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डेंगू पर काबू का हथियार मिला

डेंगवेक्सिया के नाम से भारत में अभी गिने-चुने लोग ही परिचित हैं मगर यकीन मानें, अगले एक वर्ष में देश की शायद बड़ी आबादी इस नाम से परिचित हो जाएगी। दरअसल यह नाम है दुनिया में डेंगू बुखार के उस पहले टीके का जिसे किसी देश में आधिकारिक रूप से बिक्री का लाइसेंस जारी किया गया है।
डेंगू पर काबू का हथियार मिला

फ्रांस की दवा कंपनी सनोफी के टीका विभाग सनोफी पास्चर के शोध कर्मियों ने 20 वर्षों के गहन शोध और दुनिया के कई देशों में क्लिनिकल ट्रायल के बाद यह टीका तैयार किया है और दुनिया में सबसे पहले मेक्सिको के दवा नियंत्रक ने तमाम परीक्षणों के बाद इसे देश में 9 से 45 वर्ष की आयु के मरीजों को बेचने का लाइसेंस जारी किया है। हालांकि सनोफी ने भारत में भी इस दवा की बिक्री के लिए लाइसेंस मांगा है मगर अभी यहां उसे लाइसेंस नहीं मिल पाया है। स्वास्थ्य विभाग के सूत्र बताते हैं कि भारत में भी इसके क्लिनिकल ट्रायल के सकारात्मक परिणामों को देखते हुए कंपनी को यहां इसकी बिक्री का लाइसेंस मिल जाएगा।

कंपनी ने भारत में दिल्ली, लुधियाना, कोलकाता, पुणे और बेंगलुरु में 18 से 45 वर्ष के लोगों के बीच इस टीके का परीक्षण किया है और इस परीक्षण के प्रधान जांचकर्ता और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज एवं लोकनायक अस्पताल के निदेशक डॉ. ए.पी. पांडेय का कहना है कि इस टीके के तीन डोज के बाद यह डेंगू के चारों प्रकार के वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है। डॉ. पांडेय कहते हैं कि परीक्षण के दौरान संबंधित मरीजों में गंभीर डेंगू का कोई मामला नहीं सामने आया, कोई मौत नहीं हुई और न ही टीके के कारण कोई गंभीर नकारात्मक असर ही देखा गया।

जाहिर है कि भारत जैसे देश में, जहां हर वर्ष हजारों लोग डेंगू की चपेट में आते हैं और इस वर्ष जहां सिर्फ दिल्ली में 15 हजार से अधिक मरीज सामने आए और करीब चालीस लोग इसके कारण जान से हाथ धो बैठे, ऐसा कोई भी टीका वरदान हो सकता है। खासकर यह देखते हुए कि यह टीका डेंगू के सभी चार वायरसों से सुरक्षा प्रदान करता है। हालांकि कंपनी ने अभी भारतीय बाजार के लिए इसकी कीमत तय नहीं की है मगर कंपनी के एक प्रवक्ता ने मीडिया को जानकारी दी है कि भारत में इसकी कीमत इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या सरकार इसे अपने नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करेगी? उन्होंने यह भी कहा कि उनकी कंपनी भारत में किसी भी प्रभावी डेंगू टीकाकरण कार्यक्रम के लिए सरकार के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है। कंपनी के प्रवक्ता जो भी कहें मगर इतना तय है कि इस टीके की कीमत बहुत सस्ती तो नहीं रहने वाली है। खासकर यह देखते हुए कि कंपनी इस टीके के विकास पर पिछले 20 वर्षों में 1.6 अरब डॉलर यानी करीब 10,560 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा कर रही है। कंपनी इस टीके की पहली व्यावसायिक खुराक तैयार कर चुकी है और कंपनी साल में 10 करोड़ खुराक के व्यावसायिक उत्पादन की तैयारी कर चुकी है।

