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जनादेश ’24/चुनावी सितारे: बेदम ‘स्टारडम’

फिल्मी परदे पर गरजने वाले कलाकारों की सदन में आवाज नहीं निकलती खासकर उत्‍तर भारत में ‘रील के नायक’...
जनादेश ’24/चुनावी सितारे: बेदम ‘स्टारडम’

फिल्मी परदे पर गरजने वाले कलाकारों की सदन में आवाज नहीं निकलती

खासकर उत्‍तर भारत में ‘रील के नायक’ ‘रियल जनप्रतिनिधि’ साबित नहीं हो सके, फिर भी फिल्‍मी सितारों की लोकप्रियता को भुनाने के ख्‍याल से उनके लिए सियासी दलों की होड़ कम नहीं हुई है। अपवादों को छोड़कर ज्यादातर फिल्मी और क्रिकेट स्टार सियासी पिच पर लंबे समय तक नहीं टिक पाए, जबकि कुछेक दलबदल के सहारे आज तक टिके हुए हैं। ‘स्टारडम’ के दम पर संसद पहुंचने वाले सेलेब्रिटिज में कुछेक को छोड़कर ज्यादातर की अपने संसदीय क्षेत्र और संसद में हाजिरी बहुत कम रहती है। इतना ही नहीं, फिल्मी पर्दे पर बेबाकी से संवाद बोलने वाले  कलाकारों की संसद में बोलती बंद रहती है। जमीनी मुद्दों से अनजान सेलेब्रिटिज के लिए सियासत सेवा नहीं बल्कि अपने ग्लैमर को भुनाने का खेल है। 

सनी देओल अपने निर्वाचन क्षेत्र से जीत के बाद गायब ही रहे

सनी देओल अपने निर्वाचन क्षेत्र से जीत के बाद गायब ही रहे

सेलेब्रिटी सांसद को लेकर संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहता है, इसलिए पार्टियां अगले चुनाव तक उन्हें चलता कर देती हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के उम्मीदवारों की फेहरिस्त से कई मौजूदा सेलेब्रिटी सांसदों में चंडीगढ़ से किरण खेर, पंजाब के गुरदासपुर से सनी देओल, क्रिकेटर गौतम गंभीर इस बार गायब हो गए। गुरदासपुर में तो कई बार सनी की गुमशुदगी के पोस्टर लगे। ऐसे ही बीकानेर से सांसद रहे सनी के पिता धमेंद्र की गुमशुदगी के भी पोस्टर लगाए थे। इसी परिवार की तीसरी सदस्य हेमा मालिनी लगातार तीसरी बार मथुरा से मैदान में हैं।  

किरण खेर ने इस बार चुनाव लड़ने से किया इनकार

किरण खेर ने इस बार चुनाव लड़ने से किया इनकार

2024 के लोकसभा चुनाव मैदान में उतरे नए फिल्मी चेहरों में कंगना रनौत हिमाचल की मंडी सीट से इस बार भाग्य आजमा रही हैं। टीवी पर रामायण धारावाहिक में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल मेरठ से मैदान में हैं। इसी धारावाहिक में सीता और रावण की भूमिका निभाने वाले दीपिका चिखलिया और अरविंद त्रिवेदी गुजरात से भाजपा के लोकसभा सांसद रहे चुके हैं। महाभारत धारावाहिक में कृष्ण की भूमिका के अदाकार नीतीश भारद्वाज को भी भाजपा ने ही लोकसभा भेजा था। पंजाब के गुरदासपुर से मौजूदा सांसद सनी देओल से पहले इस सीट का दो बार प्रतिनिधित्व अभिनेता विनोद खन्ना ने किया था। खन्ना के निधन के बाद उनकी पत्नी कविता खन्ना को मैदान में उतारने के बजाय अभिनेता अजय सिंह देओल उर्फ सनी देओल को भाजपा ने मौका दिया, लेकिन इस बार वहां भाजपा के तीन बार के विधायक दिनेश बब्बू को उम्मीदवार बनाया गया है।

दलबदल के सहारे लंबे समय से सियासी पिच पर टिकने वालों में भाजपा से पारी शुरू करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा कांग्रेस के बाद तृणमूल कांग्रेस से मैदान में हैं। दिल्ली से लगातार दूसरी बार भाजपा के उम्मीदवार भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी की शुरुआत समाजवादी पार्टी (सपा) से हुई। गुड़गांव से कांग्रेस के टिकट के लिए जोर लगा रहे राज बब्बर भी सपा से कांग्रेस में आए। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अपने मित्र राजीव गांधी की मदद के लिए इलाहाबाद से हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे पुरोधा को हराकर कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने जल्द ही राजनीति से तौबा कर ली। राजीव गांधी के निधन के बाद कांग्रेस अमिताभ बच्चन कांग्रेस का हाथ छोड़ सपा की साइकिल पर सवार हो गए। इस पार्टी ने अभिताभ की पत्नी जया बच्चन को राज्यसभा भेजा। जया बच्चन सपा से पांच बार की राज्यसभा सांसद हैं।   

