दिल्ली चुनाव में मिली अपार सफलता के बाद इतनी जल्दी अहम और मुद्दों का टकराव इतना कुरूप हो जाएगा, इसका आभास नहीं हो पाया। हालांकि इसके संकेत चुनाव प्रचार के दौरान भी देखने को मिल रहे थे। चुनाव प्रचार और उम्मीदवारों के चयन में प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव की भूमिका नहीं नजर आई।
अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जिन आठ लोगों ने प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के पीएसी से हटाये जाने के विरोध में वोट दिया, उनकी पार्टी में क्या स्थिति रहती है। इन आठ लोगों में आनंद कुमार, अजीत झा, क्रिस्टीना सैमे, सुभाष वारे, अशवांत गुप्ता, राकेश सिन्हा, योगेंद्र यादव तथा प्रसांत भूषण। इन आठ में से दो का भविष्य तो अधर में है ही, बाकी छह पहले से प्रमुख स्थिति में नहीं रह गए हैं। इन छह के अलावा वोट न डालने वाले मयंक गांधी ने जिस तरह से खुल कर अपने ब्लॉग में आप के नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाई है, उससे भी साफ है कि आने वाले दिन हंगामेदार रहने हैं।
आप के राष्ट्रीय संयोजक पद से इस्तीफा देकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने साफ संदेश दे दिया था कि वह किसी सूरत में प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पीएसी में नहीं देखना चाहते। बैठक का जो ब्यौरा सामने आ रहा है, उससे भी यही तस्वीर सामने आई कि पूरी बैठक का एजेंडा ही इन दो नेताओं को बाहर करना था। इन नेताओं ने जिन मुद्दों को उठाया था, उन पर कोई चर्चा नहीं की गई। अभी जिस तरह की गंदगी उछलनी शुरू हुई है, वह इन दोनों नेताओं के निकाले जाने तक थमने वाली नहीं ह। मन-मुटाव, संदेह, षडयंत्र का माहौल तारी है। कुछ अपने हैं, कुछ दूसरे खेमे के में आप कहा रहेगा, यह सवाल धीरे-धीरे बड़ा होता जाएगा।