राजधानी पटना के बीरचंद पटेल पथ पर बुधवार को दिन भर अजीब तरह की चुनावी सरगर्मी रही। एक तरफ सत्तारूढ़ महागठबंधन की ओर से राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, प्रदेश राजद के अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक चौधरी महागठबंधन के 242 उम्मीदवारों की सूची जारी कर रहे थे तो जद-यू-मुख्यालय के बाहर स्वास्थ्य मंत्री रामधनी सिंह के समर्थक पार्टी नेतृत्व के खिलाफ धरना-प्रदर्शन और नारेबाजी कर रहे थे। इन लोगों का गुस्सा रोहताश जिले में करगहर से पार्टी के पुराने और बुजुर्ग नेता रामधनी सिंह का टिकट काटे जाने को लेकर था। प्रदर्शनकारियों के सुर में कुछ राजद के नेता और कार्यकर्ता भी सुर मिलाते हुए कांटी से अपने नेता का टिकट काटे जाने का विरोध कर रहे थे। कमोबेश यही हाल भाजपा मुख्यालय का भी था। वहां भी दिनारा से किसी संजीव मिश्र का टिकट कट जाने का विरोध केसरिया टोपी लगाए उनके समर्थक ढोलक-झाल मंजीरा बजाकर कर रहे थे।
समर्थन और विरोध के बीच बिहार विधानसभा के चुनाव के लिए विभिन्न दलों और उनके गठबंधनों के उम्मीदवारों की तस्वीर साफ होती जा रही है। नीतीश कुमार के महागठबंधन ने आज 243 में से राजगीर को छोड़ कर बाकी सभी 242 सीटों के लिए उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। दूसरी तरफ भाजपानीत राजग में भाजपा ने अपने कोटे में से 152 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिया है। अब उसके पांच-छह उम्मीदवारों के ही नाम आने बाकी हैं। इसी तरह से इस गठबंधन में शामिल जीतनराम मांझी के ‘हम’ ने भी अपने 21 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। उनके चार पांच उम्मीदवार भजपा के टिकट पर भी लड़ रहे हैं। रामविलास पासवान की लोजपा और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के भी अब कुछ ही उम्मीदवारों के नाम सार्वजनिक होने बाकी हैं। दोनों गठबंधनों के उम्मीदवारों की सूची देखने से साफ लगता है कि विकास के दावे और वादे नेपथ्य में चले गए हैं। उसकी जगह सामाजिक समीकरण के मद्देनजर जिताऊ कहे जा सकने वाले उम्मीदवारों ने ले ली है। महागठबंधन ने जहां अपने मंडल या कहें सामाजिक न्याय के सिद्धांत को सामने रखकर पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों पर भरोसा किया है तो भाजपा और उसके गठबंधन ने सर्वाधिक सीटें अपने सवर्ण जनाधार को ध्यान में रखकर बांटी है।
महागठबंधन ने अपने उम्मीदवारों के चयन में बिहार के सामाजिक समीकरण में संतुलन बनाने की कोशिश करते हुए राज्य के तकरीबन 52 फीसदी अन्य पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के बीच 54 फीसदी यानी 130 सीटों का बंटवारा किया है। तकरीबन 16 फीसदी मुसलमानों की आबादी के मद्देनजर उन्हें 14 फीसदी यानी 33 सीटें, 13 फीसदी सवर्णों के लिए इस गठबंधन ने 16 फीसदी यानी 39 सीटें आवंटित की हैं। तकरीबन 14 फीसदी दलितों और महादलितों को 16 फीसदी यानी 40 सीटों पर उम्मीदवार बनाया गया है। दूसरी तरफ, भाजपानीत राजग के उम्मीदवारों की सूची में तकरीबन नब्बे उम्मीदवार सवर्ण जातियों-ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ-के हैं। अकेले भाजपा ने अब तक कुल 65 सवर्ण-30 राजपूत, 19 भूमिहार, 13 ब्राह्मण और तीन कायस्थ-उम्मीदवार दिए हैं। डेढ़ दो दर्जन सवर्ण उम्मीदवार भाजपा के सहयोगी दलों के उम्मीदवारों की सूची में भी हैं। इसके साथ ही भाजपा गठबंधन ने जहां नीतीश कुमार, लालूप्रसाद के सामाजिक समीकरण में सेंध लगाने की गरज से 22 यादव, तीन कुर्मी, 12 अति पिछड़ों और दो मुसलमानों को भी उम्मीदवार बनाया है। उसी तरह से सवर्ण विरोधी कहे जानेवाले महागठबंधन ने भी 13 भूमिहार, 12 राजपूत, 9 ब्राह्मण और पांच कायस्थों को उम्मीदवार बनाया है। महागठबंधन के उम्मीदवारों की सूची में जहां सर्वाधिक 64 यादव हैं, वहीं 22 कुशवाहा, 16 कुर्मी भी हैं। इस महागठबंधन ने बिहार में यादव, कुर्मी और कोइरी-कुशवाहा के पुराने ‘त्रिवेणी संघ’ को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है। बिहार में कुशवाहा बड़े पैमाने पर केंद्र सरकार में राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा के जरिए राजग के साथ बताए जाते हैं। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने इस जाति के 22 उम्मीदवार देकर उनके इस जानाधार में सेंध लगाने की जुगत की है।
