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भाषा-तकनीक पर सामुदायिक सहभागिता की सफलता का उत्सव है फ्यूल कॉन्‍फ्रेंस

फ़्यूल ज़िल्ट कॉन्‍फ्रेंस 2016 को भाषा तकनीक पर सामुदायिक सहभागिता की बेमिसाल सफलता का उत्सव कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भाषाई कंप्यूटिंग के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों का यह सलाना उत्सव इस साल नई दिल्ली के द सूर्या होटल में बीते सप्ताहांत में आयोजित किया गया। दुनियाभर से करीब सौ से अधिक लोग इस कार्यक्रम में शरीक हुए।
भाषा-तकनीक पर सामुदायिक सहभागिता की सफलता का उत्सव है फ्यूल कॉन्‍फ्रेंस

इस कार्यक्रम का आयोजन सीडैक जिस्ट, रेड हैट, मोज़िला, लिब्रेऑफिस और सीएसडीएस के सहयोग से किया गया। कार्यक्रम का बीज-वक्तव्य डिजिटल इंडिया के निदेशक विनय ठाकुर ने दिया। आरंभिक सत्र में सीडेक जिस्ट प्रमुख महेश कुलकर्णी, मोजिला लोकलाइजेशन प्रमुख जेफ बेट्टी और सीएडडीएस के फेलो इतिहासकार रविकांत ने अपना भाषण दिया। विनय ठाकुर ने डिजिटल इंडिया के संदर्भ में भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए विस्तार से विभिन्न योजनाओं में भारतीय भाषा की उपस्थिति के लिए किए जा रहे कार्यों की बात की। भाषाई कंप्यूटिंग के क्षेत्र में करीब पैंसठ से अधिक भाषाई समुदायों के साथ काम कर रहे ओपन सोर्स प्रोजेक्ट फ्यूल प्रोजेक्ट के संस्थापक राजेश रंजन ने कार्यक्रम की शुरुआत में प्रोजेक्ट का अपडेट दिया और भविष्य के योजनाओं की रूपरेखा बताई।   

इस कार्यक्रम में लिब्रेऑफिस के इटालो विग्नोली, वर्ल्ड वाइड वेब कंसोर्शियम के एलन बर्ड, ट्रांसलेट हाउस के लाइलाइजेशन इंजीनियर रेयान नार्थे, टाइफैक के कार्यकारी निदेशक प्रभात रंजन सहित कई जाने-माने लोगों ने अपना वक्तव्य और प्रजेन्टेशन दिया। पिछले चार सालों में पहली बार इस सम्मेलन में भाषा और मीडिया क्षेत्र से जु़ड़े लोग मसलन जाने-माने लेखक प्रभात रंजन, पत्रकार व लेखक सोपन जोशी, मीडिया क्रीटिक विनीत कुमार, राजपाल की मीरा जौहरी, अनुवादक-पत्रकार संजय कुमार सिंह, पत्रकार वैदेही तमन आदि की मौजूदगी महत्वपूर्ण रही। तकनीक और भाषा के बीच एक खाई रही है और संभवतः यह उसे पाटने की एक कोशिश। इस कार्यक्रम के हिस्से के तौर पर मोजिला लोकलाइजेशन हैकाथन का आयोजन भी किया गया था जिसमें भारतीय भाषाओं के अलावे श्रीलंका, बंग्लादेश और नेपाल के स्वयंसेवी कार्यकर्ताओं की शिरकत भी महत्वपूर्ण रही।

कार्यक्रम में करूणाकर ने रवि रतलामी के द्वारा तैयार हिंदी शब्द-सूची के साथ हंस्पेल स्पेलचेकर के डेटाबेस को विस्तार दिया। वहीं पहली बार कुसुम रावत ने समुदाय के लिए गढ़वाली भाषा की शब्दसूची दी जिससे गढवाली स्पेलचेकर बनाई जाएगी। शिक्षाविद प्रभास रंजन ने शिक्षा पर फ्यूल के एक नए शब्दावली मॉड्यूल को जारी किया तो वहीं परिवहन विशेषण प्रणव झा ने परिवहन पर नए मॉड्यूल पर काम करने की घोषणा की।

भारत में भाषाई कंप्यूटिंग के क्षेत्र में काम कर रहे कई अहम लोगों की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम की सफलता को पक्का किया जैसे जी. करूणाकर, सुधन्वा जोगलेकर, चंद्रकांत धूताडमल, विजय प्रताप सिंह, सत्यब्रता मैत्रा, कृष्णाबाबू। विकिपीडिया की ओर से कन्नड़ और तुलु की स्थिति पर पवनजा यूबी ने इस दौरान बातें की। बिराज कर्माकर, निशांत सिंह, नेहा, कुसुम रावत, अरविंद राय, शाहिद फारुकी, उमेश अग्रवाल, शुभम बसईकर, अनिकेत देशपांडे, देवराज, राजू देवीदास विंदाने, श्रीनिधि गोपाल, अनीश शीला, संदीप गिल जैसे युवा प्रौद्योगिकीविदों ने कार्यक्रम में भरोसा दिलाया और बताया कि लोकल लैंग्वेज कंप्यूटिंग के क्षेत्र में वे काम के लिए सदा तैयार है। कार्यक्रम का संचालन मलयायम भाषा-प्रौद्योगिकीविद ऐनी पीटर और डिजिटल इंडिया के अरविंद राय ने किया। सीडैक जिस्ट के इंजीनियर और फ्यूल प्रोजेक्ट के प्रमुख सदस्य चंद्रकांत धूताडमल ने धन्यवाद ज्ञापन किया। 

चार साल पहले इस कॉन्फरेंस की शुरूआत फ़्यूल प्रोजेक्ट के द्वारा हुई थी। फ़्यूल प्रोजेक्ट समुदाय आश्रित परियोजना है जिसकी शुरूआत 2008 में हुई थी। धीरे-धीरे दुनिया की कई जाने-माने संगठनों के साथ इसकी सहभागिता ने इसके प्रचार-प्रसार में मदद की और भाषाई संसाधन का अब यह सबसे बड़ा खुला प्रोजेक्ट बन गया है जिसके संसाधन ओपन लाइसेंस के अंतर्गत उपलब्ध हैं। यह शायद एकमात्र ओपन सोर्स प्रोजेक्ट है जिसकी शुरूआत भारत से हुई है और धीरे-धीरे गुणवत्ता की बदौलत दुनिया भर में फैली है। 

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