नुसरत जहां जीत के बाद गायब ही रही

नुसरत जहां जीत के बाद गायब ही रही

सियासी फलक पर फिल्मी और क्रिकेट सितारों के उतरने का सिलसिला यूं तो 1960 के दशक में पृथ्वीराज कपूर को राज्यसभा में भेजने से शुरू हुआ, मगर उनका नामांकन शायद विशेष क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता के चलते हो सकता है। हालांकि पहले प्रधानमंत्री पंडित ज्वाहरलाल नेहरू से निकटता के बावजूद बालीवुड के सुपरस्टार देव आनंद की राजनीतिक महत्वाकांक्षा सिरे नहीं चढ़ सकी थी। दरअसल सत्तर के दशक में बालीवुड सितारों का स्टारडम भुनाने के लिए इंदिरा गांधी ने देव आनंद पर कांग्रेस के पक्ष में चुनाव प्रचार का दबाव बनाया था, मगर देव आनंद ने इमरजेंसी का खुलकर विरोध किया और 1977 के लोकसभा चुनाव में मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण के साथ मंच साझा किया। 1980 के लोकसभा चुनाव के वक्त देव आनंद ने ‘द नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया’ नाम से अपनी अलग राजनीतिक पार्टी बनाई थी। 

सियासी पिच पर क्रिकेट स्टार भी ज्यादा देर टिक नहीं पाए। राज्यसभा में सचिन तेंडुलकर की पारी जारी है। भारतीय टीम के कप्तान रहे अजहरुद्दीन मुरादाबाद से चुनाव लड़कर संसद पहुंचे पर लंबी पारी नहीं खेल पाए। 2019 में दिल्ली से सांसद चुने गए गौतम गंभीर को भी पांच साल में ही एहसास हो गया कि क्रिकेट ही सही है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा की गुरदासपुर सीट से सनी देओल की जगह युवराज को मैदान में उतारने की कोशिश सिरे नहीं चढ़ सकी। इतना ही नहीं, चंडीगढ़ से दो बार की सांसद अभिनेत्री किरण खेर के बदले भी युवराज चंडीगढ़ से लड़ने को तैयार नहीं हुए। हरियाणा में कांग्रेस वीरेंद्र सहवाग को चुनाव लड़ने के लिए राजी नहीं कर सकी।

गौतम गंभीर ने की राजनीति से तौबा

गौतम गंभीर ने की राजनीति से तौबा

जाने-माने गायक भी सियासी सुर साधने में पीछे नहीं रहे। राज्यसभा की सदस्यता से नवाजी गई सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर से इतर कई गायकों ने जनप्रतिनिधि के तौर पर लोकसभा में प्रवेश किया। राज्यसभा में जाने के संकेत के मद्देनजर हाल ही में गायिका अनुराधा पौडवाल भी भाजपा में शामिल हुई हैं।

जालंधर से शिरोमणि अकाली दल के टिकट पर सांसद का चुनाव हार चुके सूफी गायक हंसराज हंस कांग्रेस में लंबे समय तक नहीं टिके। 2019 में भाजपा के टिकट पर दिल्ली से सांसद बने लेकिन इस बार पंजाब के फरीदकोट में बाहरी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरना उन पर भारी पड़ रहा है। इसी सीट से सूफी गायक मोहम्मद सादिक लगातार दो बार सांसद रहने के बाद तीसरी पारी की कोशिश में जी जान से जुटे हुए हैं।

बॉलीवुड के बजाय दक्षिण भारत के सिनेमा सितारे सियासी स्क्रीन पर काफी हद तक सफल रहे। मुख्यधारा की राजनीति से अलग उन्होंने क्षेत्रीय दलों का गठन किया और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। तमिलनाडु में मुख्यमंत्री रहे अभिनेता एम.जी. रामचंद्रन की सियासी विरासत को आगे बढ़ाते हुए अभिनेत्री जयललिता छह बार मुख्यमंत्री रहीं। आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव तीन बार मुख्यमंत्री बने।