दलितों और महादलितों के बीच सीटों के बंटवारे में महागठबंधन ने जीतनराम मांझी की चुनौती को देखते हुए अपने परंपरागत जनाधार कहे जानेवाले मांझी-मुसहर लोगों को कम, केवल चार टिकट ही दिए हैं। उनका जोर दलितों और महादलितों के बीच रविदास, पासवान और पासी लोगों को टिकट देने में ज्यादा दिखता है। अति पिछड़ों को भी काफी महत्व दिया गया है। जदयू के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप देने के लिए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद ने अकेले में बैठकर भारी मशक्कत की है। एक-एक उम्मीदवार के जीतने की संभावना के मद्देनजर सामाजिक समीकरण पर ध्यान दिया गया है। यह नहीं देखा गया है कि किसके उम्मीदवार का टिकट कट रहा है और किसके उम्मीदवार को टिकट मिल रहा है। इस क्रम में जदयू को अपने तकरीबन 40 निवर्तमान विधायकों को बेटिकट करना पड़ा है। इनमें से डेढ़ दर्जन विधायक पहले ही भाजपा अथवा ‘हम’ के साथ हो लिए थे। राजद के भी कुल 22 में से पांच-छह विधायकों के टिकट काटे गए। महागठबंधन के कुछ बेटिकट विधायकों ने राजग की शरण ली तो उसके और भाजपा गठबंधन के टिकटों से वंचित अधिकतर विधायकों को तारिक अनवर के नेतृत्व में बने समाजवादी पार्टी, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी और कुछ अन्य दलों को मिलाकर बने तीसरा यानी समाजवादी धर्म निरपेक्ष मोर्चा में जगह और उम्मीदवारी मिली।
भाजपा के भी 19-20 विधायकों को बेटिकट होना पड़ा। उसके एक वरिष्ठ एवं बुजुर्ग नेता राज्य सरकार में पूर्व मंत्री चंद्रमोहन राय की जगह उनके भतीजे चंद्रप्रकाश राय को टिकट मिला तो गुस्से में उन्होंने पार्टी के सभी पदों और जिम्मेदारियों से नाता तोड़ लिया। अब वह इस तरह के गंभीर आरोप भी लगा रहे हैं कि भाजपा आलाकमान ने महागठबंधन के जनाधार में सेंध लगाने के इरादे से पप्पू यादव और मुलायम सिंह यादव को महागठबंधन से अलग करवाया और हैदराबाद के सांसद ओवैशी को बिहार में बुलाकर सीमांचल में सक्रिय किया। दरअसल, श्री राय भतीजे की जगह अपने बेटे जनमेजय को उम्मीदवार बनाना चाहते थे।
लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के गठबंधन पर जंगलराज -पार्ट टू- की वापसी के आरोप लगाने वाली भाजपा और इसके नेतृत्व वाले गठबंधन ने भी अपराधी और छंटे बदमाश छवि के लोगों को टिकट देने में किसी तरह का संकोच नहीं किया है। महागठबंधन ने जहां अपराधी छवि के मुन्ना शुक्ला को उनकी विधायक पत्नी अनु शुक्ला की जगह वैशाली जिले में लालगंज से उम्मीदवार बनाया है। तो भाजपा ने भी भोजपुर जिले में शाहपुर से अपराधी छवि के विशेश्वर ओझा को उनकी विधायक भावह मुन्नी देवी का टिकट काटकर उम्मीदवार बनाया है। राजद के जेल में बंद पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के शूटर कहे जानेवाले मनोज सिंह को भी भाजपा ने अपने पुराने विधायक विक्रम कुंवर का टिकट काटकर उम्मीदवार बनाया है। लोजपा ने अपने बाहुबली पूर्व सांसद सूरजभान के भई कन्हैया सिंह, एक अन्य बाहुबली पूर्व सांसद काली पांडेय एवं अपराधी छवि के राजू तिवारी को भी उम्मीदवार बनाया है। इसी तरह से महाबगठबंधन की सूची में बेलागंज से बाहुबली सुरेंद्र यादव और राजबल्लभ यादव के नाम भी हैं। इस लिहाज से तय कर पाना मुश्किल ही होगा कि बिहार में जंगलराज की वापसी किस गठबंधन के बैनर तले होने जा रही है।