विवादास्पद 'बुलडोजर एक्शन' पर सुप्रीम कोर्ट के बुधवार के फैसले पर देश भर के राजनीतिक नेताओं की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, जहां कुछ ने फैसले का स्वागत किया है, वहीं अन्य ने इस पर चिंता व्यक्त की है।
महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने इस फैसले का स्वागत किया। एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, "यह फैसला उन लोगों पर तमाचा है जो 'बटेंगे तो कटेंगे' की बात करते हैं। यह राजनीति उत्तर प्रदेश से शुरू हुई थी। एक खास समुदाय और गरीबों के खिलाफ कार्रवाई की गई। हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं।"
इस बीच, मध्य प्रदेश में भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला ने फैसले पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट का कोई भी निर्देश एक तरह का आदेश होता है। अगर किसी खास कार्रवाई पर कोई टिप्पणी की गई है तो उसके बारे में जानकारी होने के बाद ही कुछ कहना उचित होगा।"
बिहार कांग्रेस के प्रभारी मोहन प्रकाश ने भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, "यह इस सरकार की नीयत और नीति है। अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाया जाता है, लेकिन अगर किसी का नाम एफआईआर में आ जाए और आप उस पर बुलडोजर चला दें, तो यह सरासर दुरुपयोग है। आज सुप्रीम कोर्ट ने जो कुछ कहा है, मुझे डर है कि सरकार इसे भी नहीं मानेगी।"
उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरा देश स्वागत करता है, सरकार इसका स्वागत करती है, विपक्ष भी इसका स्वागत करता है। सरकार का इरादा किसी का घर गिराने का नहीं है। अगर किसी अपराधी ने अवैध संपत्ति अर्जित की है और सरकारी जमीन पर घर बनाया है, तो जमीन खाली कराई जाती है। सरकार कभी किसी की निजी जमीन पर बने घर को नहीं गिराती।"
इससे पहले दिन में शीर्ष अदालत ने 'बुलडोजर न्याय' पर लगाम लगाने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए। अदालत ने कहा कि कार्यपालिका किसी व्यक्ति को एकतरफा दोषी घोषित नहीं कर सकती या बिना उचित प्रक्रिया के उसकी संपत्ति को ध्वस्त करने का फैसला नहीं कर सकती।
आदेश में कहा गया है कि संपत्ति के मालिक को 15 दिन का नोटिस दिए बिना कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए। नोटिस को पंजीकृत डाक से भेजा जाना चाहिए और संपत्ति पर भी चिपकाया जाना चाहिए।
नोटिस में अनधिकृत निर्माण की प्रकृति, विशिष्ट उल्लंघन और तोड़फोड़ के कारणों का उल्लेख होना चाहिए। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया है कि तोड़फोड़ की वीडियो रिकॉर्डिंग की जानी चाहिए। इन दिशा-निर्देशों का पालन न करने पर न्यायालय की अवमानना के आरोप लग सकते हैं।
इस फैसले में व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के महत्व को रेखांकित किया गया कि संपत्ति को मनमाने ढंग से न छीना जाए। न्यायालय ने शक्तियों के पृथक्करण की भी पुष्टि की, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि कार्यपालिका दोष निर्धारित करने या विध्वंस करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती।
यह फैसला बुलडोजर से तोड़फोड़ की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिकाओं के बाद आया है, जिसके बारे में आलोचकों का तर्क है कि इससे हाशिए पर पड़े और अल्पसंख्यक समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि तोड़फोड़ कानूनी रूप से की जाए न कि कानून से इतर सजा के तौर पर।