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भाजपा में नेतृत्व की शैली पर उठने लगे सवाल

भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने पार्टी के संस्थापक सदस्य को अपनी व्यथा सुनाते हुए कहा कि सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। तब पार्टी के संस्थापक सदस्य ने कहा कि, 'कुछ मत बोलो बहुत टेरर है।’ विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक यह कटाक्ष भाजपा के मौजूदा नेतृत्व को लेकर था और जब पार्टी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार की चिट्ठी सामने आई तो इस 'टेरर’ का अंदाजा लगाया जा सकता है।
भाजपा में नेतृत्व की शैली पर उठने लगे सवाल

 शांता कुमार ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को चिट्ठी लिखकर आंतरिक लोकपाल गठन करने की मांग की है। वहीं दूसरी ओर हरियाणा सरकार में मंत्री अनिल विज ने भाजपा की प्रदेश सरकार पर ही आरोप लगाया है कि मंत्रियों की जासूसी हो रही है। ये दोनो वाकये ऐसे हैं जिसको लेकर 'टेरर’ वाली घटना की याद ताजा हो उठती है। पार्टी के कई नेता अब दबे स्वर में सवाल उठा रहे हैं। एक सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर है तो दूसरा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को लेकर।

इन दोनों ही सवालों का जवाब पार्टी प्रवक्ता‍ओं के पास नहीं है। लेकिन नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के कई नेता बहुत कुछ कहने को तैयार रहते हैं कि पार्टी और सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जैसा परिवार में बुजुर्गों की उपेक्षा होने या किसी सदस्य को हाशिए पर डाल दिए जाने के बाद ताना सुनना पड़ता है वैसा ही भाजपा में हो रहा है। जून में आपातकाल की बरसी पर पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इशारे-इशारे में मौजूदा दौर की तुलना आपातकाल से कर दी थी। उसके बाद यह बहस तेज हो गई कि भाजपा में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

पार्टी और सरकार की मौजूदा व्यवस्था पर ताना मारने वाले आडवाणी अकेले नहीं हैं। कानपुर से भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी ने गंगा की सफाई को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तगड़ा कटाक्ष किया था। जोशी ने कहा था कि गंगा के साथ-साथ राजनीति भी प्रदूषित हो गई है। जोशी ने कहा कि ऐसे अभियान से पचास साल में गंगा साफ नहीं हो पाएगी। 'नमामि गंगे’ नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजना है। जोशी मोदी के साथ-साथ अपनी ही सरकार के मंत्री के खिलाफ भी सवाल उठाते हैं। जोशी के मुताबिक, 'एक मंत्री गंगा में जहाज चलाने की बात करते हैं। नदियों को जोडऩे का प्रयास कर रहे हैं, पर मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा होगा कैसे।’

जोशी की तरह ही केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्रा संगठन को लेकर सवाल उठा चुके हैं। मिश्रा का आरोप है कि पार्टी में संवाद की कमी है। नाम न छापने की शर्त पर भाजपा के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि ऐसा लगता है कि पार्टी के अंदर 'आतंक’ फैला हुआ है। कोई कुछ बोल नहीं सकता। जो बोले उसके बारे में उलटी-सीधी बातें सुनने को मिलती है। एक केंद्रीय मंत्री भी आउटलुक संवाददाता के साथ अपनी पीड़ा साझा करते हैं। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक बैठकों में उनके सुझावों का कोई महत्व नहीं है। बस एक ही फैसला होता है कि जो कह दिया गया है वह करना है। अपनी बात रखने का मौका ही नहीं मिलता। सरकार हो या संगठन दोनों की कार्यशैली को लेकर नेता नाराजगी जाहिर करते जा रहे हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा भी कह चुके हैं कि साल 2014 में भाजपा की सरकार बनने के बाद बुजुर्ग नेताओं को 'ब्रेन डेड’ घोषित कर दिया गया है। ऐसे वाकये तो राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के हैं जिन्होने अपनी बात मुखर होकर कह दी। कई नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर आलोचना करते नहीं अघाते हैं। कहते हैं कि सरकार और संगठन में 'मैं’ के अलावा कुछ नहीं है। यानी जो कुछ भी हो रहा है वह कुछ ही लोगों के दम पर हो रहा है। ललित मोदी प्रकरण और मध्य प्रदेश में व्यावसायिक परीक्षा मंडल के घोटाले के उजागर होने के बाद सरकार और संगठन पर हमले तेज हो गए। कुछ खुलकर सामने आ रहे हैं तो कुछ दबे स्वर में विरोध कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर के अलावा राज्यों में भाजपा संगठन और सरकार में फूट दिखाई पड़ रही है।

