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छाप तिलक की अनूगूंज स्मृतियों में समाहित है

अमर प्रेम के प्रतीक स्मृतियों की प्रतिध्वनी ऐतिहासिक महलों से निकलकर जब मंच से गूंजती है, तो वह अपने दीर्घ अनुभवों के प्रकाट्य स्वर बनकर आयोजन की सार्थकता को सिद्ध करती हैं।
छाप तिलक की अनूगूंज स्मृतियों में समाहित है

ध्वनियां हमेशा चैतन्यमना व्यक्तित्व को ही प्रभावित करती हैं। स्थान कोई भी हो उसका एक इतिहास और वर्तमान अवश्य होता है।

मध्यप्रदेश के मांडू में साहित्य और कलाओं पर मांडू उत्सव का आयोजन हुआ। भारतीय संगीत और संस्कृति के वैभवशाली समृद्ध इतिहास से यह आयोजन जीवंत हो उठा।

 पांच दिवसीय मांडू उत्सव मे लोक संस्कृति के बहुरंगी पक्षों से सजी प्रस्तुतियां दर्शकों के मन को छू गईं। कार्यक्रम का शुभारंभ जामा मस्जिद और अशर्फी महल के बीच स्थित मांडू उत्सव के मंच से हुआ। इस कार्यक्रम में ही मुख्यमंत्री द्वारा भोपाल की तर्ज पर प्रदेश का दूसरा भारत भवन बनाने के लिए तीन करोड़ रूपये की मंजूरी भी दी। यहां कार्यक्रम में जुगलबंदी ने मन मोह लिया। ग्वालियर घराने से संबद्ध कलाकार पं. देशराज जी वशिष्ठ का वायलिन और तबले पर अपना पूरा अधिकार रखने वाले कलाकार पंकज राठौर की जुगलबंदी ने उत्सव में समां बांध दिया।

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