बिहार में पांचवे मुख्यमंत्री बनने का गौरव हासिल करने वाले नीतीश कुमार के सामने अब चुनौतियां भी कड़ी हैं। उनकी सरकार पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद)परिवार का दबाव तो जगजाहिर है, लेकिन चुनौतियां यादवराज से कई गुना अधिक है। वैसे नीतीश के 28 लोगों के मंत्रिमंडल में आठ यादव हैं।
बिहार में नीतीश की वापसी के पीछे एक बड़ा कारण कानून व्यवस्था में सुधार था। अब उसे बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती है। विपक्ष में बैठी भाजपा चुनाव हारने के बाद से ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के एजेंडे पर काम करने लगी है। वैशाली में एक दुर्घटना को जिस तरह से सांप्रदायिक फसाद में तब्दील किया गया और लोगों की जानें गईं, उससे साफ है कि आने वाले दिन नीतीश कुमार के लिए बेहद परेशानी वाले हो सकते हैं।
दो तरह के तनावों के बढ़ने की आशंका जताई जा रही हैं। पहला सांप्रदायिक और दूसरा जातीय। दो ही वजहों से फसाद होने बिहार में शुरू हो गए हैं। भाजपा पहली बार अपने बलबूते इतना वोट प्रतिशत ले पाने में सफल हुई है। इसे एकजुट रखने और नीतीश-लालू की सरकार को एक विफल सरकार में तब्दील करने के लिए वह पूरी तैयारी में हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं ने चुनाव नतीजे आते ही, बिहार में जंगल राज की वापसी की घोषणा करनी शुरू कर दी थी। भोजपुर के भाजपा कार्यकर्ता ने तब ही बताया था, हम नीतीश बाबू को चैन से नहीं बैठने देंगे।–उनका यह कथन, कई कयासों के लिए खुला था। जमीन से मिल रही खबरों से भी यह आभास मिल रहा है कि हार का बदला जंगलराज रिटर्न को चरित्रार्थ करके किया जा सकता है। इसके लिए जमीन सरकार के अंदर और बाहर दोनों से ही तैयार हो रही है। लालू यादव का सरकार और प्रमुख मंत्रालयों को अपने पास रखने का जो दांव है, वह सुशासन की तरफ इशारा करने वाला नहीं है।
इसके अलावा, इन नतीजों ने अगड़े-पिछड़े के बीच के बंटवारे को भी उजागर किया है। लिहाजा अब जातीय टकराव होने की प्रबल आशंका है। इसे नियंत्रित करने के लिए नीतीश ने कई जातियों के समीकरण को मंत्रीमंडल में जगह देने की कोशिश की है। लेकिन जमीन पर अगड़े-पिछड़े का टकराव होना शुरू हो गया है। इसे किस तरह से नीतीश मैनेज करेंगे, यह समय ही बताएगा। इससे पहले वह अपने कमजोर फैसलों के लिए, जिसमें रणवीर सेना के खिलाफ कार्यवाई नहीं करना भी शामिल था, भाजपा को दोषी बताते थे, अब क्या वह इसका ठीकरा लालू पर फोड़ेंगे ?
बिहार के मतदाताओं ने राज्य के समुचित विकास के लिए भी नीतीश को वोट दिया है। क्या वह इसके लिए बिहार में भूमि सुधार करने की की लंबित मांग, जिसकी सिफारिश अमीर दास आयोग ने भी की थी, कोई ठोस कदम उठा पाएंगे। यह भी उनके लिए बड़ी चुनौती है। इसके साथ ही बिहार के आर्थिक विकास, इससे जुड़े केंद्रीय पैकेज को किस तरह से हासिल करते हैं और एक कामयाब वैकल्पिक आर्थिक विकास की दिशा में बिहार को बढ़ाते हैं, ये भी निश्चित तौर पर एक कड़ी चुनौती है।