बेल्जियम में गेंट यूनीवर्सिटी से फ्रांसिस मीरबर्ग ने बताया, इन अपशिष्ट पदार्थों में जैविक सामग्री का स्तर इतना कम होता है कि इन्हें सीधे तौर पर प्राप्त नहीं किया जा सकता। हमने यह खोज की है कि इस सामग्री को पाने के लिए हम बैक्टीरिया का इस्तेमाल कर सकते हैं। मीरबर्ग ने कहा, हमारा दृष्टिकोण बहुत अनोखा है क्योंकि हमने इस तथाकथित संपर्क स्थिरीकरण प्रक्रिया का एक उच्च दर रूपांतर विकसित किया है। गेंट यूनीवर्सिटी के निको बून ने कहा, हमने उपवास का तरीका अख्तियार कर समय-समय पर इन बैक्टीरिया को भूखा रखा। इसके बाद थोड़ी-थोड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल को इन भूखे बैक्टीरिया के संपर्क में लाया जाता है और फिर भूखे और पेटू बैक्टीरिया जल्द से जल्द इन जैविक सामग्री को निगलने की होड़ में लग जाते हैं।
बून ने बताया, यह प्रक्रिया हमें अपची सामग्री से ऊर्जा और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद पैदा करने में सक्षम बनाता है। इसके बाद हम बाकी बैक्टीरिया को भी भूखा रखते हैं ताकि वे इन अपशिष्ट पदार्थों को फिर से शुद्ध कर सकें। प्रयोग में संपर्क-स्थिरीकरण प्रक्रिया के इस्तेमाल से इन अपशिष्ट पदार्थों से 55 प्रतिशत जैविक सामग्री प्राप्त की जा सकी। उन्होंने कहा, इस दिशा में यह आगे बढ़ने का एक बड़ा कदम है क्योंकि मौजूदा प्रकियाओं से 20 से 30 प्रतिशत से अधिक जैविक सामग्री नहीं प्राप्त की जा सकती है। अनुसंधानकर्ताओं का अनुमान है कि अपशिष्ट पदार्थ के पूर्ण शोधन के लिए बाय बिजली का इस्तेमाल किए बिना इनके इस्तेमाल से पर्याप्त मात्रा में उर्जा प्राप्त की जा सकती है। गेंट यूनीवर्सिटी के प्रोफेसर सीगफ्रीड व्लीमिंक ने कहा, अपशिष्ट शोधन की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो उर्जा की कम खपत करता है, बल्कि उर्जा उत्पन्न भी करता है।