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लोकतंत्र के ताबूत में ठोकी गई हर कील मेरे दिल में ठोकी गई कील के समान: जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल में लिखा था

पचास पहले देश में लगाए गए आपातकाल के दौरान राजनीतिक बंदी के रूप में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने...
लोकतंत्र के ताबूत में ठोकी गई हर कील मेरे दिल में ठोकी गई कील के समान: जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल में लिखा था

पचास पहले देश में लगाए गए आपातकाल के दौरान राजनीतिक बंदी के रूप में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने अपनी डायरी में लिखा था, ‘‘भारतीय लोकतंत्र के ताबूत में ठोकी गई हर कील मेरे दिल में ठोकी गई कील के समान है।’’

साल 1975 में 25 जून को आधी रात के आसपास तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने ‘आंतरिक अशांति’ का हवाला देते हुए आपातकाल की घोषणा की थी।

उसी दिन, जेपी के नाम से लोकप्रिय और तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के कट्टर आलोचक जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल सभा को संबोधित किया था।

वहां उन्होंने रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘जनतंत्र का जन्म’ की एक पंक्ति को उद्धृत करते हुए ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का मशहूर नारा लगाया था। उस समय 72 वर्षीय नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और अन्य विपक्षी नेताओं को जल्द ही आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम (मीसा) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया।

कुछ दिन बाद, जेपी को पीजीआई-चंडीगढ़ ले जाया गया और एक जुलाई से कुछ महीने के लिए पुलिस सुरक्षा के साथ और जनता की नजरों से दूर एक राजनीतिक कैदी के रूप में वहां रखा गया।

नारायण की ‘जेल डायरी’ का पहला संस्करण आपातकाल के दौरान ही प्रकाशित हुआ था जिसकी शुरुआत 21 जुलाई, 1975 को उनके नजरबंदी के दौरान लिखे गए एक मार्मिक विवरण से होती है। उन्होंने लिखा, ‘‘मेरी दुनिया मेरे चारों ओर बिखरी हुई है। मुझे डर है कि मैं अपने जीवनकाल में इसे फिर से एक साथ जुड़ते नहीं देख पाऊँगा।’’

जेपी की ‘मेरी जेल डायरी’ में लिखा है, ‘‘पिछले दो दिन से लिखने का मन नहीं कर रहा था। भारतीय लोकतंत्र के ताबूत में ठोकी गई हर कील मेरे दिल में ठोकी गई कील की तरह है। मैंने अपने दिल को टटोला है और मैं सच में कह सकता हूं कि अगर मुझे अभी मरना भी पड़े, तो मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।’’

एस के जिंदल ने अपनी 2015 की किताब ‘मेडिकल एनकाउंटर्स: ट्रू स्टोरीज ऑफ पेशेंट्स – मेमोयर्स ऑफ ए फिजीशियन’ में भी पीजीआई-चंडीगढ़ में रखे गए इस ‘वीआईपी अतिथि’ की नजरबंदी के बारे में लिखा है। उन्होंने एक अध्याय में लिखा, ‘‘मुझे जेपी की राजनीतिक नजरबंदी और उसके बाद चंडीगढ़ में हमारे संस्थान में अस्पताल में भर्ती होने के दिनों में एक चिकित्सा अधिकारी के रूप में उनकी देखभाल करने का सम्मान मिला था।’’

उस दौर के आधिकारिक अभिलेखीय दस्तावेजों के अनुसार, गुजरात में चिमनभाई पटेल सरकार के खिलाफ छात्र विद्रोह ने 70 के दशक में नारायण के ‘बिहार आंदोलन’ को प्रेरित किया था, जिसके कारण अंततः आपातकाल लागू हुआ।

गुजरात के युवाओं में जेपी ने पूर्वी राज्य में क्रांति की चिंगारी और ऊर्जा देखी, जिसने अंततः पूरे देश को अपनी चपेट में ले लिया।

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