जाहिर है इस निवेश की भरपाई कंपनी का पहला लक्ष्य होगी। सनोफी कंपनी ने कहा है इस वर्ष के अंत तक वह दुनिया के कम से कम 30 देशों में बिक्री का लाइसेंस हासिल होने की उम्मीद कर रहे हैं। मेक्सिको में कंपनी को 9 वर्ष से कम और 45 वर्ष से अधिक के मरीजों को यह टीका लगाने की अनुमति नहीं मिली है जबकि डेंगू छोटे बच्चों और बुजुर्गों के मामले में भी कई बार जानलेवा साबित होता है। हालांकि इस बीमारी के पूरी दुनिया में किए गए सर्वे बताते हैं कि इसका सबसे अधिक शिकार 9 से 45 वर्ष आयु वर्ग के लोग ही होते हैं इसलिए कंपनी ने अपना ध्यान इसी वर्ग पर केंद्रित रखा है। पूरी दुनिया में हर वर्ष 50 लाख से अधिक लोग डेंगू के कारण अस्पतालों में दाखिल होते हैं।

डेंगू ऐसा जानलेवा बुखार है मो एडिस इजिप्टी मच्छर के जरिये फैलता है और गंभीर स्थिति होने पर मरीज के अंदरुनी अंगों को खराब कर देता है जिसके कारण उनकी मौत भी हो सकती है। हालांकि 99 फीसदी मामलों में यह उचित देखभाल और सामान्य उपायों से ठीक हो जाता है मगर इसके कारण होने वाली मौतें मरीजों और उनके परिजनों में घबराहट का कारण बन जाती है।

अगर डेंगवेक्सिया के असर की बात करें तो मेक्सिको के दवा नियंत्रक ने यह देखने के बाद इस टीके को मंजूरी दी कि यह दो तिहाई मरीजों में डेंगू के असर को कम करने में कामयाब रहा जबकि 90 फीसदी मामलों में इसने गंभीर बीमारी पर रोक लगाई। इसी प्रकार टीका लगाए जाने के बाद डेंगू के कारण अस्पताल में भर्ती किए जाने के मामलों में 80 फीसदी कमी आ गई। इस टीके के बारे में सनोफी के एमडी और सीईओ ओलीवर ब्रेंडीकोर्ट ने कहा कि 20 साल की अथक मेहनत के बाद आखिरकार हमने डेंगू को टीके के जरिये रोकी जा सकने वाली बीमारी में तब्दील करने का लक्ष्य हासिल कर लिया है। यह न सिर्फ कंपनी बल्कि पूरी दुनिया के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है।

दिल्ली के फोर्टिस-सी डॉक अस्पताल से जुड़े वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. आर.एन.वर्मा कहते हैं कि डेंगू का टीका तो भारत में आते-आते आएगा मगर जिन सामान्य चीजों के जरिये इस बीमारी को प्रभावी रूप से काबू में लाया जा सकता है उसपर अबतक देश में पूरा ध्यान दिया ही नहीं जा रहा है। डॉ. वर्मा इस सिलसिले में श्रीलंका का उदाहरण देते हैं। आउटलुक को उन्होंने बताया कि श्रीलंका ने कुछ देशों में पाए जाने वाले ऐसे मच्छर अपने यहां मंगाए जो डेंगू के वाहक नहीं हो सकते। आनुवांशिक रूप से ये मच्छर ऐसे होते हैं कि वह एडिस इजिप्टी मच्छर के संपर्क में आते हैं और इससे मच्छरों की नई तादाद पैदा होती है जो डेंगू का प्रसार नहीं कर सकती। डॉ. वर्मा कहते हैं कि इस तकनीक से धीरे-धीरे डेंगू फैलाने वाले मच्छरों की प्रजाति ही खत्म हो जाएगी और उसके साथ ही यह बीमारी भी। अगर श्रीलंका ऐसा कर सकता है तो भारत यह तकनीक क्यों नहीं अपना सकता? हालांकि डॉ. वर्मा यह भी कहते हैं कि भारत में भी इस दिशा में कुछ कदम उठाए गए हैं मगर अभी यह शुरुआती अवस्था में ही है। डॉ. वर्मा कहते हैं कि जबतक डेंगू पर नियंत्रण की कोई प्रभावी तकनीक भारत में नहीं आ जाती तबतक जागरुकता से ही लोग बच सकते हैं। यह एक तथ्य है कि उत्तर भारत में ठंड की वजह से भले ही डेंगू के मामले सामने आने कम हो गए हों मगर पश्चिम और दक्षिण भारत में अब भी इसके मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि लोग बीमारी के बारे में पर्याप्त जानकारी रखें। लोग इस बात को समझें कि एडिस इजिप्टी मच्छर एक चम्मच में जमा पानी में भी पनप सकता है इसलिए ऐसी कोई स्थिति ही न पैदा होने दें।

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