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कंप्यूटर इंजीनियर से किसान नेता तक का सफर, ऐसी थी अजीत सिंह की शख्सियत

देश ने आज एक बड़े किसान नेता को खो दिया। चौधरी अजीत सिंह हमारे बीच नहीं रहे। 82 साल के चौधरी साहब 20 अप्रैल...
कंप्यूटर इंजीनियर से किसान नेता तक का सफर, ऐसी थी अजीत सिंह की शख्सियत

देश ने आज एक बड़े किसान नेता को खो दिया। चौधरी अजीत सिंह हमारे बीच नहीं रहे। 82 साल के चौधरी साहब 20 अप्रैल को कोरोना महामारी की गिरफ्त में आए थे। फेफड़े में संक्रमण के चलते मंगलवार को उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी। गुरुवार सुबह गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में 8:20 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे और राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख चौधरी अजीत सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 को हुआ था। वे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बड़े नेताओं में शुमार किए जाते थे। बागपत क्षेत्र से वे सात बार लोकसभा के लिए चुने गए। एक बार राज्यसभा सांसद भी रहे। केंद्र सरकार में वे उद्योग, नागरिक उड्डयन और कृषि मंत्री रहे। उन्होंने चार प्रधानमंत्रियों वी.पी. सिंह, पी.वी. नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के साथ काम किया।


अजीत सिंह ने शुरुआत कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में की थी। उन्होंने आईआईटी खड़गपुर से बीटेक और इलिनॉइस इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी शिकागो से एमएस की पढ़ाई की थी। अमेरिका में करीब 15 वर्षों तक वे इस इंडस्ट्री में काम करने वाले अजीत सिंह ने आखिरकार कॉरपोरेट जगत की नौकरी छोड़ कर उस समय राजनीति में कदम रखने का निर्णय लिया जब उनके पिता बीमार हो गए थे। पहली बार 1986 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए थे।


1989 में जब तमाम विपक्षी दलों ने वी.पी. सिंह के नेतृत्व में एकजुट होने होकर कांग्रेस के विरोध का निर्णय लिया था तब अजीत सिंह जनता दल के महासचिव बनाए गए थे। कहा जाता है कि उस चुनाव में वी.पी. सिंह को उत्तर प्रदेश में बड़ा राजनीतिक समर्थन दिलाने में अजीत सिंह का हाथ था। उसी साल बागपत से वे पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। वी.पी. सिंह सरकार में एक साल तक वे उद्योग मंत्री रहे। 1991 के आम चुनाव में वे फिर जीते और पी.वी. नरसिंह राव सरकार की कैबिनेट में खाद्य मंत्री बने। 1996 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की लेकिन जल्दी ही पार्टी छोड़ दी और राष्ट्रीय लोक दल का गठन किया। 1997 के उपचुनाव में उन्होंने फिर जीत दर्ज की लेकिन 1998 में हार गए। उसके बाद 1999, 2004 और 2009 में वे लगातार बागपत क्षेत्र से निर्वाचित हुए। इस दौरान 2001 से 2003 तक वे वाजपेयी सरकार में कृषि मंत्री रहे। 2011 में उनकी पार्टी यूपीए के साथ चली गई। तब 2011 से 2014 तक वे उड्डयन मंत्री थे।

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