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नीतीश की न लाज बची, न मोलभाव की ताकत

बिहार की जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में जदयू उम्मीदवार को करीब 41 हजार वोटों से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी...
नीतीश की न लाज बची, न मोलभाव की ताकत

बिहार की जोकीहाट विधानसभा उपचुनाव में जदयू उम्मीदवार को करीब 41 हजार वोटों से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी है। विधानसभा चुनाव में 41 हजार का अंतर बड़ा मार्जिन माना जाता है। यह चुनाव राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा था। नतीजों ने उनकी चुनौती बढ़ा दी है। अगले साल होने वाले आम चुनावों से पहले भाजपा के साथ सीटों का मोलभाव करने की उनकी ताकत कम कर दी है। इसलिए, आने वाले चुनाव में जदयू की भूमिका बड़े भाई की जगह छोटे भाई की हो जाए तो चौंकिएगा मत।

असल में, जोकीहाट जदयू की सीटिंग सीट थी। नीतीश के महागठबंधन से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाने के फैसले के विरोध में इस सीट से जदयू विधायक रहे सरफराज आलम राजद में शामिल हो गए, जिसके कारण उपचुनाव की नौबत आई। करीब दो महीने पहले सरफराज अपने पिता तस्लीमुद्दीन के निधन से खाली हुई अररिया लोकसभा सीट का उपचुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे।

जोकीहाट में राजद ने शाहनवाज आलम तो जदयू ने मुर्शीद आलम को मैदान में उतारा था। मुर्शीद के पक्ष में नीतीश ने खुद रैली की और जदयू के कई बड़े नेताओं ने जोकीहाट में डेरा डाल रखा था। इसने उपचुनाव को राजद और जदयू से ज्यादा नीतीश कुमार बनाम तेजस्वी यादव की लड़ाई में बदल ‌द‌िया थ्‍ाा। ऐसे में शाहनवाज आलम की जीत बताती है कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता कम हो रही है। साथ ही तेजस्वी ने साबित किया है कि अपने पिता पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की गैरमौजदूगी में भी वे राजद को जीत दिलाने में सक्षम हैं। नतीजों से राजद का माय समीकरण भी मजबूत हुआ है।

जोकीहाट को अल्पसंख्यक बहुल सीट बताकर इस परिणाम को खारिज करना आसान नहीं होगा। क्योंकि, 2005 में नीतीश के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनकी पार्टी जदयू लगातार चार बार जोकीहाट विधानसभा चुनाव जीत चुकी है। इस दौरान उनके साथ भाजपा भी सत्ता में साझीदार रही है। उपचुनाव जीतकर जदयू, राजद के माय समीकरण में सेंधमारी के साथ-साथ भाजपा के ऊपर लोकसभा चुनावों में ज्यादा से ज्यादा सीट देने के लिए दबाव बनाना भी चाहती थी। यही कारण है कि जोकीहाट में मतदान से ठीक पहले नीतीश ने विशेष राज्य के दर्जे की मांग को फिर से उठाया था। ‌बीते साल भाजपा के साथ सरकार बनाने के बाद से वे इस मसले को ठंडे बस्ते में डाल चुके थे।

इस लिहाज से नीतीश का दांव खुद उनपर भारी पड़ गया है। जोकीहाट में जदयू की हार ने साबित किया है कि महागठबंधन से अलग होने का नीतीश का फैसला राज्य के मुसलमानों को नहीं भाया है। करीब दो महीने पहले अररिया लोकसभा उपचुनाव हारकर भी जदयू इसका खामियाजा उठा चुका है।  

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