“हर अकाली किसान,हर किसान अकाली”,का दावा करने वाली शिरोमणी अकाली दल(शिअद) ने किसानों के साथ जुड़ी सूबे की सियासत के लिए अंतत एनडीए से नाता तोड़ लिया है।
चंडीगढ़ स्थित शिअद मुख्यालय में शनिवार देर रात पार्टी की काेर कमेटी की बैठक में करीब तीन घंटे तक चली जद्दाजहद के बाद शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल ने एनडीए से 24 वर्ष पुराना गठबंधन तोड़ने का एलान किया।
शिअद सूत्रों मुताबिक बैठक में पार्टी के वयोवर्द्ध नेता प्रकाश सिंह बादल की अनुपस्थिती में हुए इस ऐतिहासिक फैसले के पक्ष में शिअद के कई वरिष्ठ नेता थे जबकि कुछ नेता गठबंधन जारी रखने के पक्ष में थे। केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए तीन कृषि कानूनों से अकाली-भाजपा में पिछले एक पखवाड़े में बढ़ी तरकरार आखिर दरार में बदल गई। प्रदेश में जैसे-जैसे किसानों का बिल के खिलाफ विरोध बढ़ा, वैसे ही अकाली दल अपनी रणनीति में बदलाव करता जा रहा है। 9 दिन पहले एनडीए गठबंधन सरकार में शिअद के कोटे से एक मात्र केबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया था।
पंजाब में मार्च 2022 में विधानसभा चुनाव हैं और शिअद का बड़ा वोट बैंक किसान है जिसे वह किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहता। हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद किसानों में यह संदेश नहीं जा पाया कि शिअद उनके साथ खड़ा है। पंजाब की सत्तारुढ कांग्रेस और विपक्षी आम आदमी पार्टी भी मामले को यह कहते हुए तूल दे रहे था कि ‘हरसिमरत का मंत्रीपद से इस्तीफा केवल एक ड्रामा है,किसानों का दर्द है तो एनडीए से नाता क्यों नहीं तोड़ा गया’। आंदोलन किसानों के साथ खुलकर उतरी कांग्रेस और आप को िसयासी टक्कर के लिए शिअद ने एनडीए से किनारा करने का बड़ा फैसला लिया।
आउटलुक से बातचीत में शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल ने कहा, “3 करोड़ पंजाबवासियों की पीड़ा और विरोध भी केंद्र के कठोर रुख को पिघलाने में विफल है तो यह वाजपेयी और बादल साहिब द्वारा परिकल्पित एनडीए नहीं है। ऐसे गठबंधन का अब पंजाब में कोई औचित्य नहीं रहा। केंद्र ने शिअद के साथ गठबंधन होते हुए भी पार्टी की बात नहीं मानी, जबकि हमने लगातार पीएम को स्थिति समझाने का प्रयास किया। पार्टी अब किसानों का साथ देगी और हम 2022 में विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे”।
एनडीए से िशअद गठबंधन टूटने पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदंर सिंह का कहना है कि सुखबीर बादल, शिअद प्रधानएनडीए का साथ छोड़ने के अलावा अकाली दल के पास कोई विकल्प नहीं बचा था। भाजपा और शिअद पूरी तरह से किसान विरोधी विधेयक के पक्षकार थे। गठबंधन का अंत 3 महीने से किसानों को गुमराह करने का नतीजा है।
शिअद के प्रवक्ता पूर्व केबिनेट मंत्री दलजीत सिंह चीमा ने कहा , “कृषि बिलों पर एनडीए ने अपने सहयोगी दलों से सलाह नहीं की और सलाह दिए जाने पर सलाह पर गौर भी नहीं किया। पंजाब किसानों का प्रदेश है और हम प्रदेश के साथ खड़े हैं इसलिए एनडीए के साथ रहना मुश्किल था। चीमा ने कहा कि उनकी पार्टी 2022 का विधानसभा चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ेगी और किसानों की सेवा के लिए फिर से उसे ताकत मिलेगी। भाजपा हमारे साथ मिलकर 23 सीटों पर चुनाव लड़ती आई है, लेकिन 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उनके साथ किसी प्रकार का गठबंधन नहीं रखा जाएगा”।
गठबंधन में लंबे समय से थी रार: दिल्ली विधान चुनाव और इसी साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भी शिअद और भाजपा के संबंधों में तल्खियां दिखने लगी थीं। वहीं भाजपा में भी नाराजगी थी। हरियाणा मंे भी शिअद ने भाजपा की बजाय इनेलो के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। 2017 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 113 सीटों में से शिअद 15 तो भाजपा ने तीन सीटों पर सिमट गई थी। भाजपा ने तब आधी सीटांे पर चुनाव लड़ने की मांग शिअद ने नहीं मानी। 2019 के लोकसभा चुनाव में 13 मंे से 10 सीटों पर लड़ी शिअद ने दो तो भाजपा ने 3 में से दो सीटों पर जीत दर्ज की।