ते पेशाब में जाने लगता है। इस क्रिया में शरीर का बहुत सा पानी ग्लूकोज के साथ पेशाब के रूप में शरीर से बाहर निकलता है। तब शरीर ग्लूकोज की कमी को पूरा करने के लिए वसा और प्रोटीन को तोडक़र ग्लूकोज बनाने की कोशिश करता है जिसके कारण शरीर में वसा और प्रोटीन के भंडार कम होने लगते हैं।

डॉ. चतुर्वेदी के अनुसार एक स्वस्थ्य आदमी में त्वचा के जरिये 2 प्रतिशत प्रति मिनट की दर से ग्लूकोज नष्ट होता है मगर मधुमेह के रोगी में यह दर घटकर .3 फीसदी प्रति मिनट रह जाती है। इसके कारण त्वचा की परतों में अधिक समय तक ग्लूकोज जमा हो जाता है जिससे किटाणुओं को पनपने का मौका मिलता है और वे संक्रमण फैला देते हैं।

इतनी खतरनाक बीमारी होने के बावजूद लोगों को निराश होने की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि इस बीमारी को पूर्णत: नियंत्रित किया जा सकता है। दृढ़ मनोबल, आहार में संयम, परहेज, व्यायाम और दवाओं से इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। अधिक शक्कर पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ मसलन मिठाई, चीनी, गुड़, शकरकंद, अंगूर, केला, पपीता, आम, काजू आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। आलू, चावल भी कम से कम लेना चाहिए। तले हुए भोजन से परहेज भी जरूरी है। हरी सब्जियां, हरे फल, जामुल, करेला आदि ज्यादा सेवन करना चाहिए।

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