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उत्तर प्रदेश में भाजपाः छवि से बड़ा पिछड़ा कार्ड

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में पिछड़ा कार्ड खेलते हुए फूलपुर से सांसद केशव प्रसाद मौर्य को राज्य का अध्यक्ष बनाया है लेकिन मौर्य के लिए भाजपा को तीसरे से पहले पायदान पर लाना कड़ी चुनौती है।
उत्तर प्रदेश में भाजपाः छवि से बड़ा पिछड़ा कार्ड

 लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य से बड़ी सफलता मिली थी लेकिन उपचुनाव, पंचायत चुनाव, विधान परिषद चुनाव में मिली करारी शिकस्त से उबरना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। अध्यक्ष बनने के बाद केशव प्रसाद मौर्य ने आउटलुक से कहा कि उनका लक्ष्य साल 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सत्ता में लाना है। लेकिन इस लक्ष्य को पाना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।

मौर्य के अध्यक्ष बनते ही पार्टी में बगावत की खबरें आने लगीं। भाजपा के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि भले ही पिछड़ा वर्ग के वोट को साधने के लिए ऐसा किया गया हो लेकिन अगड़ी जाति की नाराजगी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि प्रदेश भाजपा की कमान अगड़ी जातियों के ही इर्द-गिर्द घूमती रही। कल्याण सिंह और विनय कटियार को अगर छोड़ दिया जाए तो भाजपा ने हमेशा अगड़ी जाति पर दांव खेला। ऐसे में मौर्य का अध्यक्ष बनना कुछ नेताओं को रास नहीं आ रहा है। खुलकर कोई भले न बोले लेकिन अंदरूनी गुटबाजी चरम पर है। विपक्षी दल मौर्य की आपराधिक छवि को लगातार उछालने का काम कर रहे हैं।

भाजपा के एक नेता ही बताते हैं कि ऐसा पहली बार हुआ है कि जिस पर लगभग एक दर्जन आपराधिक मामले दर्ज हों, वह पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष हो लेकिन इन चुनौतियों को लेकर मौर्य कहते हैं कि उनके ऊपर जो मुकदमे हैं वह राजनीति से प्रेरित हैं। उन्होंने कोई ऐसा गुनाह नहीं किया है जिसके लिए सजा मिली हो। बिहार में मिली करारी हार से सबक लेते हुए भाजपा ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ा कार्ड खेला है। भाजपा राज्य की अन्य पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए उसके प्रमुख नेताओं को जोड़ने में जुट गई है। इसलिए राम मंदिर का मुद्दा छोड़ पार्टी विकास की बात करने लगी है। खुद मौर्य कहते हैं कि राम मंदिर का मुद्दा आस्था का विषय हो सकता है, पार्टी इसे मुद्दा नहीं बनाएगी।

आशय साफ है कि आगामी विधानसभा चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा जाना है। मौर्य को विश्व हिंदू परिषद का संगठनात्मक अनुभव तो है लेकिन भाजपा में पहली बार बड़ी जिम्मेदारी मिली है। साल 2012 में पहली बार विधानसभा जीते मौर्य दो साल बाद ही सांसद बन गए। उसके बाद भी पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेवारी नहीं मिली। मौर्य के अध्यक्ष बनने से पहले भाजपा में कई नाम पर चर्चाएं चल रही थीं लेकिन अचानक नया नाम आने से पार्टी नेता हैरान हो गए लेकिन मौर्य को अपनी भूमिका को लेकर कोई हैरानी नहीं है। वह कहते हैं कि मैंने पार्टी के फैसले को जिम्मेदारी के तौर पर लिया है, न कि चुनौती के रूप में। इसलिए पहला लक्ष्य पार्टी को सत्ता में लाने का रखा है। मौर्य कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में पार्टी का जो विकास का मुद्दा था वहीं मुद्दा उत्तर प्रदेश में भी होगा। मौर्य के अध्यक्ष बनने के बाद सपा और बसपा लगातार निशाना साध रही है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा सब उजागर हो गया है। वहीं बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य कहते हैं कि आपराधिक छवि का व्यक्ति प्रदेश की जनता को कितना न्याय दिला सकता है यह अपने आप में विचार का विषय है।

इसी तरह कांग्रेस कार्यकर्ता मौर्य के विरोध में पोस्टर लगा रहे हैं जिसमें सवाल उठाया जा रहा है कि चाय बेचते-बेचते करोड़पति कैसे हो गए। विरोधी पार्टियों के आरोपों से बेखबर रहते हुए मौर्य कहते हैं कि सपा और बसपा इस बार के चुनाव में सत्ता में नहीं आने वाली है इसलिए इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं। मौर्य पूरे उत्साह के साथ प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने में जुट गए हैं। जो भी हो मौर्य को भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने से पार्टी को कितना फायदा या नुकसान होगा यह आने वाला समय ही बताएगा। 

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