गैर-हाजिरी खली

फिल्मों की शूटिंग के लिए घंटों पसीना बहाने वाले अभिनेताओं के फिल्मी संवाद भले ही हिट हुए हों पर संसद में जनता के मुद्दे उठाने के लिए किसी की जुबान नहीं खुली। इन लोगों की सदन में हाजिरी भी न के बराबर रही। 17वीं लोकसभा के तमाम सत्रों में सनी देओल की हाजिरी सिर्फ 17 प्रतिशत रही और संसद में उन्होंने कभी कोई सवाल नहीं उठाया। कमोबेश शत्रुघ्न सिन्हा की भी संसद में आवाज कम ही सुनाई दी।

17वीं लोकसभा में चुन कर आए 19 सेलेब्रिटी सांसदों ने अपने चुनावी हलफनामे में जो पेशा बताया था, उसके आधार पर उनमें मुख्य रूप से अभिनेता/अभिनेत्री, गायक, कलाकार, खिलाड़ी शामिल हैं। इनमें सबसे अधिक 10 सेल‌िब्र‌िटी सांसद भाजपा के थे, दूसरे नंबर पर पांच सांसद तृणमूल कांग्रेस के रहे। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक निवर्तमान लोकसभा की कुल 274 बैठकों में सेलिब्रिटी सांसदों की औसतन उपस्थिति 56.7 प्रतिशत थी। यह बाकी सांसदों की औसत 79 प्रतिशत हाजिरी से काफी कम है। भाजपा के 10 सेलिब्रिटी सांसदों में से चार की उपस्थिति अव्वल रही। इनमें भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ की उपस्थिति 90 प्रतिशत, बंगाली अभिनेत्री लॉकेट चटर्जी की 88 प्रतिशत, भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी की 85 और शूटिंग में ओलंपिक पदक विजेता तथा भारतीय सेना से सेवानिवृत्त कर्नल राज्यवर्धन राठौड़ की हाजिरी 80 प्रतिशत रही। रिपोर्ट में जुटाए लोकसभा के आंकड़ों के मुताबिक लगातार दो बार के सांसद बंगाली अभिनेता दीपक देव अधिकारी की हाजिरी सबसे कम 12 प्रतिशत रही। 16वीं लोकसभा में उनकी हाजिरी 11 प्रतिशत थी। बंगाली अभिनेत्री और गायिका मिमी चक्रवर्ती की हाजिरी 21 प्रतिशत, बंगाली अभिनेत्री नुसरत जहां रूही 39 प्रतिशत, गायक हंसराज हंस 39 प्रतिशत, अभिनेत्री किरण खेर 47 प्रतिशत और अभिनेत्री हेमा मालिनी की हाजिरी 50 प्रतिशत रही। पूर्व क्रिकेटर गौतम गंभीर ने 61 प्रतिशत उपस्थिति दर्ज की।

संसद में नहीं खुली बोली

17वीं लोकसभा के सेलिब्रिटी सांसदों में उड़िया अभिनेता अनुभव मोहंती ने सबसे अधिक 82 बहसों में भाग लिया। उनके बाद भोजपुरी अभिनेता-गायक रवि किशन 81 बहसों में शामिल हुए। सनी देओल और शत्रुघ्न सिन्हा ने किसी भी बहस में हिस्सा नहीं लिया। हंसराज हंस चार बहसों में भाग लेने के बाद आगे नहीं बढ़ पाए। आसनसोल से टीएमसी सांसद सिन्हा ने संसद में कभी कोई प्रश्न नहीं पूछा जबकि बंगाली अभिनेत्री शताब्दी रॉय बनर्जी ने एक सवाल पूछा, लोकगायक मोहम्मद सादिक ने दो और सनी के खाते में चार प्रश्न हैं। प्रश्न पूछने वालों में रवि किशन ने सबसे अधिक 480 प्रश्न पूछे, मनोज तिवारी ने 395 सवाल पूछे। केवल चार सेलिब्रिटी सांसदों ने संसद में निजी सदस्यों के बिल पेश किए जिसमें सबसे अधिक 10 बिल रवि किशन के हैं और अनुभव मोहंती के तीन बिल हैं। गौतम गंभीर ने एक बिल पेश किया।

कुल मिलाकर सेलेब्रिटिज को संसद पहुंचाने की होड़ भले ही पार्टियों के लिए सांसदों की संख्या बढ़ाने का हथियार है पर ऐसे जनप्रतिनिधि जो संसदीय क्षेत्र और संसद से दूर रहें वे चुनाव जीतने के बाद इलाके की जनता की पहुंच से भी दूर रहते हैं।

इस बार देखना है कि चुनाव जीतने वाले फिल्मी सितारे सदन में अपना प्रदर्शन सुधारते हैं या फिर उसी पुराने ढर्रे पर चलते हैं।

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