राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि वे रसगुल्ला पर केवल भौगोलिक संकेत (जीआई) का टैग चाहता है। एक अधिकारी ने पीटीआई भाषा को बताया, ओडिशा के साथ कोई विवाद नहीं है। हम अपने रसगुल्ला की पहचान की सुरक्षा करना चाहते हैं। उनका उत्पाद हमारे उत्पाद के रंग, बनावट, स्वाद, चाशनी और बनाने के तरीके से अलग है। चेन्नई में जियोग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री कार्यालय को हाल ही में लिखे एक पत्र में राज्य के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग और बागवानी विभाग ने कहा है कि जिस तरह से राज्य में इस मिठाई को बनाया जाता है वह अन्य राज्यों से अलग है। पत्र में पश्चिम बंगाल के रसगुल्ले की गुणवत्ता को उत्कृष्ट बताया गया है। अधिकारियों ने बताया, उदाहरण के तौर पर हमारे पास दार्जिलिंग चाय और हिमाचल के पास कांगड़ा चाय है। दोनों चाय हैं लेकिन स्वाद अलग है। दोनों का जीआई टैग हो सकता है।
ओडिशा का दावा रहा है कि रसगुल्ला पुरी में जगन्नाथ मंदिर से प्रचलन में आया, जहां पर धार्मिक अनुष्ठान के तहत 12 वीं सदी से यह इसका हिस्सा रहा है। ओडिशा इसे पहला रसगुल्ला कहता है। 1860 के दशक में रसगुल्ला बनाने वालों में से एक के रूप में पश्चिम बंगाल के नोबिन चरण दास काफी चर्चित रहे हैं।