राजस्थान की मुख्य‍मंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ मोर्चा खोलने वालों में कई भाजपा विधायक भी शामिल थे। इतना ही नहीं मंदिर तुड़वाने के मुद्दे को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वसुंधरा सरकार पर निशाना साधा। घोटालों के आरोप से घिरे मध्य प्रदेश के मुख्य‍मंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ भी पार्टी के नेता अंदर ही अंदर मोर्चा खोले हुए हैं। एक भाजपा विधायक के मुताबिक शिवराज सिंह चौहान लगातार मनमानी किए जा रहे हैं लेकिन केंद्रीय नेतृत्व कोई सुनवाई नहीं कर रहा है।

बिहार में जहां की इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं वहां पर प्रदेश नेताओं ने राज्य के पूर्व मुख्य‍मंत्री सुशील कुमार मोदी के खिलाफ एक पत्र लिखकर भाजपा अध्यक्ष को अवगत कराया लेकिन कोई बात नहीं बनी। सुनवाई न होने की ही पीड़ा शांता कुमार ने अपने पत्र में लिखा। शांता कुमार आउटलुक से विशेष बातचीत में कहते हैं कि संगठन और सरकार को लेकर कई सवाल उठाते हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती। शांता कुमार के पत्र के खुलासे के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने आपस में चर्चा की। चर्चा के बाद संसदीय कार्यमंत्री राजीव प्रताप रूड़ी ने कहा कि 'हम शांता को गंभीर नेता मानते हैं, लेकिन वह भी कांग्रेस के प्रचार में गुमराह हो गए। पार्टी उनके विचारों से सहमत नहीं है।’ वहीं दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का कहना है कि क्या‍ शांता कुमार को कांग्रेसी मुख्य‍मंत्री वीरभद्र सिंह का भ्रष्टाचार नजर नहीं आ रहा है? वहां तो सब कुछ स्पष्ट है लेकिन वह उस चीज की बात कर रहे हैं जहां कुछ नहीं है।’


दरअसल पार्टी में विरोध की सुगबुगाहट तभी शुरू हो गई थी जब दिल्ली में पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। पार्टी के नेताओं को लग गया कि अब नरेंद्र मोदी का न तो जादू चलने वाला है और न ही अमित शाह की सांगठनिक क्षमता का उपयोग। दिल्ली चुनाव की हार के बाद भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य प्रद्युत बोरा ने इस्तीफा दिया। अमित शाह को भेजे अपने इस्तीफे में बोरा ने सबसे ज्यादा कड़े प्रहार पार्टी अध्यक्ष और प्रधानमंत्री की कार्यशैली पर किए थे। बोरा ने प्रधानमंत्री पर लोकतांत्रिक व्यवस्था में कैबिनेट व्यवस्था को ध्वस्त करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि कैबिनेट मंत्रियों को अपना स्टाफ रखने तक का अधिकार नहीं है। विदेश मंत्री को पता ही नहीं होता है कि विदेश सचिव बदला जा रहा है। सारे अधिकार प्रधानमंत्री कार्यालय में केंद्रित होकर रह गए हैं।

इसी तरह से महाराष्ट्र में एक भाजपा विधायक राज पुरोहित का एक ‌स्टिंग सामने आया जिसमें उन्होने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाया। बाद में पुरोहित को कारण बताओ नोटिस जारी किया। भाजपा के एक वरिष्ठï नेता के मुताबिक जो विरोध का स्वर दरअसल पहले से चला आ रहा था लेकिन अचानक सरकार की लोकप्रियता में जो कमी आई उससे यह स्वर सामने आने लगा है। भाजपा नेता के मुताबिक जो लोग सरकार और संगठन पर सवाल उठा रहे हैं वह लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं को समझाने में भी कामयाब हो गए हैं। क्यों‍कि संघ के भी कई नेता भाजपा की कार्यशैली से खुश नहीं है। उत्तर प्रदेश से जुड़े भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो आने वाले दिनों में कई नेता बारी-बारी से सवाल खड़ा कर सकते हैं।

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