Advertisement

मेरे पिता : समय और स्त्री की कद्र का सबक

राजीव चौरसिया   पिता : बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया   जब से मैंने होश संभाला, पिता को मंच पर पाया।...
मेरे पिता : समय और स्त्री की कद्र का सबक

राजीव चौरसिया

 

पिता : बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया

 

जब से मैंने होश संभाला, पिता को मंच पर पाया। पिताजी पूर्ण रूप से अपनी कला, अपने संगीत को समर्पित थे। उनका अधिकांश समय बॉलीवुड फिल्मों की रिकॉर्डिंग में बीता करता था। इसके साथ ही शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों में प्रस्तुति भी होती थी। यानी परिवार के लिए उन्हें बहुत कम समय मिलता था। घर की सारी बागडोर मां के हाथ में थी। चूंकि पिताजी कम समय ही घर पर रहते थे, तो उनकी कोशिश रहती थी कि बच्चों पर अधिक से अधिक लाड-प्यार लुटाया जाए। वह जब भी अपने कार्यक्रम से घर लौटते तो मेरे लिए कोई तोहफा या खिलौना लेकर आते। पिताजी ने कभी मुझ पर गुस्सा नहीं किया। उन्होंने हमेशा से एक स्वतंत्र माहौल उपलब्ध कराया। पिताजी ने अपने जीवन में अपनी राह बनाई। उन्होंने कुश्ती की पारिवारिक परंपरा को कायम रखने का दबाव ठुकरा दिया। उन्होंने अपना रास्ता तय किया और संगीत के क्षेत्र में ऊंचा स्थान प्राप्त किया। इस कारण पिताजी ने कभी मुझे बांसुरी वादक बनने को नहीं कहा। उनका मानना था कि जो भीतर से संतुष्टि और प्रेरणा दे, उसका चुनाव व्यक्ति को करना चाहिए। किसी के कहने पर की जाने वाली चीज स्थायी नहीं रहती और न ही उसके बेहतर परिणाम होते हैं।

 

पिताजी ने हमें कुछ नियम अपनाने को जरूर कहा। जैसे सवेरे जल्दी उठने के लिए पिताजी ने हमेशा प्रेरित किया। भोजन को लेकर पिताजी की सख्त हिदायत थी कि पौष्टिक नाश्ता जीवन में अनिवार्य रूप से शामिल हो। दूध, दही, सूखे मेवे आहार में शामिल करने के लिए पिताजी जोर देते थे। उनका कहना था कि व्यक्ति को हर सुबह ऐसा नाश्ता करना चाहिए कि यदि रात तक उसे भोजन न मिले तो भी उसे दिन भर भूख का एहसास न हो। मुझे याद है कि पिताजी खुद मुझे अपने साथ लेकर सैलून जाते थे। वह पास बैठे रहते और नाई को निर्देश देते कि मेरे बाल छोटे ही रखे जाएं। जब यह घटनाएं होती थीं तो मुझे एहसास होता कि मेरे पिता भी सामान्य पिताओं की तरह मेरा ख्याल रखते हैं। तब मुझे महसूस होता कि उन्हें मेरे भोजन और साफ-सफाई की फिक्र है। चूंकि बहुत कम समय मिलता था पिताजी के साथ इसलिए यह फिक्र देखकर बड़ी खुशी होती थी मुझे। मैंने पिताजी की तरह संगीत का मार्ग नहीं अपनाया। मैंने अपनी राह बनाई। पिताजी ने मेरे चुनाव का सम्मान किया। पिताजी का कहना था कि जीवन में तकलीफों से घबराना नहीं चाहिए। हर तकलीफ से सीख मिलती है, इसलिए तकलीफों से भयभीत हुए बिना इंसान को कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ना चाहिए।

 

पिताजी हमेशा संगीत के महत्व को समझाते रहे। उनका कहना था कि मन के घाव संगीत से ही भरते हैं। इसलिए संगीत का जीवन में शामिल होना बेहद जरूरी है। पिताजी ने पूरी जिंदगी मुझे समय की कद्र करना सिखाया। उन्होंने हमेशा यही कहा कि समय की कद्र करने से ही सफलता मिलती है। यदि समय का सम्मान नहीं करेंगे तो आजीवन अपमानित होते रहेंगे। पिताजी के साथ अधिक समय बिताने के लिए मैं पिछले कुछ समय से बांसुरी वादन के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मेरा बांसुरी वादन, अपने पिता के साथ समय बिताने और उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा को महसूस करने का माध्यम है। मैंने जिंदगी भर पिताजी को स्त्री शक्ति का सम्मान करते देखा। पिताजी अपनी गुरु मां के लिए समर्पित थे। मेरी मां के साथ पिताजी का प्रेमपूर्ण व्यवहार रहा है। मैंने पिताजी से सीखा कि पुरुष वही है जो स्त्री का सम्मान करता हो और उसके योगदान के लिए कृतज्ञ महसूस करता हो।

 

(मनीष पाण्डेय के साथ हुई बातचीत पर आधारित)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad