-प्रदीप
जैसा कि वर्ष 2016 में लगभग यह तय माना जा रहा था कि वर्ष 2017 का भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार गुरुत्वीय तरंगों यानी ग्रैविटेशनल वेव्स के खोजकर्ताओं को ही मिलेगा। विगत 2 अक्टूबर 2017 को तीन अमेरिकी वैज्ञानिकों बैरी बैरिश, किप थोर्ने और रेनर वेस को गुरुत्वीय तरंगों की खोज के लिए इस साल का भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गयी है।
तीनों वैज्ञानिकों को लेजर इंर्टफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी (लीगो) डिटेक्टनर के निर्माण और गुरुत्वीय तरंगों के अध्यजयन, अवलोकन के लिए संयुक्त रूप से अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि 10 दिसम्बर के दिन सम्मानित किया जाएगा। पुरस्कार की घोषणा करते समय नोबेल समिति के प्रतिनिधि ने बताया कि इस वर्ष यह पुरस्कार उस खोज के लिए दिया गया है, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। वास्तव में इस खोज ने न सिर्फ वैज्ञानिकों में बल्कि जनसामान्य में भी सनसनी फैला दी थी। इस खोज को विज्ञान के क्षेत्र में इस सदी का सबसे बड़ा आविष्कार माना गया।
आज से तकरीबन 100 वर्ष पहले सर्वकालिक महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने अपने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में यह पूर्वानुमान लगाया था कि यदि किसी अत्यधिक द्रव्यमान वाले खगोलीय पिंड की गति में त्वरण आता है, तो वह अन्तरिक्ष में लहरे एवं हिचकोले उत्पन्न करेगा जो उस पिंड से दूर गति करेंगी। ये लहरे दिक्-काल (स्पेस-टाइम) में वक्रता उत्पन्न करती हैं। इन्हीं लहरों को अब वैज्ञानिक ‘गुरुत्वीय तरंगे’कहते हैं। इन तरंगों की गति प्रकाश की गति के जितनी ही होती है, यूं कहें तो ये प्रकाश तरंगों के समान ही होती हैं। ब्रह्मांड का प्रत्येक त्वरणशील खगोलीय पिंड गुरुत्वीय तरंगों को उत्पन्न करता है। जिस खगोलीय पिंड का द्रव्यमान अधिक होता है, वह उतनी ही अधिक प्रबल गुरुत्वीय तरंगे उत्पन्न करता है।
हमारी पृथ्वी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से त्वरित होकर एक वर्ष में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करती है। इस कारण से सूर्य के चारों तरफ की कक्षा में पृथ्वी की गति गुरुत्वीय तरंगे उत्पन्न करती है। परन्तु पृथ्वी की यह गति बहुत धीमी है और हमारी पृथ्वी का द्रव्यमान भी इतना कम है कि इससे उत्पन्न होने वाली दुर्बल गुरुत्वीय तरंगों का प्रेक्षण करना लगभग असम्भव है।
सर्वप्रथम वर्ष 1974 में दो खगोल वैज्ञानिकों जे. एच. टेलर और आर. ए. हल्स ने अप्रत्यक्ष रूप से गुरुत्वीय तरंगों को पकड़ने में सफलता हासिल की। दरअसल, इन दोनों वैज्ञानिकों ने एक-दूसरे की परिक्रमा करने वाले दो न्यूट्रोन तारों (पल्सर) की खोज की थी। ये दोनों जो अत्यधिक द्रव्यमान एवं सघनता वाले तारे हैं, एक-दूसरे की परिक्रमा अत्यधिक वेग से कर रहे हैं। अत्यंत तीव्र गति से परिक्रमा करने के कारण ये अल्प मात्रा में गुरुत्वीय तरंगे भी उत्सर्जित कर रहें हैं।
गुरुत्वीय तरंगों के उत्सर्जन से हो रही ऊर्जा की हानि इन तारों को एक-दूसरे की ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही है। इससे इन तारों के बीच की दूरी धीरे-धीरे कम हो रही है। जब इसकी गणना की गई तो यह कमी आइन्स्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के पूर्णतया अनुरूप मिली। यह गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति का एक अप्रत्यक्ष प्रमाण था। सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की इस पुष्टि के लिए टेलर और हल्स को वर्ष 1993 में भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
लीगो डिटेक्टर ने मई 2016 में पहली बार दो ब्लैक होल्स के बीच टक्कर से उत्सर्जित गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति का प्रत्यक्ष अवलोकन किया था। ब्लैक होल अत्यधिक घनत्व तथा द्रव्यमान वाले ऐसें पिंड होते हैं, जो आकार में बहुत छोटे होते हैं। इसके अंदर गुरुत्वाकर्षण इतना प्रबल होता है कि उसके चंगुल से प्रकाश की किरणों का निकलना भी असंभव होता हैं। चूंकि यह प्रकाश की किरणों को अवशोषित कर लेता है, इसीलिए यह हमेशा अदृश्य बना रहता है। लीगो के इस खोज ने ब्लैक होल के अस्तित्व को प्रमाणित करने के साथ-साथ गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति को भी सिद्ध कर दिया।
जिस प्रकार से यह अनुमान लगाया गया था कि दो ब्लैक होल्स के टक्कर से गुरुत्वीय तरंगे पैदा होती है, उसी प्रकार से यह भी अनुमान लगाया गया था कि दो न्यूट्रॉन तारों के टक्कर या विलय से भी गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति होती है। 17 अगस्त 2017 को पहली बार दो न्यूट्रॉन तारों के टक्कर या विलय से गुरुत्वीय तरंगों की उत्पत्ति के प्रत्यक्ष प्रमाण अमेरिका और इटली के डिटेक्टरों से मिले। दो न्यूट्रॉन तारों के टक्कर से उत्पन्न गुरुत्वीय तरंगों से संबंधित नये अवलोकन और उनकी व्याख्याओं की खगोल-भौतिकी की दृष्टि से दो प्रमुख विशेषताएं बतायी जा रही हैं। एक तो यह कि इस विराट ब्रह्मांड में इस तरह की क्रियाएं होती रहती हैं, जिनसे ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विस्तार और अनोखेपन के बारे में जानने की हमें नयी संभावनाएं मिलती हैं। दूसरी विशेषता यह है कि पहली बार एक ऐसी प्रक्रिया देखने में आयी, जिससे पता चलता है कि ब्रह्मांड में लोहे से भारी रासायनिक तत्व (एलिमेंट) कैसे बनते हैं।
बहरहाल, गुरुत्वीय तरंगों की खोज से ब्रह्मांड विषयक हमारे ज्ञान में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। गुरुत्वीय तरंगों की खोज में हजारों की संख्या में वैज्ञानिक जुड़े रहें, मगर नोबेल पुरस्कार अधिकतम तीन वैज्ञानिकों को ही प्रदान किया जा सकता है। इसलिए इस खोजी परियोजना की नेतृत्व करने वाले तीन वैज्ञानिकों को चुना गया। हालाँकि बाकी सभी वैज्ञानिकों को ब्रेकथ्रू प्राइज के लिए चुना गया है। गुरुत्वीय तरंगों की खोज ब्रह्मांड को देखने के लिए एक नवीन झरोखा प्रस्तुत करती है। खगोल-भौतिकी के क्षेत्र में यह खोज एक नये वैज्ञानिक युग का सूत्रपात है।